साहित्य
ख़ुशी – तेरे नाम एक खुला ख़त
ख़ुशी कैसी हो ? तेरे नाम से पहले कोई विशेषण अच्छा नहीं लगता मुझे | मुझे सिर्फ तुम ‘तुम जैसी’ ही अच्छी लगती हो | पिछले कुछ दिनों से जिस्म कि तकलीफें बढ़ गयी थी, लोग-बाग़ के साथ साथ आलमारी में लगा सीसा भी शिकायत करने लगा था |
मेरे जन्मदिन पर…….
कुछेक वर्ष पहले मेरे जन्मदिवस पे मेरे पिता ने मुझे इस जीवनोपयोगी कविता से उपहृत किया था। मैं न्यूनाधिक्य मूढ़ पता नहीं कितना कसूँगा इस के कसौटी पर…
चुपचाप कम्बल ओढ़ के घी पीते रहिए
ऐसा कभी होता नहीं था. समय बदला जिम्मेवारी बदली और फिर यूँ लगा कि आसपास का पूरा संसार ही बदल गया. हर पल गुस्सा आना, मुहँ से गाली निकलना, चिड़चिड़ापन जीवन का एक अंग बन गया. सुहाने सपने
बालकनी के प्रेम कथा का निर्दयी अंत
दिसम्बर के धुप में यूँ ही बालकनी के दूसरी तरफ मुड़ बैठ गया था | बादलों के बीच सूरज की आँख मिचौली में बालकनी की ठंडी हवा मन को मोह रही थी | एकाएक नजरें उठी और दूर के बालकनी पर जाकर अटक गई | एक खूबसूरत जवान कन्या !
काशी – यात्रावृतांत
अभी काशी से विदा भी नहीं हुआ था कि कूची मष्तिष्क के अंतरपटल पर हर्ष की स्याही से क्षणों को दकीचे जा रहा था । पेट से माथे तक बबंडर उठा हुआ था । लेखक मन व्याकुल था, बार-बार कोशिस करता था और शब्द अव्यवस्थित हो रहे थे । मैं हर क्षण को शब्दों की …
यह तुष्टीकरण नहीं तो क्या संतुष्टिकरण है
जब आप अपने बेटी को अच्छे स्कूल में नहीं पढाते ! बचपन से ही उसके दिमाग में यह देते हैं की पैसे कम हैं …!! तो तुम्हारा भाई ही अच्छा स्कूल में पढ़ सकता है. यह तुष्टीकरण नहीं..
छोटकी भौजी
आमतौर पर मेरा दिल्ली से प्रेम का एक वजह आप मेट्रो का होना कह लिजिये । इसने इस घुम्मकर किस्म के इन्सान को एक ठौर दिया । और समझ लीजिये उसे और घुमने के लिए उकसाने का भी काम किया । कोई 10 बजे सुबह का समय रहा होगा ।
विद्यापति समारोह और मिथिला का विकास ।
बात विद्यापति समारोह के विरोध का नहीं है । बात है कि जिन लोगों को इस समाज ने आगे बढ़ाया, समाज के बल पर उन्होंने पूरे देश में नाम कमाया, पैसे कमाए, अच्छे पोस्ट पर पहुँचे, वो लोग मिथिला के प्रति अपने कर्तव्य को विद्यापति समारोह मना कर पूर्ण मान लेते हैं ।
चप्पल-जूता छुआ-छुत और जाति-धर्म
समान्य श्रेणी और पूर्ववत् पधारे सहयात्री के बीच जोरो-आजमाइश करते हुए उचित स्थान काफी मसक्कत से ग्रहण किया उपरी पाईदान (सोने वाली सिट ) पर बैठ गया कुछ देर के उपरांत देखा !