बहूत से लोग ऐसे होते हैं, जो स्वंय अज्ञानी होते हुए भी अपने को सर्वज्ञ समझने का अहंकार पाले रहते हैं. इस अहंकार के कारण ही वो दूसरों को अपने कंधे पर ले जाने को तैयार रहते हैं. इसका परिणाम यह होता है की एक अँधा, दुसरे अंधे का अगुआ बनते हैं और दोनों ही गड्ढे में गिर पड़ते हैं.
यह सोचना की मेरे ऊपर ही कोई निर्भर है, यह अत्यंत दुर्बलता का चिन्ह है. यह अंहकार की समस्त आसक्ति की जड़ है और इस आसक्ति से ही समस्त दुखों की उत्पत्ति होती है. हमें अपने मन को यह भली भांति समझा देना चाहिए की इस संसार में हम पर कोई निर्भर नहीं है. हर वक्ति की अपनी निर्भरता उस पर स्वंय है और वह अपने साथ होने वाले किसी भी कारण के लिए स्वंय दोषी है.
इसीलिए अज्ञानता रूपी अंहकार से बचो और ज्ञान की शालीनता को अपनाओ. अपने चारों ओर हम जो अशुभ तथा क्लेश देखते हैं, उन सबका केवल एक ही मूल कारण है – अज्ञान.
मनुष्य को ज्ञान-लोक दो , उसे पवित्र एवं अध्यात्मिक बल-संपन्न करो और शिक्षित बनाओ, तभी संसार से दुःख का अंत हो पायेगा. यदि मनुष्य के भीतर से अज्ञानता नहीं गई, तो समझो यह अशुभ और क्लेश कभी नहीं दूर होने वाले.”
its very useful for people who takes it positively.
धन्यवाद् सर मार्गदर्शन करते रहें ।