मान्यताओं का मोह जाल


Fascination image vicharbindu

हमारे जीवन में हम इंसान “मान्यताओं के मोह जाल” की जंजीरों से ऐसे जकड़े हुए हैं कि जब कभी भी उससे बाहर आने की कोशिश करते हैं तो ऐसा सोचते हैं कि अब हमारे साथ बुरा ही बुरा होगा और फिर से “उन्ही मान्यताओं में और बुरी तरह से फंस” जाते हैं

एक उदाहरण देखते हैं :-

मेरी रोज सुबह ऑफिस जाने से पहले पूजा करने की आदत है. एक दिन मैं देर से उठा और बिना पूजा करे ही ऑफिस चला गया. पर दिन भर मेरे मन में ये विचार आते रहे कि मेरे साथ कुछ बुरा होगा.

इंसान एक “चुम्बक” की तरह है और ब्रम्हाण्ड में अच्छे और बुरे दोनों तरह के विचार फैले हुए हैं, अब क्योँकि मैं खुद अपने मन में मान बैठा हूँ कि मेरे साथ “कुछ बुरा” होगा और मैं एक “चुम्बक” हूँ तो ब्रम्हाण्ड में फैले हुए “बुरे विचार” मेरी तरफ आकर्षित होने शुरू हो जायेंगे और फिर कुछ न कुछ ऐसी घटना हो जाएगी जिसको मैं सुबह पूजा न करने की वजह मान लूंगा और फिर जिंदगी भर इस मान्यता से बंध जाऊंगा.

अब मान लीजिए ऑफिस जाते समय मैं ये सोचूं कि क्या हुआ अगर एक दिन मैने पूजा नहीं किया तो, कम से कम मैं ऑफिस तो टाइम पर पहुँचा और अपने कर्तव्यों का पालन किया. मित्रों क्योँकि इंसान एक चुम्बक है और उस वक़्त मेरे दिमाग में पूजा नहीं करने के बावजूद अच्छे विचार हैं, इसलिए मेरी तरफ ब्रम्हाण्ड में फैले हुए “अच्छे विचार” ही आकर्षित होंगे और इस तरह मुझे उस मान्यता से छुटकारा मिल जायेगा जिसमें “पूजा न करने पर कुछ बुरा हो जाता है”.

अब अगर उस दिन “अच्छे विचार होने पर” मेरे साथ “कुछ बुरा” हो भी गया तो मैं उसे पूजा से न जोड़कर, उस गलती को अपनी “कमी समझते हुए स्वीकार करूँ”, ये बात सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.

हम जिस प्रकार सोचते हैं वैसा ही हमें दिखने और हमारे साथ होने लग जाता है. इसी तरह हमें मान्यताओं की जंजीरों से छुटकारा पाना है. और भी कई उदाहरण है. हमारे सामने जैसे बिल्ली का रास्ता काट लेना, कोई भी काम करने से पहले दायां या बाएं पैर रखना, “किसी भी नए काम को अपने पसंदीदा दिन के लिए टाल देना”.

“मान्यताओ को मानिये” पर “उनका गुलाम मत बनिए”.  गुलाम बन कर कोई भी जिंदगी में तरक्की नहीं कर सकता, ये बात हमें हमेशा याद रखनी है. हम सबको पता है की हम कहाँ कहाँ “मान्यताओ के गुलाम” हैं, निवेदन है कि जल्द से जल्द इनसे छुटकारा पाइए. ये सारी की सारी मान्यताएँ “किसी ने हमें बताई” और “हमारे मन ने मानी ली”.

सोच कर देखिये अगर हम “अपने मन को जेल के अंदर जंजीरों से बाँध देंगे” तो क्या हमारा मन कभी खुले आकाश के नीचे, स्वस्थ माहौल में अच्छे विचार उत्पन्न कर सकेगा. नहीं ना. सोचिये सोचिये. आखिर मन है हमारा पर साथ ही भविष्य भी है हमारा.

अगर हमें खुश रहना है तो हमें “मान्यताओं से लगाव” छोड़ना ही होगा. “ब्रम्हाण्ड की सारी शक्तियां हमारे अन्दर हैं, हम कुछ भी और सब कुछ कर सकते हैं” – स्वामी विवेकानंद

Previous प्रेरक प्रसंग - आश्चर्य जनक घोषणा
Next शिक्षा में योग का महत्व

No Comment

Leave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *