राजा उदयन की पत्नी ने एक बौद्ध मठ को 500 चादरें दान में दी. आयुष्मान आनंद नाम का एक भिक्षु वह चादरें लेने महल में आया. जब आनंद ने चादरें लेकर जाने की अनुमति चाही तो राजा उदयन ने कहा – ‘मेरी कुछ उत्सुकता को शांत करें.’
राजा ने पूछा आप इतने चादरों का क्या करोगे ? ‘जिन भिक्षुओं के पोशाक फट गए हैं हम इन चादरों से उनके नए वस्त्र बनवा देंगे.’ राजा प्रश्न पूछते रहे और आनंद उन प्रश्नों के उत्तर देते रहे.
‘शिष्यों की पुरानी फटी पोशाकों का क्या होगा ?’ हम उनसे छोटे-छोटे आशन बना लेंगे.’
‘आप पुराने फटे आसनों का क्या करेंगे ?’ हम उनसे छोटे बैग तथा कुछ अच्छी स्थिति के पुराने आसनों के तकियों के गिलाफ बना लेंगे.’
‘तो फिर इन पुराने गिलाफों का क्या होगा ?’ ‘हम उन्हें इकट्ठा करके या तो उन्हें झारन के रूप में या फिर गद्दों को भरने के काम में लायेंगे.’
‘उन पुराने गद्दों तथा झारन के कपड़ो का काया करेंगे ?’ ‘हम उनका पाऊडर बनाकर उसे इट के चूरे में मिला कर दीवारों का प्लास्टर करेंगे .’
राजा उदयन बौद्ध संघ के वित्तीय प्रबंधन से पूरी तरह संतुस्ट थे इससे उनको ज्ञान प्राप्त हुआ. उन्होंने कुछ सीखा तथा इस विचारों को अपने राज्य के वित्तीय प्रबंधन में लागु भी किया. उन्होंने यह भी घोषणा करवा दी कि अब किसी भी चीज को बर्वाद न किया जाय और जहाँ तक हो सके उसका पुन: उपयोग किया जाए.
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