Category: समीक्षा

  • “पालतू बोहेमियन” के कारण मैं अपनी स्मृतियों में लौट गया।

    “पालतू बोहेमियन” के कारण मैं अपनी स्मृतियों में लौट गया।

    अच्छी किताब है। पतली भी। कई बार खोजा लेकिन किसी न किसी किताब के बीच दुबक जाती थी। कल पढ़ ही ली।  मज़बूत स्मरण शक्ति वाला ही संस्मरण लिख सकता है। प्रभात रंजन की पालतू बोहेमियन पढ़ते हुए लगा कि मनोहर श्याम जोशी से मिलते वक्त वे नज़र और स्मरण शक्ति गड़ा कर मिला करते होंगे। मनोहर श्याम जोशी से मैं भी मिला हूं। उसी साकेत वाले घर में कुछ दिनों तक जाता रहा हूं। फ़िल्म लेखन सीखने के लिए। अंधेरा लिए सुबह के वक्त बेर सराय से बस लेकर जाता था। समय के पाबंद थे। मुझे अब याद नहीं कि मैंने कैसे उनसे संपर्क किया था और उन्होंने क्यों हां कर दी। क्यों जाना छूट गया यह भी याद नहीं। लेकिन उनके घर जाता था। बैठकर स्क्रीप्ट की बारीकियां सीखता था और लौट कर बेर सराय के पार्क में खुले आसमान के नीचे फ्रेम सोचा करता था। उन्होंने सम्मान के साथ अपने गुर दिए। कभी बुरा अनुभव नहीं हुआ। पालतू बोहेमियन मेरी कमज़ोर स्मृतियों को चुनौती देने वाली किताब है। इसीलिए पढ़ता भी चला गया। वैसे व्यक्तिगत नाता नहीं भी होता तो भी यह पढ़ी जाने वाली किताब है।

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  • “कुली लाइन्स” पुस्तक समीक्षा

    “कुली लाइन्स” पुस्तक समीक्षा

    विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर एक व्यंग कथा संग्रह के बाद दो दूर देशों की यात्रा वृतांत और फिर ……………… कुली लाइंस ।  (more…)

  • चौंसठ सूत्र, सोलह अभिमान

    चौंसठ सूत्र, सोलह अभिमान

    अविनाश मिश्र कविता के अति विशिष्ट युवा हस्ताक्षर हैं. इस संग्रह में शामिल कविताएँ एक लम्बी कविता के दो खंडों के अलग-अलग चरणों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं. कवि प्रेम में आता है और साथ लेकर आता है—कामसूत्र. वात्स्यायन कृत कामसूत्र. इसी संयोग से इन कविताओं का जन्म होता है. कवि प्रेम और कामरत प्रेमी भी रहता है और दृष्टाकवि भी. वात्स्यायन की शास्त्रीय शैली उसे शायद अपने विराम, और अल्पविराम पाने, वहाँ रुकने और अपने आप को, अपनी प्रिया को, और अपने प्रेम को देखने की मुहलत पाना आसान कर देती है, जहाँ ये कविताएँ आती हैं और होती हैं. यह शैली न होती तो वह प्रेम में डूबने, उसमें रहने, उसे जीने-भोगने की प्रक्रिया को शायद इस संलग्नता और इस तटस्थता से एक साथ नहीं देख पाता. कोई इन कविताओं को सायास रचा गया कौतुक भी कह सकता है, लेकिन इनका आना और होना इन कविताओं के शब्दों और शब्दान्तरालों में इतना मुखर है कि आप इनकी अनायासता और प्रामाणिकता से निगाह नहीं बचा सकते. ये उतनी ही प्राकृतिक कविताएँ हैं, जितना प्राकृतिक प्रेम होता है, जितना प्राकृतिक काम होता है. ख़ास बातें काम की चौंसठ कलाएँ और स्त्री के सोलह श्रृंगार – इस संग्रह की 80 कविताओं के आलम्बन यही हैं. इन कविताओं को पढ़ना प्रेम में होने, उसे जीने, अनुभूत करने की प्रक्रिया से गुजरने या स्मृति-आस्वाद को दुहराने जैसा है. कवि का अनुभव-सत्य पाठक के जीवनानुभव के आस्वाद को नया अर्थ देने जैसा है. किताब संग्रहणीय भी है, सुंदर प्रेम-उपहार भी.

    चौंसठ सूत्र, सोलह अभिमान पर युवा कवि अंचित लिखते हैं…..

    अविनाश की नयी किताब आख़िरकार पटना आ गयी है. कई साल पहले पहली बार उनका लिखा यही कुछ पढ़ा था. तिरछी स्पेलिंग पर. कामसूत्र रति के सूत्रों की किताब है – अतिशयोक्ति में वहाँ तक जाती जहाँ हास्यास्पद हो जाने या समय से पूर्व होने का ख़तरा लगातार बना रहता है.

    कवि जो अनिभिज्ञ है उसको हमारे रेफ़्रेन्स फ़्रेम में सेट करने की कोशिश करता है. फिर यह भी कह देना चाहिए कि अविनाश का पलेमिक्स इनमें इस तरह से है कि कवर पर “कामसूत्र से प्रेरित” लिखे होने पर भी यह अविनाश की कविताएँ हैं – अपने भाषा के बर्ताव में, मूल विचारों के चयन के बावजूद उनके भी बर्ताव में.

    ये कविताएँ नए प्रेमी की व्यग्रता वाली कविताएँ नहीं है. ना ही इन कविताओं का प्रेमी आवेश और अनुभवहीनता में ग़लतियाँ करता है. यह सीधा कामसूत्र से निकला श्रेष्ठ प्रेमी है जो व्यवहार जानता है और प्रेम को ज्ञान की तरह सीख चुका है – नेरुदा के प्रेमियों से अलग वह दूर से प्रेमिका को सोते हुए देख सकता है और रति की सम्भावना के प्रति इंतज़ार में रह सकता है. उसको प्रेमिका के शरीर का भी भान है और कब कहाँ पहुँचना है, इसका समय जानता है. पूरे नवासी पन्ने इंतज़ार करने के बाद जब गजरा आता है तब गंध से भेंट होती है और कवि का प्रेमी स्वीकार करता है कि वह अपनी सुगंध से भी परेशान है.

    टी.एस.एलीयट का जैसा मानना रहा है या जो वे खोजते रहे, इन कविताओं में भी प्यार करने वाला प्रेमी और ये कविताएँ लिखने वाला कवि अलग अलग है – डिटैच होकर दूर से देखता हुआ – आतुरता और व्यग्रता से परे, प्रेम से ज़्यादा अपनी कहन के बारे में ज़्यादा चिंतित. फिर भी इतनी सरलता से कहा हुआ कि सुंदर

    किताब से एक पसंद की कविता :

    परिचयकारण

    सुंदरताओं के सूत्र
    सुंदरताओं को नहीं देते

    जब तुमने कहा:
    “मैं इतनी सुंदर नहीं हूँ.”

    मैने नहीं कहा :
    “मेरी आँखों से देखो.”


    LINK : इस लिंक पे जा के आप पुस्तक खरीद सकते हैं ( Chaunsath Sutra Solah Abhiman: Kaamsutra Se Prerit )

  • सोशल मीडिया का बढ़ता दबाव और ख़ुद को भुलाते हम !

    सोशल मीडिया का बढ़ता दबाव और ख़ुद को भुलाते हम !

    “यूँ तो हमारे ऊपर सोशल मीडिया का दबाव इस क़दर तक बढ़ चला है कि हम ख़ुद का हीं स्वाभाविक चाल चरित भूल गए हैं, किंतु हालात सोचनीय इस बात को लेकर है की इस होड़ में कई बार हम ख़ुद तक को धोखा देने लगते हैं” (more…)

  • विभाजन काल का मुक़म्मल दस्तावेज है – “पाकिस्तान मेल”

    विभाजन काल का मुक़म्मल दस्तावेज है – “पाकिस्तान मेल”

    मैंने बहुत ज्यादा किताबें पढ़ी भी नहीं है और जो पढ़ी हैं उनमें 4-5 किताबों ने मुझे खासा प्रभावित किया है । उन्हीं 4-5 में से एक है – पाकिस्तान मेल । लेखक, पत्रकार खुशवंत सिंह की ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ का सुप्रसिद्ध लेखिका उषा महाजन ने बेहतरीन हिंदी अनुवाद किया है । (more…)

  • इश्क कीजिए, फिर समझिये, ज़िन्दगी क्या चीज है..

    इश्क कीजिए, फिर समझिये, ज़िन्दगी क्या चीज है..

    अवसाद बीमारी है ! बहुत भयंकर वाली । जिसका इलाज समय से ना होने पर लोग जीते जी जिन्दा लाश की तरह होते हैं । आत्महत्या करने का जी करता है ! आज कल के समय में यह किसे और कब हो जाए कुछ पता नहीं । सामाजिक रूप से मान-मर्दन, शारीरिक रूप से बिमार, किसी अपने से मिला धोखा, खुद से कुछ ज्यादा उम्मीद, बहुत सारे कारण होते हैं । बड़े से बड़े जांबाज लोग अवसाद में मौत को गले लगा रहे हैं । (more…)

  • डियर कार्ल मार्क्स !

    डियर कार्ल मार्क्स !

    जब आपके अनुयायी पिछले दस सालोँ में जे.एन.यू मे दलितोँ के उत्थान, गरीबोँ को न्याय इत्यादि पर सेमिनार आयोजित कर रहे थे, तो भारत के निम्न मध्यम वर्गीय परिवार का दो यूवक फ्लिपकार्ट बनाने में जुटे थे. (more…)

  • कोशी, मिथिला और सरकारें- खट्टरकाका की डायरी से

    कोशी, मिथिला और सरकारें- खट्टरकाका की डायरी से

    सन 2008 में जब कोशी कोसी में बाढ़ की वजह से मिथिला का एक बहुत बड़ा हिस्सा तबाह हुआ था उस समय मैंने कोशी पर एक ब्लॉग लिखा था कि कैसे स्वतंत्रता (more…)

  • थोड़ी सी दारू मिल जाय तो ऑर्केस्ट्रा को भी लाइव कर देंगे पत्रकार जी !

    थोड़ी सी दारू मिल जाय तो ऑर्केस्ट्रा को भी लाइव कर देंगे पत्रकार जी !

    जमीन बदल गई तो मायने बदल गए। मायने बदले तो चेहरा बदल गया,रहन-सहन और जीवन की शर्तें बदल गईं। वैश्विक अर्थशास्त्र की इस बाढ़ के चलते खासा बदलाव आ गया है समाज में। तो फिर कैसा पत्रकार और कैसा दिवस। (more…)

  • जैसे कैंसर का ईलाज़ सिगरेट की डब्बी तोड़ना नहीं हो सकता

    जैसे कैंसर का ईलाज़ सिगरेट की डब्बी तोड़ना नहीं हो सकता

    अगर कोई शख़्स कैंसर से जूझ रहा हो तो उसका ईलाज़ सिर्फ सिगरेट की डब्बी तोड़ देने भर से नहीं हो सकता । अगर सिगरेट ही उसकी बीमारी की वजह रही हो फिर भी नहीं बल्कि ईलाज़ का सही तरीक़ा ज़रूरी होता है ।  (more…)