रक्तांचल : कहाँ आ पाया वो स्वाद ?


raktanchal web series review

ऐसा कहना बिल्कुल अतिश्योक्ति नहीं होगी कि और जो भी हो मगर ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी दमदार क्राईम-थ्रिलर फिल्मों से लोगों का टेस्ट जरूर बदल गया है। जिसका प्रमाण आपके सामने है कि मिर्जापुर, पाताल लोक जैसी वेब सीरीज इतनी लोकप्रिय हो रही है। अभी हाल में ही एम एक्स प्लेयर पर रिलीज हुई नई वेब सीरीज “रक्तांचल’ भी लगभग उसी जेनर की है।

अस्सी की दशक में उत्तरप्रदेश के माफिया राज, राजनीतिक हालात को बखूबी दिखाया गया है, कहानी की शुरुआत एक सामान्य परिवार में जन्म लेने वाले लड़के (विजय सिंह) से होती है, जो पूर्वांचल के अन्य छात्रों की तरह आई. ए. एस बनने का सपना देख रहा होता है। मगर पिता की निर्मम हत्या उसके सामने ही वसीम खान के गुंडे कर देते हैं, जिससे विजय की जिंदगी में एक तूफान सा खड़ा हो जाता है, अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए सारा पढ़ाई-लिखाई छोड़कर वह जुर्म की दुनिया में कदम रख देता है, समय का ऐसा चक्र की देखते ही देखते वह इस दुनिया का बादशाह बन जाता है जो वसीम खान से दो-दो हाथ करने को उतावला रहता है। दोनों गैंग के बीच होने वाली मुठभेड़ से आये दिन पूर्वांचल में खून की होली खेली जाती है।

पूरी सीरीज में ‘बाटला हाउस’ एवं ‘धोनी द अनटोल्ड स्टोरी के साथ और भी कई लोकप्रिय एवं दमदार फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले अभिनेता ‘क्रांति प्रकाश झा’ (विजय सिंह) यहाँ भी अपने अभिनय का छाप छोड़ जाते है, अपनी डायलॉग डिलीवरी देते हुए अनायास रणदीप हुड्डा की याद दिला देते हैं। विलेन के रुप में निकितन धीर (वसीम खान) को थोड़ी और मेहनत करने की जरूरत थी क्योंकि खास कर विलेन में जब कोई सपाट रूप से अपनी बातों को रखता है तो बेमजा हो जाता है, उसमें भी जब आप पूर्वांचल से हो तो वह बात यहाँ आनी चाहिए थी। अगर इन दोनों के अलावा अन्य की बात की जाए तो विक्रम कोचर (सनकी) ने दिल जीता है। भूपेश सिंह (इरशाद) ने अपने काम को अच्छा अंजाम दिया है, जितना करवाया गया है, उन्होंने उसे बखूबी निभाया है। साहेब सिंह के  रूप में मजे हुए कलाकार दयाशंकर पांडे से और आउटपुट लिया जा सकता था। पुजारी सिंह (रवि खान विलकर) एवं प्रमोद पाठक (त्रिपुरारी) ने कमोवेश अच्छा काम किया है। रोंजिनी चक्रवर्ती (सीमा) और कृष्णा बिष्ट (कट्टा) की एंट्री भले ही बाद में हुई हो लेकिन इन दोनों ने लगभग एक सपाट होती हुई कहानी में जान डालने का काम किया है।

रक्तांचल का निर्देशन रीतम श्रीवास्तव ने किया है जबकि इसकी पटकथा को संजीव, सर्वेश, शशांक ने संयुक्त रूप से लिखा है। वेबसीरीज की कहानी में अन्य कई फिल्मों का छाप भी थोड़ा खटकता है जो कहीं ना कहीं इसे प्रभावहीन बना देती है। अगर इसके अन्य पहलुओं पर गौर करेंगे तो साफ पता चल जाएगा कि वही घिसा-पीटा साम्प्रदायिक दंगों को दिखाकर आप कौतुहल बना कर रखना चाहते हैं, मगर क्या अब इस आधुनिक दौड़ में दर्शक को बाँधे रखना क्या इतना आसान है ? बिल्कुल नहीं, क्योंकि अभी संसाधन की कमी नहीं है और तो और उनके पास स्कीप करने का ऑप्शन ओपन रहता है। ऐसी स्थिति में पूरी तरह से जब तक आप प्रभावित नहीं कर पायेंगे, उनको चैनल बदलने में बिल्कुल समय नहीं लगता है। कुछेक जगह को अगर छोड़ दिया जाय तो ऐसा लग रहा है मानो कुछ भी काम चलाऊ चीज परोस दिया गया हो। अरे भई, आपको सोचना चाहिए था जब लोगों के पास इतना समय है, कोई बंधन नहीं है तब वह बिरयानी छोड़कर आपके खिचड़ी को नहीं हजम कर पायेगा।

अगर अगली सीरीज बनानी ही थी तो और बहुत काम शेष था, जैसे विजय सिंह की प्रेम कहानी, क्लाइमेक्स आदि पर बेहतर काम किया जा सकता था। आइटम सॉन्ग तो बस ऐसा लगा जैसे चिपका दिया गया हो। अगर कुछ तथ्यों पर ध्यान दिया जाए तो अगली सीरीज बेहतर बन सकती है। कहने का तात्पर्य है कि पूर्वांचल को पूरी तरह ध्यान में रखा जाय क्योंकि अभी भी यहाँ सरसो वाली बैगन की सब्जी पसन्द की जाती है, टमाटर का क्या भरोसा? कुल मिलाकर अगर क्राइम और थ्रिलर की बात करें तो कुछ हद तक यह एक सफल वेबसीरीज है, एक बार देखी जा सकती है। रक्तांचल की पूरी टीम को मेरी शुभकामनाएं।


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लेखक : पंकज कुमार

संप्रति : टाटा स्टील, अंगुल, उड़िसा में विद्युत अभियंता के रूप में कार्यरत।

पता : ग्राम-पोस्ट– मधेपुर, जिला– मधुबनी, पिन कोड : 847408 ( बिहार), ईमेल : kumar.pankaj525@gmail.com , मोबाईल : 9658135262

शिक्षा : विद्युत अभियंत्रण में स्नातक। वर्तमान में मैथिली विषय अन्तर्गत परास्नातक में अध्ययनरत।

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1 Comment

  1. Ritu Mishra
    June 1, 2020
    Reply

    👌👌👌

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