मजदूर दिवस या मजबूर दिवस !


hard-labour

देखिये मई महीने की पहली तारीख़ को मजदूर दिवस हम-आप मनाते आ रहें है और मनाएंगे भी आप मजदूर हैं की मजबूर वो तो हम नहीं जानते परन्तु ये जो हम लिख रहें हैं वो मजबूरी में लिखा गया हकीकत है ..पढियेगा तो अपच नहीं करेगा !

आप मजदूर हैं तो ख़ुश हो जाईये आपके लिए छुट्टी का एलान किया गया है, पूरा दिन आपके पास है खूब मस्ती कीजिये क्योंकि दिन बीतने के बाद आप टेंसन में आने वाले हैं …. कुछ लोग आज बिलकुल भी ख़ुश नहीं हैं काहे की वो मजबूर हैं और इनके जैसे करोड़ो पढ़े लिखे लोग बेरोजगार हैं जो मजदूर नहीं बनना चाहते, काहे की उनको शर्म आता है की लोग का कहेगा पढ़ लिख के मजदूर बन गया हालाँकि वो भी फेसबुक व्हट्सएप्प पर पूरा दिन ड्यूटी करने वाले हैं | और गूगल बाबा के यहाँ से फोटो डाउनलोड कर पूरा सोसल मिडिया पाट देंगे … मजदूरों का सहानुभूति बटोरने के लिए |

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“साभार गूगल बाबा”

हम कनफयुजिया जाते हैं की इ मजबूरी का रोना जो रो रहे हैं … उनको मजदूरी करने में क्या जाता है | जब मजदूरों से इतनी सहानुभूति है तो मजदूरी करने में शर्म काहे आता है | कोनो जबाब है तो comment में बता दीजियेगा | उ का है न की डबल स्टेंडर्ड वला सोच बहूत परेशान करता है | मजबूरी का रोना रो कर मजदूरी से दूर भागना ठिक बात है का ?


आलेख : रजनिश प्रियदर्शी

 

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