पर्दे पर संगीत रचने वाला शिल्पी


image of satyajit-ray
सत्यजित रे की चर्चा के बगैर बांग्ला ही नहीं, भारतीय सिनेमा का भी इतिहास लिखा जाना मुमकिन नहीं। भारत के इस महानतम फिल्मकार ने भारतीय सिनेमा की नई परिभाषा गढ़ी और उसमें संवेदनाओं के कई मीलस्तम्भ खड़े किए। वे सिनेमा के परदे पर परंपरा और आधुनिकता के बीच की खाली जगह में संगीत की सृष्टि करने वाले विलक्षण फिल्मकार थे। परस्पर विरोधी विचारों तथा जीवन-मूल्यों के अंतर्संघर्ष की उलझी ज़मीन पर वे कहानी नहीं कहते, कविता रचते थे। उनकी वज़ह से पहली बार भारतीय सिनेमा विश्व सिनेमा के समकक्ष खड़ा हुआ। निर्देशक के रूप में रे की पहली फिल्म ‘पथेर पांचाली’ का शुमार विश्व की दस महानतम फिल्मों में होता हैं। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास से सुनहरे पन्नों में दर्ज़ है।
अपनी लंबी फिल्म यात्रा में उन्होंने दर्ज़नों कालजयी फिल्मों की रचना की जिनमें प्रमुख हैं – पथेर पांचाली, अपुर संसार, चारूलता, अपराजितो, महानगर, नायक, गुपी गाईन बाघा बाइन, अरण्येर दिनरात्रि, तीन कन्या, अशनि संकेत, जन अरण्य, चिड़ियाखाना और कांचनजंघा। प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित दो हिंदी फिल्मों का भी उन्होंने निर्देशन किया था – शतरंज के खिलाड़ी और सद्गति। अपनी फिल्मों का पटकथा लेखन, पार्श्व संगीत रचना, कला निर्देशन और संपादन भी वे खुद किया करते थे। सिनेमा पर उनका प्रभाव इतना गहरा था कि उनके बाद की पीढ़ी के बहुत से निर्देशक उनकी सिनेमाई दृष्टि से प्रेरित हुए। फिल्मों के अलावा उनकी लिखी कहानियां और बाल कथाएं बांग्ला साहित्य की अनमोल धरोहर हैं। बाल साहित्य के दो लोकप्रिय चरित्र – गुप्तचर फेलुदा और वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर शंकु उनकी देन हैं।
फिल्मों में अपने अमूल्य योगदान के लिए आस्कर सम्मान, सैन फ्रांसिस्को अंतरराष्ट्रीय फिल्म सम्मान, दादासाहब फाल्के सम्मान और देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित सत्यजीत रे की जयंती (2 मई) पर विनम्र श्रद्धांजलि !

आलेख : पूर्व आई० पी० एस० पदाधिकारी, कवि एवं लेखक : ध्रुव गुप्त

Previous साहित्यालोचन की दिशा
Next राहुल सांकृत्यायन और नेपाल

No Comment

Leave a reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *