का करें सर, पैसा तो है नही ! चक्की बेच दें ?


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भरत आज भरथा से भरत भाई हो गए हैं । आज आप इनके गांव जाओ और किसी को पूछो कि भरत जी का घर कहाँ है तो लोग आपको इनके घर तक पहुँचा देंगे, पर चलते-चलते जरूर पूछ देंगे कि कोनों कंपनी से आये हैं का ? बहुते कंपनी वाला सब उनके पास आते रहता है ।

पूर्वी चंपारण के पकड़ी दयाल प्रखंड में एक गाम है सिरहा । यही भरत का गाम है, यहीं से भरत अपनी जिन्दगी की शुरुवात किये हैं । भरत की उम्र अभी कुछ 26 बरस हुई है, पर जिन्दगी को बहुत करीब से समझने लगे हैं । तंगी अक्सर चड्डी सँभालने से पहले घर संभालना सिखा देती है । ऐसा ही कुछ भरत के साथ भी हुआ ! गाँव से ही किसी तरह बारहवीं का इम्तहान दिए और रिजल्ट आने से पहले ही नौकरी की तलाश में हजारों मजदूरों की तरह ट्रेन में लटक लिए । पहुँच गये आंध्रप्रदेश । आकीबाडू नाम के एक जगह पर एक मछली फार्म में सुपरवाइजर का काम मिला, पर रास नही आया । माँ-बाबूजी, गाम-घर, खेत-खलिहान सब सपने में आने लगे और अभी 6 महीना भी नहीं हुआ था कि एक दिन सबको हाय-बाय करके जनरल बोगी में चढ़ लिए और पहुँच गये अपने सिरहा । जब तक पैसा था जेब में, गाम अच्छा लग रहा था और गाम वालों को भी भरत अच्छे लग रहे थे पर जल्दी ही सबकुछ बदलने लगा ।

छठ पूजा के बाद हर बार गाम पहले से ज्यादा सूना हो जाता है । वापस लौटते परदेसियों की भीड़ में कई नये चेहरे स्कूल के बस्त्ते में चादर, कम्बल और कपड़े ठूसे हुए रेलवे प्लेटफ़ॉर्म पर, बस स्टॉप पर दिख जाते हैं । एक बार इस भीड़ में फिर से भरत भी था । इस बार भरत गाम को भूलने के लिए गाम से बहुत दूर तमिलनाडु जा रहा था ।

भरत को तमिलनाडु में एक स्टील प्लांट में नौकरी मिल गयी थी । वहाँ खाना-रहना मिला हुआ था उपर से आठ हज़ार तनख्वाह भी मिलता था । घर पर 3 लोगों का परिवार था- पत्नी, माँ, बाबूजी । सबके लिए दो हज़ार के हिसाब से खर्चा भेज दिया करता था । अभी 7 महीने हो गये थे, आठवां शुरू था । सब अच्छा अच्छा ही लग रहा था उसे । पर नियति को कुछ और मंजूर था । एक दिन फैक्ट्री में एक दुर्घटना हो गयी और भरत के एक साथी मजदूर की मौत हो गयी । पुलिस सब मजदूरों को उठाकर ले गयी और खूब पिटाई की । भरत थोडा डर गया था । उसे ये बेइज्जती सा लगा । और अगली सुबह भरत फिर से एक बार हाय-बाय करके जनरल बोगी में था । इस बार रास्ते में ये तय कर लिया था कि अब बाहर नहीं जाना है, गाँव में ही कुछ करना है । वापस आकर सबसे पहले एक आटा चक्की लगाया । और बाबूजी के साथ खेती में जुट गया । दिनभर खेत में और सुबह-शाम गेहूँ पिसाई । आइडिया चल निकला । भरत काफ़ी खुश था । 2.5 एकड़ पुश्तैनी जमींन थी और कुछ एक एकड़ लीज पर भी ले लिया था । पर धीरे-धीरे परिवार बढ़ने लगा, देखते ही देखते समय के पंख लग गये, भरत 2 बेटे और 2 बेटियों के बाप बन गये थे, समस्याएँ बढ़ने लगी थी । एक बार फिर से भरत परेशांन था । खेती भी 2 साल धोखा दे गया !

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इसी दौरान हमारी मुलाकात भरत से हुई | कौशल्या फाउंडेशन द्वारा Syngenta foundation के सहयोग से कृषि उद्यमी कार्यक्रम शुरू किया जा रहा था | कार्यक्रम का उद्देश्य था कि प्रत्येक पंचायत या गाम में एक कृषि उद्यमी हो जो अपने गाम अपने आस-पास के किसानों को सभी कृषि सुविधाएँ यथा- खाद-बीज की उपलब्धि, मिट्टी जाँच की सुविधा, प्रसार एवं कृषि सलाह, बैंक ऋण, नई एवं उन्नत तकनीक और कृषि उत्पाद की बिक्री की सुविधा उपलब्ध करवाए | प्रारंभिक जाँच में भरत काफ़ी उर्जावान और सशक्त उम्मीदवार लगे | पूर्वी चंपारण में चार पंचायत से कुल चार लोग चुने गये थे जिनको कृषि तकनीक और कृषि उद्यमिता के प्रशिक्षण के लिए हैदराबाद भेजा जाना था | प्रशिक्षण के उपरांत इन कृषि उद्यमीयों को अपने पंचायत के किसानों के साथ कृषि व्यपार का कार्य शुरू करना था |

 

भरत उर्जावान तो थे ही अब थोड़े ज्ञानवान भी हो गये थे | इनके गाँव में सब्जी की खेती सर्वाधिक होती है, साथ ही मक्का और गेहूँ भी प्रचुर मात्रा में उपजाया जाता है | प्रशिक्षण से आते ही कृषि व्यापार की शुरुवात हुई सब्जी के व्यापार से | गाँव के सभी किसानों से सब्जी एकत्रित करके भरत छोटा ट्रक (पिक-अप) में भरकर मंडी निकल पड़े | मंडी की राजनीति बिल्कुल अपने देश की राजनीति जैसी होती है, नये लोगों को आसानी से जगह नहीं मिलता है | भरत के बोलचाल और पहनावा से उन्हें समझ आ गया था कि नया व्यापारी खड़ा हो रहा है | सभी व्यापारी मिल गये और भाव गिरा दिए | भरत को घाटे में सारा सब्जी बेचना पड़ा | भरत उदास तो थे पर हिम्मत नहीं हारी थी | अगले दिन फिर सुबह-सुबह दूसरी मंडी में पहुचें, यहाँ भी कल वाला ही हादसा हुआ | एक सप्ताह में भरत को 10 हज़ार का नुकसान हो चुका था | हिम्मत टूट सी गयी थी | जब भरत से मेरी बात हुई तो वो काफ़ी उदास थे, मैं ढाढस दे रहा था |

“बाज़ार में नया लोगों को जमने नहीं ना देता है…… का करें सर, पैसा तो है नही…..चक्की बेच दें ? 25 हज़ार करीब मिल जाएगा…..” अचानक से भरत पूछ बैठा था | मैं बेजुबाँ था | कुछ देर सोचकर कहा  “इस पर कल निर्णय करेंगे, पहले ये बताओ कि कितने पैसे की जरुरत है और कैसे फ़ायदा होगा….क्या करेंगे कहाँ बेचेंगे कि अबकी बार घाटा नहीं होगा….?”

अगले दिन योजना बनाया गया, विचार-विमर्श हुआ और चक्की बिक गया | भरत ने एक बैगन का खेत 45 दिन के लिए 11 हज़ार में लीज पर लिया | अभी 7 मई को उसका लीज ख़त्म हो गया | अब तक भरत कुल 19 हज़ार का बैगन उस खेत से निकाल कर बेचे हैं | गाम के किसानों को उन्नत बीज और तकनीक सिखाकर अब अच्छी उपज भी करवाने लगे हैं और अब बाज़ार में भी सब जानने लगा है | पिछले महीने मशरूम का 250 किट लगवाए थे, 50 किट खुद लगवाए और बाकी 5 किसानों को प्रेरित कर उनके यहाँ भी 50-50 किट लगा दिए | मशरूम जब निकला तो इन्हें गाम का बाज़ार ही बेहतर दिखा, गाम में मशरूम खाना शौक का चीज था, अच्छा मूल्य मिला |

अब भरत मक्के की बिक्री की तैयारी में लगे हैं | बैंक से लिंकेज की बात भी चल रही है, खाद-बीज का दुकान भी शुरू करना है | सपने बड़े है, रफ़्तार थोड़ी धीमी है पर हौसला अपने दम पर है | खलिहान से लाइव में किसी दिन हम भरत के साथ चाय पीते हुए खेती-किसानी की बात-चीत भी सुनायेंगे | बस आपका स्नेह बना रहे |


लेखक : अविनाश

 

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