प्रस्तुत है पाँच बाल कविताएँ । “माँ, कह एक कहानी”- मैथिलीशरण गुप्त / “बचपन जिंदाबाद !” – शादाब आलम / “टेसू राजा अड़े खड़े” – रामधारी सिंह दिनकर / “सुबह” – श्रीप्रसाद / “सतरंगे बादल” – पूनम श्रीवास्तव ।
“माँ, कह एक कहानी“
‘माँ, कह एक कहानी!’
‘बेटा, समझ लिया क्या तूने
मुझको अपनी नानी?’
‘कहती है मुझसे यह बेटी
तू मेरी नानी की बेटी!
कह माँ, कह, लेटी ही लेटी
राजा था या रानी?
माँ, कह एक कहानी!’
‘तू है हटी मानधन मेरे
सुन, उपवन में बड़े सबेरे,
तात भ्रमण करते थे तेरे,
यहाँ, सुरभि मनमानी?
हाँ, माँ, यही कहानी!’
‘वर्ण-वर्ण के फूल खिले थे
झलमल कर हिम-बिंदु झिले थे
हलके झोंकें हिले-हिले थे
लहराता था पानी।’
‘लहराता था पानी?
हाँ, हाँ, यही कहानी।’
‘गाते थे खग कल-कल स्वर से
सहसा एक हंस ऊपर से
गिरा, बिद्ध होकर खर-शर से
हुई पक्ष की हानी।’
‘हुई पक्ष की हानी?
करुण-भरी कहानी!’
‘चौक उन्होंने उसे उठाया
नया जन्म-सा उसने पाया।
इतने में आखेटक आया
लक्ष्य-सिद्धि का मानी?
कोमल-कठिन कहानी।’
माँगा उसने आहत पक्षी,
तेरे तात किंतु थे रक्षी!
तब उसने, जो था खगभक्षी –
‘हट करने की ठानी?
अब बढ़ चली कहानी।’
‘हुआ विवाद सदय-निर्दय में
उभय आग्रही थे स्वविषय में
गयी बात तब न्यायालय में
सुनी सभी ने जानी।’
‘सुनी सभी ने जानी?
व्यापक हुई कहानी।’
‘राहुल, तू निर्णय कर इसका-
न्याय पक्ष लाता है किसका?
कह दे निर्भय, जय हो जिसका।
सुन लूँ तेरी बानी।’
‘माँ, मेरी क्या बानी?
मैं सुन रहा कहानी।’
‘कोई निरपराध को मारे
तो क्यों अन्य उसे न उबरे ?
रक्षक पर भक्षक को वारे
( मैथिलीशरण गुप्त )
“बचपन जिंदाबाद!“
जैसे पंछी वैसे हम भी
मस्त-मगन,आजाद।
बचपन जिंदाबाद!
अपनी नन्हीं दुनिया
अजब-अनोखी, खास
दुख-चिंता को न दें
कभी फटकने पास।
अपनी बातों के आगे न
हमको कुछ भी याद
बचपन जिंदाबाद!
किले शरारत के हम
रोज बनाया करते
हँसी-खुशी के मोती
मुफ्त लुटाया करतें
धमा-चौकड़ी खेल तमाशे
में हम हैं उस्ताद।
बचपन जिंदाबाद!
चंचल,भोले,हँसमुख
हम तो हैं अलबेले
मन में बुनते रहतें
सपने नए-नवेले।
दिन अपने ये रहें हमेशा
अपनी यही मुराद
बचपन जिंदाबाद!
न्याय दया का दानी!’
( शादाब आलम )
“टेसू राजा अड़े खड़े“
टेसू राजा अड़े खड़े
माँग रहे हैं दही बड़े।
बड़े कहाँ से लाऊँ मैं?
पहले खेत खुदाऊँ मैं,
उसमें उड़द उगाऊँ मैं,
फसल काट घर लाऊँ मैं।
छान फटक रखवाऊँ मैं,
फिर पिट्ठी पिसवाऊँ मैं,
चूल्हा फूँक जलाऊँ मैं,
कड़ाही में डलवाऊँ मैं,
तलवार सिकवाऊँ मैं।
फिर पानी में डाल उन्हें,
मैं लूँ खूब निचोड़ उन्हें।
निचुड़ जाएँ जब सबके सब,
उन्हें दही में डालूँ तब।
नमक मिरच छिड़काऊँ मैं,
चाँदी वरक लगाऊँ मैं,
चम्मच एक मँगाऊँ मैं,
तब वह उन्हें खिलाऊँ मैं।
‘न्याय दया का दानी?
तूने गुनी कहानी।’
( रामधारी सिंह दिनकर )
“सुबह“
सूरज की किरणें आती हैं,
सारी कलियाँ खिल जाती हैं,
अंधकार सब खो जाता है,
सब जग सुंदर हो जाता है
चिड़ियाँ गाती हैं मिलजुल कर,
बहते हैं उनके मीठे स्वर,
ठंडी-ठंडी हवा सुहानी,
चलती है जैसी मस्तानी
यह प्रातः की सुख बेला है,
धरती का सुख अलबेला है,
नई ताजगी, नई कहानी,
नया जोश पाते हैं प्राणी
खो देते हैं आलस सारा,
और काम लगता है प्यारा,
सुबह भली लगती है उनको,
मेहनत प्यारी लगती जिनको
मेहनत सबसे अच्छा गुण है
आलस बहुत बड़ा दुर्गुण है
अगर सुबह भी अलसा जाए
तो क्या जग सुंदर हो पाए
( श्रीप्रसाद )
“सतरंगे बादल“
उमड़ घुमड़ कर आते बादल,
गरज बरस कर आते बादल,
काले काले भूरे पीले,
कितना हमें डराते बादल।
खुशियों का पैगाम ये बादल,
फसलों की तो जान हैं बादल,
लेकिन हद से गुजर गये तो,
बन जाते हैं काल ये बादल।
दूर देश से आते बादल,
बारिश को संग लाते बादल,
बच्चों बूढ़ों और बड़ों की,
मस्ती का ही नाम हैं बादल।
लाते हैं संदेशे बादल,
हमें सीख ये देते बादल
बूँद बूँद पानी की भर लो,
जाने कब फिर बरसें बादल।
इंद्रधनुष के रंग में सबको,
रंग जाते हैं प्यारे बादल,
जीवन के पल पल को रँग लो,
सतरंगे कहते ये बादल।
( पूनम श्रीवास्तव )
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