Category: यात्रा-वृतांत

  • महात्मा गांधी, परचुरे शास्त्री और सेवाग्राम

    महात्मा गांधी, परचुरे शास्त्री और सेवाग्राम

    ये सेवाग्राम स्थित परचुरे शास्त्री की कुटी है। संस्कृत के विद्वान परचुरे शास्त्री ने कुष्ठग्रस्त होने के बाद अपने आख़िरी दिन सेवाग्राम आश्रम में ही बिताए थे। नारायण देसाई ने अपनी किताब ‘बापू की गोद में’ परचुरे शास्त्री से महात्मा गांधी के लगाव पर मर्मस्पर्शी ढंग से लिखा है। वह अंश पढ़ें :

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  • कुछ यात्रायें ऐसी होती हैं, दिल करता है कभी ख़त्म न हो

    कुछ यात्रायें ऐसी होती हैं, दिल करता है कभी ख़त्म न हो

    कुछ जगहें आपको वापस बुलाती हैं, एक बार फिर से जाने को दिल मचलता है. हमारी बाली यात्रा कुछ ऐसी ही थी. मेरी पत्नी के लिए तो यह पहली नज़र का प्यार था.

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  • कम्बोडिया और अंगकोर : मेरा प्रवास

    कम्बोडिया और अंगकोर : मेरा प्रवास

    सोशलिज्म कितना खूनी हो सकता है ? पूंजीवाद कितना खूनी हो सकता है ? किसी देश के इतिहास का एक ऐसा कालखंड जब विभिन्न विचारधाराओं के एक के बाद एक इम्प्लीमेंटेशन ने  ३० लाख  (कुल आबादी का २१%) लोग मार दिए ।   कुछ आंकड़ों पर नज़र डालें।  कम्बोडिया को फ्रेंच उपनिवेशवाद से १९५३ में आजादी मिली। राजसत्ता वापस कम्बोडिया के राजकुमार सिंहनूक के हाथ में गयी।   (more…)

  • काबर झील पक्षी अभयारण्य

    काबर झील पक्षी अभयारण्य

    क्षेत्र है बेगूसराय के मंझौल अनुमंडल में अवस्थित काबर झील का जो एशिया के सबसे बड़े मीठे पानी के झील में से एक माना जाता है. (more…)

  • काशी – यात्रावृतांत

    काशी – यात्रावृतांत

    अभी काशी से विदा भी नहीं हुआ था कि कूची मष्तिष्क के अंतरपटल पर हर्ष की स्याही से क्षणों को दकीचे जा रहा था । पेट से माथे तक बबंडर उठा हुआ था । लेखक मन व्याकुल था, बार-बार कोशिस करता था और शब्द अव्यवस्थित हो रहे थे । मैं हर क्षण को शब्दों की चादर में छुपाकर आप तक सहेजकर लाना चाहता था । (more…)

  • छोटकी भौजी

    छोटकी भौजी

    आमतौर पर मेरा दिल्ली से प्रेम का एक वजह आप मेट्रो का होना कह लिजिये । इसने इस घुम्मकर किस्म के इन्सान को एक ठौर दिया । और समझ लीजिये उसे और घुमने के लिए उकसाने का भी काम किया । कोई 10 बजे सुबह का समय रहा होगा । (more…)

  • चप्पल-जूता छुआ-छुत और जाति-धर्म

    चप्पल-जूता छुआ-छुत और जाति-धर्म

     

    समान्य श्रेणी और पूर्ववत् पधारे सहयात्री के बीच जोरो-आजमाइश करते हुए उचित स्थान काफी मसक्कत से ग्रहण किया उपरी पाईदान (सोने वाली सिट ) पर बैठ गया कुछ देर के उपरांत देखा ! (more…)

  • इससे अच्छा तो गुलाम ही था..

    इससे अच्छा तो गुलाम ही था..

    17 जुलाई 2015 दिन शुक्रवार, मैं सबेरे 7 बजे ही दरभंगा रेलवे स्टेशन पहुँच चूका था । कारण था मुझे दिल्ली जाना था, पर मेरे पास रिजर्वेशन टिकेट नहीं था.. (more…)

  • बचपन का भोलापन और पापा का डर

    बचपन का भोलापन और पापा का डर

    सब कुछ सही था. हम अपने धुन में खोये हुए जयपुर के प्रसिद्ध किले  को देखने जा रहे थे. रास्ते में बाइक पर पीछे बैठ कर जल महल को देखने का आनंद कुछ अलग ही तरीके का होता है, तो मैं उस आनंद के सागर में गोते लगा रहा था. गुलाबी सर्दी पुरे….

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