आशा से जीता जा सकता है जहान


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दीपावली की रात थी. किसी तकनीकी कारण से बिजली चली गई थी और पूरी रात उसके आने की संभावना नहीं थी. एक अत्यंत गरीब घर में गृहिणी ने 4 दिए जला रखे थे. गृहिणी का छोटा-सा बालक उन दीयों को देख देखकर प्रसन्न  हो रहा था.

कुछ देर बाद जब गृहिणी खाना बनाने लगी, तो बच्चा भोजन करने बैठ गया. एकांत पाकर चारों दिए में बातचीत होने लगी. पहले दिए ने कहा, मैं शांति हूं, किंतु आज की दुनिया में मेरी आवश्यकता नहीं रह गई है. आज हर तरफ धन कमाने की होड़ है, लूटमार है, ऐसे माहौल में मेरे लिए रहना मुश्किल है. मैं तो यहां से प्रस्थान करने की इच्छुक हूँ.  यह कहकर वह बुझ गया. तब दूसरे दिए ने दुःखी हो कर कहा, ‘मैं विश्वास में हूँ. झूठ और छल प्रपंच से भरे इस समाज में मैं महत्वहीन हो गया हूँ. ऐसी स्थिति में मैं भी यहां से जा रहा हूँ. यह कहते हुए वह दिया भी बुझ गया. अब तीसरे दीए की बारी थी वह बोला ‘मैं प्रेम हूँ. मेरे पास निरंतर जलने की शक्ति है, किंतु इस स्वार्थी दुनिया के लोग इतने व्यस्त हैं कि दूसरों से तो दूर, अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं.  अतः मैं भी जा रहा हूँ. वह दिया भी बुझ गया.

उसके बुझते ही वह छोटा बच्चा वहाँ आया और तीनों दियों को बुझा देखकर रोते हुए कहने लगा, ‘अरे दीयों ! तुम क्यों बुझ गये ?  इस तरह बीच में हमें छोड़कर तुम कैसे चले गए ? तब  चौथे दिए ने उससे कहा, ‘प्यारे बच्चे ! घबराओ मत, मैं आशा हूँ. और जब तक मैं प्रदीप हूँ, शेष दिये भी जला लेंगे.’  यह सुनकर बच्चे के चेहरे पर मुस्कान आ गई और उसने आशा के बल पर शांति विश्वास और प्रेम को पुनः प्रकाशित कर दिया.

शिक्षा : जब सबकुछ प्रतिकूल हो तब भी आशा का दामन मत छोड़िए,  क्योंकि आशा पर आसमान टिका है. वस्तुत आशा से कर्म का उत्साह बना रहता है और उसका फल मिलता है.

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2 Comments

  1. ketan jha
    November 11, 2016
    Reply

    Yee bahoot bra chij h insan ko himmt milta h ek positive sooch milta or positive soch rehta andr biswaas rehta h

    • November 15, 2016
      Reply

      धन्यवाद् केतन जी !

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