मुझे इस दुनिया में हो रहे कई चीज गलत लग जाती है । समकालीन मुद्दे पे तपाक से राय नहीं बना पता । मैं एकतरफा नहीं हो पता किसी भी मुद्दे पे । कुछ दिनों पहले……
कश्मीर ट्रेंड कर रहा था, कई लोग इसके साथ खड़े थे कई खिलाफ । बुरहान के साथ कोई ये कह रहा है की वो चे ग्वेरा जैसा था और कोई आतंकवादी । दोनों मुझे पूर्वाग्रह से ग्रस्त लगते हैं । कोई इस हत्या के सहानभूति पे उमड़ी भीड़ को ठाकरे की भीड़, ब्रह्मेश्वर मुखिया की भीड़ के साथ तुलना कर के कह रहे हैं की अगर ये गलत है तो वो भी गलत था । यही मुझे अजीब लगता है महाराज जब आपको पता है की वो गलत था तो आप बुद्धजीवी होते हुए उस गलती की हिमायती क्यों बन रहे थे । दूसरी बात कई चीजों को आप प्रतिउत्तर के रूप में देखते हैं । और मेरा मानना है की प्रतिउत्तर में रोष से किया काम ही गलत है । चाहे वो दक्षिणपंथी लोग गाय के कारोबार के मामले के प्रतिउत्तर में अख़लाक़ को मार दे और आप सिर्फ इस प्रतिउत्तर के लिए बीफ पार्टी का आयोजन कर दे दोनों गलत है ।
इसी तरह घाटी में आर्मी होने का विरोध करिये खूब करिये लेकिन आर्मी के प्रतिउत्तर में जो कोई बंदूक उठा ले उसके हिमायती नहीं बन जाइये । (अगर विरोध में बन्दुक उठाना होता तो घाटी में हिन्दू पण्डित बन्दुक उठा लेते जो विस्थापित है ।) उसका भी विरोध आप बुद्धजीवियों के कंधे पे है । जिस तरह बुरहान के शव यात्रा पे उमड़ी भीड़ के साथ हैं उसी तरह कभी आप उस सेना के शहीद के साथ भी खड़े होके दिखाईये ये भी आपके ही जिम्मे है । हे बुद्धजीवी प्राणी आपने अपना पोस्टर कन्हैया और उमर के रंग में बदल लिया लेकिन उसी समय हनुमन्थप्पा नाम के सैनिक के लिए कोई पोस्टर नहीं रंगा । आपकी कई चीजों पे चुप्पी खास कर मुझे डरा जाती है ।

दादरी पे बवाल कटा गया सही ही कहा वहां अलखाक की नहीं इंसानियत की हत्या हुई थी । आपने इसका विरोध भी किया लेकिन मालदा वाले घटना पे आप तकरीबन चुप रहे जैसे वो कोई दैवीय आपदा थी । मनुस्मृति गलत है तो उसका विरोध सही है लेकिन कभी आपने शरीयत के उस कानून का विरोध नहीं किया जो 3 विवाह को कहता है ये तो पुरे तरीके से स्त्री विरोधी है । मुझे खास तौर पे वामपंथ से उम्मीद है की वो सामान नागरिक संहिता पे बोलेंगे लेकिन उनकी चुप्पी मुझे डरा देती है । आप बुद्धजीवी से मैं अदना सा बालक उम्मीद करता है की बुरहान या कोई और घटना पे ये कह के बचाव नहीं करेगा की उसने लोगों के लिए हथियार उठाया और वो चे ग्वेरा जैसा है । उसने गलत किया और आपको एकजुट होके विरोध करना होगा । मैं जनता हूँ की बुरहान के पक्ष में आप हज़ारों तर्क पेश करेंगे और उसे मानवता की लड़ाई का नायक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे । लेकिन शायद आपको याद नही तो न सही मुझे याद है “माओ” ने कहा था की “क्रांति कोई डिनर पार्टी नहीं है ।” और आप हैं की इसे मानाने को तैयार नहीं ।
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लेखक : सत्यम कुमार झा
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