लघुकथा – बेईमानी का फल


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एक दिन, एक लोमड़ी और एक बंदर ने पहाड़ी पर एक बड़े-बड़े आड़ू को गिरे हुए देखा. एक बड़ा सा ताजा आड़ू ! यह कितना स्वादिस्ट होगा यह सोच कर लोमड़ी और बन्दर के मुंह में पानी भर आया. उन दोनों ने ऐसा शानदार आड़ू पहले कभी नहीं देखा था. चलो इसे अकेले में जा कर खाते हैं. ‘ठहरो चलो इसे बाँट लेते हैं’,  लोमड़ी ने सुझाव दिया. ‘पर कैसे ?’ बन्दर ने कहा. में बाहरी हिस्सा ले लेती हूँ. और तुम इसकी गुठली ले लेना. ठीक है?, ‘ठीक है ! बन्दर ने एक पल सोच कर जबाब दिया. लोमड़ी ने जोर-जोर से आवाज करते हुए उस रसीले आड़ू को खा लिया. और गुठली बन्दर के लिए छोर दी. लोमड़ी ने अपने मुँह पर लगे आड़ू के रस को पोंछा और यह सोचते हुए सन्तुष्टि से चली गयी की आज उसने काफी बड़ा लाभ कमाया है.

बन्दर उसे जाते हुए देख रहा था, उसने लोमड़ी को कुछ भी नहीं कहा. वह गुठली को अपने घर ले आया और उसने अपने घर के सामने के जमीन को खोद कर उसे दबा दिया. अगले बसंत के पहली बारिश के बाद उस जगह पर एक छोटा सा हरे रंग का पौधा उग आया. तीन साल बीत गए और आड़ू का छोटा पौधा अब एक बड़ा सा पेड़ बन गया. उस हरे भरे आड़ू के पेड़ को देख कर लोमड़ी को बड़ा पछतावा हुआ, उस दिन सच में किसे बड़ा हिस्सा मिला, उसने सोचा. उसके बाद बन्दर को हर साल मीठे आड़ू मिलते, जिसे देखकर लोमड़ी मायूस होकर अपने मुंह में पानी भर लेती.

साभार : अहाँ जिन्दगी पत्रिका, लेखक लुइ फेडरिक, अनुवादक ( विपिन चौधरी )

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