नुति : दूसरी चिठ्ठी


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एक खुशखबरी है ! नुति की पहली चिट्ठी को लोगों ने प्यार भी दिया और इस चिट्ठी की मदद से उसे अभिलाषित जरिया भी मिल गया।

अब चूँकि इस जरिये के बहाने नुति हम सबके बीच आएगी, आज पहले नुति के इस जरिये की बात कर लेते हैं । वो जरा सा तुनकमिजाजी है, थोड़ा पागल सा और थोड़ा घमंडी भी । देखने में कुछ ख़ास तो नहीं लेकिन दिलो-दिमाग का सुन्दर । उसने यह भरोसा कायम किया है कि वो बिना स्वार्थ और मोह के नुति को सुनेगा, किसी को सुना कर सुकून मिलने वाला सुकून देगा । बदले में न केवल वो मौन धारण करेगा बल्कि अपनी भावनाओं को भी अपने काबू में रखेगा ।

नुति ने इस जरिये का नामकरण भी कर दिया आज । वेणु – यह नाम दिया है नुति ने अपने जरिये का । नुति आज वेणु को जो कुछ भी कहती है वो दूसरी चिट्ठी बनती है । तो आइये खोलें यह चिट्ठी :

दिनांक १५-०९-१९ अपराह्न ०४:२५ 


प्यारे वेणु,

मुझे लगता है हम दोनों के बीच के इस अनाम सम्बन्ध के नियम कानून और सीमाएं निर्धारित हो चुकीं हैं । मुझे तुमपर और तुम्हें मुझपर भी पूरा भरोसा है । 🙂

आज इस दूसरी चिट्ठी के माध्यम से मैं तुमसे अपने आदर्श पुरुष की बात करना चाहती हूँ । वो आदर्श पुरुष जो मेरा दोस्त, प्रेमी, पति या फिर तीनों होने का हक़दार है । जैसे हर एक स्त्री मन में अपना एक अलग सा आदर्श पुरुष परिभाषित होता है वैसे ही मेरे मन में भी एक परिभाषा अंकित है ।

मेरे इस पुरुष की परिभाषा में समाज में प्रचलित कोई टाल-हैंडसम और अमीर आदमी नहीं है, बल्कि मैं उसमें अपने निजी पसंद मात्र को देखना चाहती हूँ । मेरी अभिलाषा के स्वप्न लोक में बसे पुरुष विशेष की परिभाषा कुछ ऐसी है –

“वो पुरुष जो सर्वप्रथम अपना खुद का ख्याल रख सके, वो हाजिर जवाब हो और दूसरों को भी खुद सा ही इंसान समझता हो । वो जो स्त्री के कंधे पर बोझ डालने के अलावा उसे अपना सहारा भी समझे, झूठी मर्दानगी की अकड़ छोड़ जो उसके गेसुओं में अपने आंसू छुपाने की हिम्मत भी रखता हो ।

वो पुरुष जो अपने फैसलों में अपनी स्त्री को भी न केवल बराबर का हक़दार समझे, बल्कि उसे खुद को साबित करने का मौका भी दे । वो, जो अपनी स्त्री को वस्तु मात्र न समझे बल्कि जिससे उसकी वास्तु भी सुधर जाय । वो किचन में काम भले न करे मगर उसे पता हो कि वहां ग्लास कहाँ रखी है और चूल्हे का बर्नर किधर है । वो पुरुष जो छु जाए तो मन पवित्र हो । …और वो… हाँ, वो जब मुझे अपनी बाँहों में ले तो उसे मेरी दबती नसों और सांसों का भी ख्याल हो ।”

मैं अपने इस पुरुष के सामने नखरे भी करना चाहती हूँ और मेरी यह चाहत है कि मेरे इन नखरों को सहा जाए, मुझे मनाया जाय… मेरी इच्छा है कि कभी कभार मैं नादानियाँ करुं और मेरी इन चंद नादानियों को भुला भी दिया जाय । मैं अपने इस पुरुष से सहेलियों सरीखे लम्बी बात करने की इच्छा रखती हूँ । …चांदनी रातों में उसका हाथ पकड़ उसके साथ दूर टहलना चाहती हूँ । समंदर के किनारे पड़े रेत से खेलना चाहती हूँ । मैं चाहती हूँ कहकहे लगाऊं, मुझे मेरे आंसू न छुपाने पड़ें…

असल में मैं एक ऐसी पुरुष की परिकल्पना में हूँ जिसका सबकुछ मेरा हो और जो मेरी सभी चीजों को अपना समझ सके…

विशेष अगली चिट्ठी में 
नुति


Must Read : नुति : पहली चिट्ठी


praveen jha

 

लेखक : प्रवीण झा

कंटेंट साभार : ब्लॉग बकैत बेलौनियाँ

लेखक अपना परिचय देते हुए कहते हैं – “भीड़ में से ही एक हूँ । एक कीड़ा है अंदर जो वर्तमान में सहज न रहकर भविष्य की सोच में रहता है, अपने अलावा सबकी चिंता में रहता है । एक खेतिहर संयुक्त परिवार से हूँ, वाजिब है, मिट्टी का सोंधापन भी है अंदर कहीं न कहीं । मेरे गाँव में दबी हैं जड़ें मेरी, जो ख़ुद को शहर की रंगीनियों से मुरझाने को बचाने में प्रयासरत है ।”

:: ‘विचारबिन्दु’ पे डायरी लिखने के सीरिज में आप इन्हें क्रमशः पढ़ पाएंगे ! हम श्रीमान प्रवीण झा जी का हार्दिक स्वागत करते है ! आप भी कीजिये, कंटेंट अच्छा लगे तो शेयर भी कीजिये । जय हो

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