मैथली कवि कोकिल विद्यापति ठाकुर का जन्म 1360 ई० में बिहार के मधुबनी जिला के बिसपी ग्राम में हुआ. श्रृंगार और भक्ति रस के कविता के बीच संतुलन स्थापित करने वाले विद्यापति एक महान रचनाकार थे. इन्हें अनेक उपाधि प्राप्त है. जैसे – अभिनव जयदेव, कविशेखर, कवि कंठहार, कविरंजन, कवि कोकिल आदि. कवि कोकिल विद्यापति का भगवन शिव और पार्वती के बीच का एक संवाद गीत जो बहूत प्रसिद्ध है.
नटराज
आजू नाथ एक बरत , महासुख लाबह हे ।
तोहें शिव धरु नट बेस कि डमरू बजाबह हे ।
तोहें गौर कहै छह नाचए, हमे कोना नाचाब हे ।
चारी सोच मोहि होए कओन बिधि बांचाव हे ।
अमिअ चुबिय भुई खसत बघम्बर छाएत हे ।
होयत बघम्बर बाघ बसह धए खायत हे।
जटासओं छिलकत गंग भूमि भरि छायत हे ।
होयत सहसमुख धार, समेटलो न जायत हे ।
रुण्डमाल टूटी खसत, मसानी जागत हे ।
तोहें गौर जएबह पड़ाए , नाच के देखत हे ।
भइन विद्यापति गाओल गाबि सुनोल हे ।
राखल गौरि के मान कि चारू बचाओल हे ।
आजू नाथ एक ………. ।
कवि कोकिल विद्यापति की मैथली में एक बहूत ही प्रचलित रचना “गौसौनिक गीत” भगवती का गीत है ।
जय जय भैरवी
जय-जय भैरवी असुर भयाउनी, पशुपति भामिनी माया ।
सहज सुमति वर दिअ हे गोसाउनी, अनुगति गति तूअ पाया ।1।
बासर रइनि सवासन सोभित, चरण चंद्रमणि चुडा ।
कतओक दैत मारी मुँह मेलल, कतेक उगिली करू कूड़ा ।2।
सामर बरन नयन अनुरंजित, जलद जोग फूल कोका ।
कट-कट विकट ओठ-पुट पाँड़रि, लिधुर फेन उठ फोका ।3।
घन-घन घनन घुघुर कटी वाजए, हन-हन कर तूअ काता ।
विध्यापति कवि तूअ पद सेवक, पुत्र बिसरू जनि माता ।4।
जय जय भैरवी ………….. ।
मैथली कवि कोकिल विद्यापति की तिन भाषाओँ में रचना मिलती है ..संस्कृत / अवहट्ट / और मैथली ।
संस्कृत में इनकी रचनाओं में –
भूपरिक्रमा
पुरुष परीक्षा
लिखनावली
शैवसर्वस्वसार
गंगावाक्यावली,
दानवाक्यावली
दुर्गाभक्ति तरंगिनी
मणि मंजरी ।
अवहट्ट में इनकी रचनाओं में –
कीर्तिलता और कीर्तिपताका ।
मैथली में इनकी रचनाओं में –
विद्यापति-पदावली और मैथली मिश्रित नाटक-गोरक्षविजय ।
मैथली साहित्य के महान कालजयी रचनाकार का अवसान 1448 ई० में हो गया । कहा जाता है की विद्यापति इतने बड़े शिवभक्त थे की स्वयं महादेव उगना के वेश में इनके साथ नौकर के रूप में रहें । मिथांचल के लोकव्यवहार में गाये जाने वाले गीतों में इनकी रचनाओं की एक अलग ही विशेषता है ।
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Niceee bahut aacha
Vidya pati ki poet bhut achhi h aur inki bhakti bhi bhut achhi thi bihar me aise pursh janm liye h