मैथिल बुद्धिजीवीयों की विडम्बना

भूख, कुपोषण, दरिद्रता , पलायन  एवं बेरोजगारी से  त्रस्त मिथिला के लिए नए आशा का संचार करने वाली…!  मिथिला क्षेत्र की दुर्दशा को मुद्दा बनाकर मिथिला के जनमानस में पहचान बनाने वाली संगठन….का प्रादुर्भाव पहली बार मिथिला में युवाओं के संगठन के रूप में हुआ है ।  देश के कोने-कोने में फैले हुए यूवाओं से लेकर गाँव के गलियों में रहने वाले मैथिल यूवा इस संगठन से जुड़ कर विकास के नारे को बुलंद कर रहें हैं ।

लेकिन इस आवाज को और बुलंद करने के बजाय ऐसा देखा जा रहा है कि.. हमारे ही बुद्धिजीवी मैथिल समाज के  लेखक, राजनीत ज्ञानी लोग ना जाने क्यों युवाओं के इस संगठन के पीछे पर,  सिर्फ इसके कामों का आलोचना करते हैं । और नकारात्मक प्रचार के माध्यम से इसे खोखला करने की चाहत रखते हैं । यह  विडंबना हमारे मैथिल समाज का सालों से रहा है और पढे-लिखे वर्ग के बीच आपसी मतभेद मनभेद में बदलकर विकास के ” कोपल ” को मिथिला में कभी पनपने ही नहीं देती है । फिर जब युवाओं का ये संगठन विकास के मुद्दे पर सत्ता से प्रश्न ?  करने लगी तो उसे रास्ता दिखाने के बदले…    बंद कमरे में बैठकर उसकी टांग खींचाइ होने लगी ।

इस जमाने में जब हर नौजवान अपने कैरियर बनाने में व्यस्त है, समाज के लिए काम करने की कल्पना उसके लिए दोयम दर्जे की चीज मानी जाती है,  लाखों में दो-चार लोग इस काम को करने आगे आते हैं और यह बात तथाकथित मिथिला स्टूडेंट यूनियन की टांग खिंचाई करने वाली बिरादरी बखूबी जानती  है,  फिर भी जानबूझकर किया जाने वाला ये हरकत नौजवानों के उर्जा को जाया करती है ।  कभी संगठन के अध्यक्ष के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश करना, तो कभी उपाध्यक्ष पर प्रहार,  प्रभारी और जिला अध्यक्षों की टांग खिंचाई और आए दिन संगठन के कार्यकर्ताओं पर तरह तरह के लांछन इसका जीता-जागता प्रमाण है । बार-बार बिना किसी कारण के शब्दों के जाल में उलझा कर अपनी जीत को दिखाना और मनभेद के चलते विकास के नारे को रसातल में धकेला जाना कहीं ना कहीं इस बिरादरी का दैनिक कर्तव्य हो गया है ।

वरिष्ठ होने के नाते इनको नौजवानों के टोली को एक राह दिखाना चाहिए था । विकास के इस ललक को और  ऊर्जावान कर उसे दीप की भांति प्रजलित करने की कोशिश करनी चाहिए थी ।  मिथिला के साथ राज्य और केन्द्रीय सत्ता की वर्षों से चली आ रही सौतेला व्यवहार के खिलाफ नौजवानों की ऊर्जा को इस्तेमाल कर क्षेत्र- छात्र  के विकास की हरसंभव कोशिश करनी चाहिए थी ।  और यह बात भी समझना चाहिए था कि आज के सुविधाभोगी संसार में इस राह पर कोई नहीं चलता तो…. जो मुद्दा उठा रहा है उसे सामाजिक, आर्थिक एवं शेक्षणिक  मजबूती देकर मिथिला के विकास के कुंद पड़े  धारा को मजबूती देते । नौजवानों को समझाते, उन्हें सही राह दिखाते,  विकास में हिस्सेदारी की मांग को जन-जन का नारा बनाते,  इस बात को भी मानते की कर्तव्यपथ पर कभी कभार भूल चूक भी होती रहती है और उसी  गलतियों से तो सीख मिलती है । लेकिन दूरदर्शिता का अभाव और मैं…!  की भावना ने हम  मेथिलों को कहीं का नहीं छोड़ रखा  है ।  आज जरूरत है की मैथिल समाज इन सब से निकलकर एक हो…..  मिथिला के विकास के नारे को बुलंद करें ।

एक डेग ! विकासक लेल ! जय मिथिला !

लेखक : अभिनाश भारतद्वाज 9852410622