चौंसठ सूत्र, सोलह अभिमान


अविनाश मिश्र कविता के अति विशिष्ट युवा हस्ताक्षर हैं. इस संग्रह में शामिल कविताएँ एक लम्बी कविता के दो खंडों के अलग-अलग चरणों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं. कवि प्रेम में आता है और साथ लेकर आता है—कामसूत्र. वात्स्यायन कृत कामसूत्र. इसी संयोग से इन कविताओं का जन्म होता है. कवि प्रेम और कामरत प्रेमी भी रहता है और दृष्टाकवि भी. वात्स्यायन की शास्त्रीय शैली उसे शायद अपने विराम, और अल्पविराम पाने, वहाँ रुकने और अपने आप को, अपनी प्रिया को, और अपने प्रेम को देखने की मुहलत पाना आसान कर देती है, जहाँ ये कविताएँ आती हैं और होती हैं. यह शैली न होती तो वह प्रेम में डूबने, उसमें रहने, उसे जीने-भोगने की प्रक्रिया को शायद इस संलग्नता और इस तटस्थता से एक साथ नहीं देख पाता. कोई इन कविताओं को सायास रचा गया कौतुक भी कह सकता है, लेकिन इनका आना और होना इन कविताओं के शब्दों और शब्दान्तरालों में इतना मुखर है कि आप इनकी अनायासता और प्रामाणिकता से निगाह नहीं बचा सकते. ये उतनी ही प्राकृतिक कविताएँ हैं, जितना प्राकृतिक प्रेम होता है, जितना प्राकृतिक काम होता है. ख़ास बातें काम की चौंसठ कलाएँ और स्त्री के सोलह श्रृंगार – इस संग्रह की 80 कविताओं के आलम्बन यही हैं. इन कविताओं को पढ़ना प्रेम में होने, उसे जीने, अनुभूत करने की प्रक्रिया से गुजरने या स्मृति-आस्वाद को दुहराने जैसा है. कवि का अनुभव-सत्य पाठक के जीवनानुभव के आस्वाद को नया अर्थ देने जैसा है. किताब संग्रहणीय भी है, सुंदर प्रेम-उपहार भी.

चौंसठ सूत्र, सोलह अभिमान पर युवा कवि अंचित लिखते हैं…..

अविनाश की नयी किताब आख़िरकार पटना आ गयी है. कई साल पहले पहली बार उनका लिखा यही कुछ पढ़ा था. तिरछी स्पेलिंग पर. कामसूत्र रति के सूत्रों की किताब है – अतिशयोक्ति में वहाँ तक जाती जहाँ हास्यास्पद हो जाने या समय से पूर्व होने का ख़तरा लगातार बना रहता है.

कवि जो अनिभिज्ञ है उसको हमारे रेफ़्रेन्स फ़्रेम में सेट करने की कोशिश करता है. फिर यह भी कह देना चाहिए कि अविनाश का पलेमिक्स इनमें इस तरह से है कि कवर पर “कामसूत्र से प्रेरित” लिखे होने पर भी यह अविनाश की कविताएँ हैं – अपने भाषा के बर्ताव में, मूल विचारों के चयन के बावजूद उनके भी बर्ताव में.

ये कविताएँ नए प्रेमी की व्यग्रता वाली कविताएँ नहीं है. ना ही इन कविताओं का प्रेमी आवेश और अनुभवहीनता में ग़लतियाँ करता है. यह सीधा कामसूत्र से निकला श्रेष्ठ प्रेमी है जो व्यवहार जानता है और प्रेम को ज्ञान की तरह सीख चुका है – नेरुदा के प्रेमियों से अलग वह दूर से प्रेमिका को सोते हुए देख सकता है और रति की सम्भावना के प्रति इंतज़ार में रह सकता है. उसको प्रेमिका के शरीर का भी भान है और कब कहाँ पहुँचना है, इसका समय जानता है. पूरे नवासी पन्ने इंतज़ार करने के बाद जब गजरा आता है तब गंध से भेंट होती है और कवि का प्रेमी स्वीकार करता है कि वह अपनी सुगंध से भी परेशान है.

टी.एस.एलीयट का जैसा मानना रहा है या जो वे खोजते रहे, इन कविताओं में भी प्यार करने वाला प्रेमी और ये कविताएँ लिखने वाला कवि अलग अलग है – डिटैच होकर दूर से देखता हुआ – आतुरता और व्यग्रता से परे, प्रेम से ज़्यादा अपनी कहन के बारे में ज़्यादा चिंतित. फिर भी इतनी सरलता से कहा हुआ कि सुंदर

किताब से एक पसंद की कविता :

परिचयकारण

सुंदरताओं के सूत्र
सुंदरताओं को नहीं देते

जब तुमने कहा:
“मैं इतनी सुंदर नहीं हूँ.”

मैने नहीं कहा :
“मेरी आँखों से देखो.”


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