आलेख : राशन कार्ड


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सीना ठीक कर उस अधेर उम्र के व्यक्ति ने भड़ी बस में बोला था. सरकार राशन बँटना बंद करे. दिल तो मेरा भी मचला, दिमाग में गुस्सा को साया लहराने लगा जबाब देने को, उलझा तो था ही परंतु कुछ सोच पीछे हट गया.

अब उनके उम्र का तकाजा कहें या मेरा बड़ो के प्रति आदर का भाव. लेकिन आमतौर पर पुरे Middle class की यही कहानी है जनाव. अपने आप को Liberal और नए आर्थिक निति के नजदीक दिखाने की चाह जाने अनजाने में उनसे यही बुलबाती है.

लेकिन जब इसी Middle class से ये बात पूछा जाए की आप के ही परिवार की विधवा के पेट की आग को कौन शांत करेगा, मसोमात को निवाला कौन देगा. तो फिर इन्हें साँप सूंघ जाता है, मुहँ से वकार नहीं निकलती, आँखें चुराते फिरते हैं. और गजब तो तब होता है जब गरीबों को मिलने वाली तमाम योजना में पहले लाइन लगा बेशर्मो की तरह दबंगई से पूरा माल हथिया लेते हैं. क्या कहें इसको ?

तो फिर बिना सोचे समझे बोलने की ये प्रवृति, अपने आप को भीड़ अलग दिखाने की अंध चाह, यही तो Middle class वाले आज कल कर रहें हैं. घर के बगल के विधवा मसोमात की गरीबी पर आँख मूंदे, पूरी दुनिया को Lecture झार रहें हैं. मज़बूरी भी है, सोचने समझने की limitation ने life के हर पल पर पहरा जो डाल दिया है, तो फिर दूर किसी को बिन माँगे Suggestion दे देना, अपना अलग विचार प्रकट कर अपने को ऊँचा समझ लेना कितना आसान है न ! आप भी मस्ती से यही सब करते रहीए. और करना भी तो अपना हक़ बनता है भाई, बचपन से यही सब तो सीखते आयें है हम Middle class वाले !

लेखक : अविनाश भारतद्वाज ( समाजिक राजनितिक चिन्तक )

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