कुछ यात्रायें ऐसी होती हैं, दिल करता है कभी ख़त्म न हो


mihir jha bali yatra

कुछ जगहें आपको वापस बुलाती हैं, एक बार फिर से जाने को दिल मचलता है. हमारी बाली यात्रा कुछ ऐसी ही थी. मेरी पत्नी के लिए तो यह पहली नज़र का प्यार था.

जब मैंने बाली जाने के लिए एयर टिकट बुक कराया, तो वहाँ से पचास नॉटिकल मील दूर द्वीप लोम्बोक में एक बड़ा भूकंप आया. पेशोपश बढ़ी की करें क्या ! बच्चों के साथ जाएँ की नहीं, फिर कहीं पढ़ा की बाली में भूकंप आते ही रहते हैं !

वैसे भी बाली, हिन्द महासागर में प्रज्जवलित अग्निवलय के ऊपर बसा है. इस अग्निवलय की भी बहुत पुरानी कहानी है. आज से कुछ पाँच सौ मिलियन वर्ष पूर्व भूगर्भीय लावे के ऊपर तैरता अलमस्त जम्बूद्वीप भारत, दक्षिण पूर्वी एशिया से जा टकराया, इस झटके से उठी हलचल से दक्षिण पूर्वी एशिया के टुकड़े-टुकड़े हो गए और उससे चिपका ऑस्ट्रेलिया छिटक कर दूर चला गया. इन्हीं टुकड़ों को आप आज बाली, सुमात्रा ,जावा और इंडोनेशिया-मलेशिया-थाईलैंड के हज़ारों द्वीपों में देख सकते हैं. इस झटके से निकली आग को बाली आज भी अपने अंदर समेटे है, दो बड़े ज्वालामुखी वहाँ आज भी आग उगलते हैं. इस झटके से ऑस्ट्रेलिया एशिया से ऐसे दूर हुआ की वहां की वनस्पति और जीव बाकी दुनिया से बिलकुल ही अलग हो गए. देखिये कंगारू को ! अजब बात तो यह है की मस्तमौला भारत यहीं नहीं रुका, वह फिर से यूरेशियन प्लेट से जा टकराया. इससे बना हिमालय, जिसने अपने वजन से जम्बूद्वीप भारत को थाम लिया और दिया मानसून का वरदान. है न हैरतअंगेज़ कहानी !

दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम राष्ट्र इंडोनेशिया का यह द्वीप बाली आत्मा और संस्कार दोनों से हिन्दू है, मैं नुग्रह राय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से बाहर निकल होटल जाने के लिए कार में बैठा, ड्राइवर केडे मुझे बहुत हंसमुख और नम्र इंसान लगे. वैसे बाली में हर टैक्सी ड्राइवर मुझे नम्र ही मिले, इस मामले में एशिया पसिफ़िक में मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा है. केडे से काफ़ी बातचीत हुयी, मेरे हाथ में बंधे लाल रंग के धागे को देखकर उसने पूछा “क्या आप भी हिन्दू हैं” ? मुझे समझ नहीं आया क्या जवाब दूँ. धर्म तो बुरी बात है, हिन्दू धर्म तो और भी बुरी बात है, उसने कहा “बाली में ८०% हिन्दू है और बाकी मुस्लिम और ईसाई; यहाँ हम सब मिल कर रहते हैं” इससे बुरी बात तो कोई हो ही नहीं सकती ! बाली के ट्रैफिक के साथ मेरा पहला परिचय उसी दिन हो गया. जून-जुलाई-अगस्त बाली पर्यटन के लिए पीक सीजन है. दुनिया के कोने-कोने से आये लोग मस्ती में दिख रहे थे. फोटो खींचने में व्यस्त सस्ते चीनी पर्यटकों से लदी बसों से लेकर अल्ट्रा लक्सरी कारों में बैठे यूरोपियन बुढ्ढे तक, रोड खचाखच भरा था. बीच-बीच में इक्के-दुक्के लाल चूड़ा पहने भारतीय नवविवाहिता और उनके परेशान से मियां जी भी दिख जाते थे. भारतीय हनीमून का हॉट डेस्टिनेशन है आजकल बाली ! देनपसार स्थित हवाई अड्डे से लेकर उबुद स्थित होटल अशोक ट्री रिसोर्ट का पचास किलोमीटर का सफ़र हमने डेढ़ घंटे में तय किया. बाली का सबसे बड़ा शहर देनपसार किसी आधुनिक शहर की तरह ही है.

कुछ ख़ास नहीं, पर ज्यों ज्यों आप उबुद की तरफ बढ़ते हैं बाली बदलने लगता है, सड़क के किनारे बसे छोटे छोटे गाँवों में आप मंदिरों को देखते हैं. हर घर के अंदर एक मंदिर है. मंदिरों में मूर्तियां नहीं होती, यहाँ पितरों की पूजा होती है. लोग त्रिमूर्ति ब्रह्मा-विष्णु-महेश को मानते हैं. पर उनकी पूजा नहीं होती, कर्मकांड तो काफ़ी है पर सहज और साधारण. भारतीय मंदिरों की तरह आडंबर नहीं है. बाली का हिन्दूइज़्म प्रकृति पूजा के ही दौर में ही थम गया सा लगता है. आदि धर्म की तरह, घरों के सामने जवाकुसुम फूल से लदे पौधे, फूलों सजी डालियाँ लेकर अपने चौबारों को सजाती नारियाँ. मन प्रसन्न आनंदचित्त, सुगापंखी हरे रंगो वाले टेढ़े-मेढ़े पेड़ों और झाड़ियों से घिरे बालिनीज घर एकदम स्क्रीनसेवर सरीखे दीखते हैं. घरों के बीच से झांकते हरे-भरे धान के खेत आँख और आत्मा दोनों को सुकून देतें हैं. बाली आने वाले अधिकांशतः युवा जोड़े और बैकपैकर्स समुद्री शहर कूटा में रुकते हैं. कूटा का नाईट-लाइफ नामी है, अकेले हों तो कूटा में रुकिए, रातें रंगीन कीजिये ! मेरी तरह लेखक मिज़ाज़, बाल-बच्चेदार या फिर फ़ेरारी बेच कर निर्वाण प्राप्त करने आये हुए सेठ लोग उबुद में रुकते हैं. बाली की आत्मा सच पूछो तो उबुद में ही है.

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उबुद घने हरे पेड़-पौधों से भरे पहाड़ो पर बसा एक ऊँघता हुआ सा छोटा सा शहर है, शहर कहाँ ख़त्म होता है और गाँव कहाँ शुरू होता है इसका पता चलना मुश्किल है, शहर के बीच एक पहाड़ी नदी बहती है, धारा इतनी तेज़ की वहां रिवर राफ्टिंग होती है. नदी के किनारे-किनारे मीलों दूर फैले धान के हरे-भरे खेत हैं. इन्ही खेतों के बीच कहीं आपको कैफ़े मिलेंगे तो कहीं रेस्त्रां, खेतों के बीच बैठकर बेहतरीन जावा लुबाक कॉफ़ी का आनन्द लीजिए. अधिकांशतः कैफ़े में लुबाक कॉफ़ी पुराने पारम्परिक तरीके से बनाई जाती है. लुबाक सिवेट जानवर की एक प्रजाति है, ये महोदय काफ़ी बीन्स को खाकर पचाते हैं और जो हिस्सा नहीं पच पता उसे विष्ठा में निकाल देते हैं, इन्ही अधपचे काफ़ी बीन्स को विष्ठा से निकाल कर आग पर भूना जाता है, इसे पीस कर जो काफ़ी बनाई जाती है वह दुनिया के सबसे महँगे कॉफी में गिनी जाती है. मुझे तो भाई स्वाद लाज़वाब लगा. ब्लैक एस्प्रेसो लुबाक कॉफी में बिलकुल भी कड़वापन नहीं था. उबुद में खाने-पीने के अनगिनत विकल्प हैं, जो रुचे खाईये. समुद्री मछलियों से लेकर आग पर भुने जंगली सूअर तक. शुद्ध शाकाहारी वेगन भोजन का भी विकल्प है, जम कर खाइए, जम कर पीजिये. और फिर मंदिरों में जा कर प्रार्थना कीजिये. ईट प्रे लव, एंड रिपीट. उबुद कुल मिला कर मुझे ऐसा गाँव लगा जिसमे शहर का मज़ा है. आत्मा गाँव की है दिल शहर का है, देखने लायक काफी कुछ है यहाँ.

हमने शुरुआत उबुद पैलेस से की, इसमें कभी उबुद के राजा रहते थे. अब इसका बाहरी हिस्सा पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है. भीतरी हिस्से में अभी भी राजवंशों के बचे खुचे लोग रहते हैं. इतिहास भी अजीब है, अपने ह्रदय में ऐसी भयानक घटनाओं को छुपा कर रखता है की भनक तक न लगे, २० सितम्बर १९०५ को उबुद राजवंश ने डच आक्रांताओं के खिलाफ आखिरी ‘पुपुतान’ किया था. राइफलों से लैश हजारों डच सैनिकों के सामने हथियार डालने के अलावा कोई विकल्प न बचा. किसी तरफ से मदद की कोई गुंजाईश बाकी न रही. डचों ने मान लिया, अब तो समर्पण होगा ही. २० सितंबर १९०५ की सुबह उबुद के राजा, उनकी रानियां और पूरा परिवार अपने सैनिकों, पुजारियों और लोगों के साथ महल से बाहर निकले. स्त्रियां पूरे साजो श्रृंगार में थी. मेंहदी लगे हाथों में थी किरिच और कमर में अशर्फियों के थैले. राजपुरुषों ने धवल वस्त्र पहन रखे थे और हाथ में छोटी तलवारें ले रखी थी. उनके काफिले को देखकर ऐसा लगता था मानो शादी में जा रहे हों, डच सैनिकों के सामने आकर उनका काफिला रुक गया, पहले रानियां सामने आयीं. उन्होंने अपने कमर से अशर्फियों के थैले निकले और डच सैनिकों के ऊपर यह कहते फेंक दिए की ये हमें मारने का मूल्य है. फिर हक्के-बक्के खड़े सभ्य यूरोपियनों ने असभ्य एशियनों के ऊपर हमला कर दिया. गोलियों की बौछार में बच्चे-बूढ़े स्त्री-पुरुष सब मारे गए. जो रानियाँ घायल पड़ी थी उनका गला पीछे खड़े दासियों ने काट दिया. सब कुछ पूर्वनियोजित सा था, ऐसा ‘पुपुतान’ बाली के तीनों बड़े राजाओं ने किया. हिन्दू वीरों-वीरांगनाओं का जौहर देखकर डचों ने अपनी रणनीति बदल दी. धर्म परिवर्तन करने आये मिशनरीज उलटे पैर वापस लौट गए. आज अगर आप उबुद के महलों को देखेंगे तो वहां अजीब सी शांति है. एक पवित्र सा माहौल है, कुछ बात तो है की बाली का हिन्दू धर्म हर दौर में बचा रह गया. किसी ने दया करके छोड़ दिया ऐसा तो नहीं है !

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उबुद में एक जाम्बुवन है जहाँ हज़ारों वर्ष पुराने वृक्ष आपको दिखेंगे. यहाँ वानरों का साम्राज्य है, वानरों को बाली में पूज्य माना जाता है, उबुद बालिनीज कला और संस्कृति का एक बहुत बड़ा केंद्र भी है. गावों में और सड़को के किनारे आपको कई स्टूडियोज दिखेंगे. पत्थर की नक्काशीदार मूर्तियों से लेकर लकड़ी की मॉडर्न आर्ट तक सब बनते दिखेंगे. हर बड़े चौराहे पर शाम को बालिनीज नृत्य का प्रदर्शन होता है. आप टिकट खरीदकर उसका आनंद उठा सकते हैं. उबुद के आस-पास काफी सारे मंदिर हैं जिनमें आप घूमने जा सकते हैं.

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उबुद से जब आप किन्तामणि गाँव की तरफ बढ़ेंगे तो समुद्र स्थल से ऊंचाई बढ़ने लगती है. ऊंचाई के साथ मौसम सुहावना होने लगता है. रस्ते में इतनी हरियाली है की आत्मा तृप्त हो जाये. जगह जगह संतरे और स्ट्रॉबेरीज के फार्म्स हैं. बाली के संतरे थोड़े अजीब से लगे ! उनकी छिलकों में कड़ी पत्ते और हरी मिर्च की मिली जुली गंध आती है. पर स्वाद लाजवाब था, ऐसा स्वाद लावे वाली काली मिट्टी के कारणवश है. संतरे के बगीचों में जाकर आप खुद से जो मन भाये वो तोड़ कर ले सकते हैं. मुझे अपना आम का बगीचा याद आ गया. बच्चों के लिए यह मज़ेदार अनुभव रहा.

किन्तामणि शहर बातुर नामक ज्वालामुखी के पुराने क्रेटर पर बसा है. यह क्रेटर लगभग १० मील व्यास का है ! इसके क्रेटर के बीचों-बीच एक और ज्वालामुखी तथा झील है. पहले बातुर नामका एक गांव था जो नीचे झील के किनारे बसा था, ऐसा इतिहास है की गांव में दनु नामक मातृदेवी का प्राचीन मंदिर था, १९२१ ईश्वी में बातुर ज्वालामुखी फटा तो लावा बहते हुए मंदिर के द्वार पर आकर रुक गया. गाँववाले इसे शुभ शगुन मानकर खतरों के बावजूद वहीँ रह गए. तीन साल के बाद ज्वालामुखी फिर फटा और इस बार मंदिर तो लावे में डूब गया पर गाँव तक आकर लावा रुक गया. फिर गाँववालों को देवी के मन को बात पता चली. लोग गांव छोड़कर ऊपर पहाड़ पर आ गए. दूसरे दिन ही ऐसा जबरदस्त विस्फोट हुआ की दूर दराज के हजारों लोग मारे गए. बातुर गांव पूरा लावे में जल गया। आज भी उस गाँव के निशानों को आप देख सकते हैं। लावे से निकालकर दनु के मंदिर को फिर से स्थापित किया गया है. उलुदनु का पुनर्स्थापित मंदिर मुझे काफी विशाल और भव्य लगा. किन्तामणि शहर में एक लेकव्यू रेस्टोरेंट हैं जहाँ बैठकर आप बातुर झील को निहारते हुए अत्यंत स्वादिष्ट लोकल फ़ूड का मज़ा ले सकते हैं. झील के पास गरम पानी के सोते हैं, जिसमे आप स्नान का आनंद भी ले सकते हैं. स्नान तो हम होटल से करके चले थे सो किया नहीं मगर खाना जमकर खाया.

जहाँ हिन्दू धर्म होगा वहां गंगा भी होगी. बाली की भागीरथी तीर्थ एम्पुल है. पहाड़ो में बसे इस मंदिर में एक झरने से पानी आता है. इतना स्वच्छ और साफ़ पानी की सही मायने में लगे गंगा यही है, इस मंदिर को हॉलीवुड की प्रसिद्ध मूवी ईट-प्रे-लव ने काफी प्रसिद्धि दिलाई है, जूलिया राबर्ट्स की तरह कई सारे फिरंग निर्वाण के लिए यहाँ नहाते मिले ! बाली के लोग यहाँ के जल को डब्बों में भरकर घर ले जाते हैं, जिसका इस्तेमाल पूजा-पाठ में होता है.

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इस मंदिर के अलावा भी हम कई और मंदिरों में गए, जिनमे सागर तट पर बना तनाह-लोट और उलुवतु काफी सुंदर है. उलुवतु मंदिर एक पहाड़ी के किनारे पर बना है जिसकी कहानी काफी दिलचस्प है. जब भारतीय टेक्टोनिक प्लेट ऑस्ट्रेलियाई टेक्टोनिक प्लेट से टकराया तो समुद्र तल का काफी बड़ा हिस्सा लगभग सत्तर मीटर ऊपर उठ गया और पहाड़ बन गया. उलुवतु के आसपास के जंगलों में कहीं-कहीं भवन या सड़क निर्माण के लिए खुदी हुई उजली मिट्टी को देखकर आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं की यह भूभाग कभी समुद्र तल में था.

बाली आएँ और सिर्फ मंदिरों में घूमे तो क्या घूमे. बाली में दुनिया की बेहतरीन सर्फिंग स्पॉट्स और बीच हैं जहाँ आप सर्फिंग और स्कूबा डाइविंग का मज़ा ले सकते हैं. समुद्र में तैर-तैर कर थक गए तो बीच पर बने वरुंग में बैठकर ताजे सीफ़ूड का आनंद लीजिए. यह बहुत कुछ गोवा या पट्टाया जैसी दुनिया की बाकी समुद्री किनारे जैसा ही है. एकदम टूरिस्टी टाइप, ढेर सारा पैसा जेब में लेकर जाइये ! लिटेरली !! इंडोनेशिया में ५०० भारतीय रूपया करीब एक लाख इंडोनेशियन रुपये के बराबर होता है. तो आपको खाने-पीने में लाखों रुपये उड़ाने का आनंद प्राप्त होगा ! मंदिरों और समुद्री तटों से अलग बाली में एक और किस्म का मज़ा है. वो है स्पा का ! बाली में विश्व की बेहतरीन स्पा हैं, पूरे के पूरे स्पा रिसॉर्ट्स भी हैं. हर तरह की जेबों के लिए स्पा मौजूद है, जाइये और जी भर कर सुगन्धित तेलों से शरीर की मालिश करवाइये, हम भी दिन भर की थकान दूर करने जिस स्पा में गए थे वो हमारे रिसोर्ट में ही था. कुल मिलाकर बाली एक पैसा वसूल पर्यटक स्थल है. यहाँ हर किसी के लिए कुछ न कुछ अलग है, अपनी रूचि और स्वाद के अनुसार. बिलकुल अध्यात्म की तरह.


यात्रा वृतांत : मिहिर झा

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