होलीका, होली, रंग और हम


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भारतीय परम्पराओं में होली का अपना एक अलग ही महत्व है. जाती धर्म से ऊपर उठ कर भारतीय लोग इस पर्व को समरसता पूर्वक मनाते हैं. वास्तविकता तो यह है की यह पर्व हमें प्रेम करना सिखाता है.

पौराणिक कथाओं के अनुसार यह पर्व हमें बुराई पर अच्छाई का विजय को दर्शाता है. भक्त प्रह्लाद की कथा तो आपने सुना ही होगा. किस प्रकार एक राक्षस कुल में जन्मा साधारण सा बालक प्रलाध हिरन्यकश्यप जैसे अहंकारी के अहंकार को चूर-चूर कर देता है.

आईये इस कथा को विस्तार पूर्वक जाने.

श्रीमद्भागवत महापुराण के सप्तम स्कन्द में प्रथम से दसवें सर्ग तक भक्त प्रह्लाद की कथा का वर्णन है. इसमें पिता हिरन्यकश्यप के लाख प्रताडनाओं यहाँ तक की मार डालने के कोशिस के बावजूद बालक प्रह्लाद की विष्णु के प्रति भक्ति अडिग रहती है. राक्षस कुल में जन्में प्रलाध की भगवत-भक्ति हिरन्यकश्यप के “में ही विष्णु हूँ” जैसे अहंकार को चूर-चूर कर देती है. वह जितना जोर देकर अपने पुत्र को डराता है कि ‘विष्णु का नाम नहीं मेरा जपो’ प्रह्लाद की भक्ति उतनी ही दृढ़ होती जाती है. वह न डरता है और न विचलित होता है.

पिता के आदेश पर प्रह्लाद को पहाड़ की उँचइयो से फेंका गया, उबलते तेल के कराह में डाला गया, किन्तु ए यातनाएं भी उसकी भक्ति को कम नहीं कर सकी, प्रह्लाद की भक्ति और विश्वास के सामने हिरन्यकश्यप के सभी अत्याचारी उपक्रम निष्फल और असहाय साबित हो रहे थे. उसका राक्षसी अहंकार यह स्वीकार करने को कतय तैयार नही था की एक छोटा सा बालक, वह भी उसका पुत्र राजाज्ञा का उलंघन कर विष्णु-विष्णु जपता रहे.

इस प्रकार हिरन्यकश्यप की बहन होलिका अपने भाई के मदद के लिए आई. उसे वरदान प्राप्त था की अग्नि उसे जला नही सकती. तय हुआ की होलिका बालक प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठेगी और चारों और लकड़ियों का बड़ा ढेर लगा कर अग्नि प्रज्वलित की जाएगी. उस दहकती आग में प्रह्लाद जल कर भष्म हो जायेगा और होलिका सही-सलामत अग्नि सिखाओं के बीच से बाहर निकल आएगी हिरन्यकश्यप प्रसन्न था की उसका यह प्रयोग व्यर्थ नही जायेगा.

लेकिन उल्टा ही हो गया उस विकराल अग्नि ने होलिका का दहन कर दिया और प्रह्लाद मुस्कुराता हुआ बाहर निकल आया. सभी भौचक देखते रह गए, की किस तरह होलिका नामक बुराई जल कर भस्म हो गई.

अंततः हिरन्यकश्यप ने प्रह्लाद को खम्भे से बांध कर मार डालने का अंतिम प्रयास किया तो खम्भे को फाड़ कर भगवान विष्णु नरसिंह रूप में प्रकट होते हैं और उस राक्षस का पेट चिर कर उड़े मार डाले.

इसीलिए भारतीय परम्पराओं में होली से एक दिन पहले के रात को होलिका दहन कर हमारे समाज के बुराइयों, इर्ष्या-द्वेष, शत्रु-भाव को नस्ट किया जाता है, और गुलाल लगा कर एक-दुसरे के प्रति प्रेम को बढ़ाने पर जोर दिया जाता है. ये इस पर्व की विशेषता है.

परन्तु आज इन पहलुओं पर हमें विचार करने की आवश्यकता है. हमारे समाज में मदिरा एवं नशा-पान का मानों तो एक प्रथा सी बनती जा रही है. और खास कर के होली में. खैर अपनी-अपनी सोच. इन शराबियों का क्या ? गम भुलाना हो या ख़ुशी मनाना हो सब में इनको सिर्फ नशा-पान करना ही दिखाई देता है.


  • आईये इस त्योहार से सम्बन्धित कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करते हैं.

यह सही है की त्योहार मिलने जुलने, आपसी संबंध मजबूत करने व सभी गिले-शिकवे दूर करने का समय होता है. होली तो ख़ास तोर पर इसी लिए मनया ही जाता है. आम तौर पर सभी कोशिश भी यही करते हैं. की त्योहार के बहाने वे अपने भूले बिसरे दोस्तों परिचितों से मिल लें. दोस्त कितने भी करीबी क्यों न हो, कुछ बातो का ध्यान तो रखना ही चाहिए.

किसी के यहाँ बेवक्त न जाएँ. यदि देर हो गई है और किसी के घर जाना है तो यह न सोचें की त्योहार में वक्त की कोई पावंदी नहीं होती, बल्कि मेजवान के घर फ़ोन कर के पूछ लेना चाहिए.

  • किसी के यहाँ जा कर कोई फरमाईश न करें क्योंकि इससे सामने वालों को कठिनाई हो सकती है.
  • मेहमानों की आव-भगत हमारे संस्कारों में है, फिर त्योहारों के मोके पर मेहमान को बिना खिलाएं भेजना कोई पसंद नहीं करता. हर परिचित के यहाँ खाने-पिने से आपका सिस्टम जबाब देने लगता है, शुरू से ही हरेक के यहाँ नपा-तुला खाएं जिससे मेजवान भी खुश रहें और आपका सिस्टम भी.
  • यूँ तो शालीनता हर मौके की आवश्कता होती है, पर त्योहारों के बहाने अक्सर लोग इसे भुलाने लगते  हैं. इस प्रवृति से बचें. मेजवान महिलाओं के साथ शालीन व्यवहार करें. शराब पी कर किसी के घर न जाएँ.
  • जरूरत से ज्यादा किसी के यहाँ न बैठे हो सकता है उन्हें भी कहीं जाना हो.
  • किसी के घर जा कर उसके समानो का जैसे रंग, अबीर आदि का इस्तेमाल न करें. अपना रंग अबीर ले कर जाएँ. अक्सर लोग जिसके यहाँ जाते है उसके रंग अबीर का वहाँ तो इस्तेमाल करते हि हैं, उसे उठा कर चलते बनते हैं, यह गलत है.

रंग न बना दे रोगी आपको….

  • होली की मस्ती और रंगों का फुहार में हम सुध-बुध खो देते हैं, और यह भूल जाते है की यह मस्ती और रंग हमें रोगी भी बना सकते हैं सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं, होली खेले पर सम्हाल कर, कहते तो सब हैं, इस पर अमल कितने लोग कर पाते हैं ? आज के मिलावटी रंगों से क्या और कितना नुकसान हो सकता है, यह देखते हैं एक चिकित्सक के नज़र से. इस दौरान क्या क्या सावधानी बरतें.
  • रंगों से सबसे अधिक आँखे और त्वचा प्रभावित होती है. अपनी आँखे सीवियर conjektiwitis का खतरा उत्पन्न हो जाता  है. रंगों से आँखों को नहीं बचाया जाय तो कोर्निया में इन्फेक्शन होने का डर रहता है. इससे आँखों में सुजन, लाली, और देखने में दिक्कत हो सकती है.
  • रंग हमेशा आँखों को बचाते हुए ही लगायें या लगवाएँ. सावधानी के बावजूद आँखों पर रंग लग गया हो तो तुरंत साफ़ पानी से अथवा गुलाब जल से धोएँ. कोई एन्टीसेफ्टिक ड्राप ( जेटीसिन ) आदि डालें.
  • अधिक परेशानी हो तो एंटीएलर्जिक टेबलेट ( सेट्रिजिन ) 10 मिली ग्राम खाएँ. बच्चों को उनके हिसाब से उम्र के हिसाब से मत्रा दें. छोटे बच्चों को एक चोथाई दें. इसके बाद भी परेशानी हो तो नेत्र चिकित्सक से सम्पर्क करें.
  • अबीर-गुलाल भी एलार्जिको के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. उड़ता गुलाल द्म्म्मा के रोगीओं के लिए अच्छा नहीं है, इससे द्म्मआ बढ़ सकता है, यदि ऐसी स्थिति हो गई हो तो तुरंत दवा शुरु कर दें.
  • मिलावटी रंग त्वचा के लिए बहूत नुकसानदायक होते है. इसके इस्तेमाल से इलार्जी दर्मेतिएतिस अर्थात त्वचा (हल्का) फटने का डर रहता है. इससे बचने के लिए मिलावटी रंग के इस्तेमाल से बचें. स्किन इलार्जी अधिक हो तो स्किन चिकित्सक से सम्पर्क करें.
  • होली के मस्ती के लिए भाँग का खूब प्रयोग किया जाता है. शराब के नसे में लोग डूबते इतराते हैं अधिक भाँग और शराब से अल्कोहल  poisoning  का खतरा रहता है. रंग में भंग न हो जाये इसलिए ये जरूरी है की इन दोनों का त्याग किया जाए.
  • भाँग या शराब अधिक मात्र में किसी ने ले लिया हो तो उसे तुरंत उलटी करवा देना चाहिए. उसके बाद चिकित्सक से सलाह लें. तबियत अधिक बिगर गई हो तो चिकित्सक के पास ले जाएँ.

होली के तुरंत बाद लोग ( जोंडिस और  G estroentrytis उलटी, पेट-ख़राब ) आदि के मरीज अस्पतालों में पहुंचते हैं. इसका मुख्य कारण असंयमित  हो कर पकवानों की दावत उराना है. खाने की मात्र पर कण्ट्रोल रख कर इससे बचा जा सकता है. होली के हुर्दंग में खान पकाते समय साफ़-सफाई पर ध्यान नहीं रख पाने और पके भोजन ढक कर नहीं रखने से यह परेशानी अधिक होती है.

दोस्तों होली के मोज-मस्ती के साथ-साथ हमें यह नहीं भूलना चाहिए आज विश्व जल-संकट के दौर से गुजर रहा है. और हम सभी यह बखूवी समझते हैं की “जल है तो जीवन है” आईये हम सभी साथ में मिल कर संकल्प लें की होली में जल का दुरूपयोग नहीं होने देंगे. गुलाल का उपयोग कर हम होली और अपने जीवन को रंगों से भरेंगे.

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3 Comments

  1. nagendra mishra
    March 23, 2016
    Reply

    very useful & fruitful quote rajanish ji,especially water crises..
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