लंका के राम कथा में रावण अब तक जिन्दा है !


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हमारे देश में भगवान राम हर एक के दिल में बसे हैं किन्तु माता सीता के लिए रावण का वध कर लंका विजय करने वाले श्रीराम की चर्चा लंका में कैसी होती है ? क्या लंका के इतिहास में, उनकी संस्कृति में, उनकी लोक कथाओं में भी राम हैं ? आइए इस सम्बंध में कुछ जाना जाय.

श्रीलंका के संस्कृत एवं पाली साहित्य का भारत से घनिष्ट संबंध था. ई. पूर्व 512-521 तक श्री कुमार दास श्रीलंका के राजा थे और उनके संबंध में कहा जाता है कि वे महाकवि कालिदास के अनन्य मित्र थे. कालिदास के ‘रघुवंश’ की परंपरा में विरचित ‘जानकी हरण’ संस्कृत का एक उत्कृष्ट महाकाव्य है जो बाल्मीकी रामायण पर आधारित है और इसमें कुमार दास का ज़िक्र है.

यूँ तो सिंहली साहित्य में राम कथा पर आधारित कोई स्वतंत्र रचना नहीं है किंतु यहाँ के पर्वतीय क्षेत्र में कोहंवा देवता की एक पूजा होती है जिसमें मलेराज कथाव ( पुष्पराज की कथा ) कहने का प्रचलन है. इस कथा में राम का वर्णन है और इस कथा की शुरुआत भी सम्राट पांडुवासव देव के समय ईसा के पाँच सौ वर्ष पूर्व हुआ था.

कथा कुछ इस प्रकार है –

राम के रुप में अवतरित विष्णु एक बार शनि की साढ़े साती के प्रभाव क्षेत्र में आ गये. उन्होंने उसके दुष्प्रभाव से बचने के लिए सीता से अलग “हाथी” का रुप धारण कर सात वर्ष व्यतीत किया. समय पूरा होने में जब एक सप्ताह बाकी था, तब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया. उसने देवी सीता को पथ भ्रष्ट करना चाहा. सीता ने कहा कि वे तीन महीने के व्रत पर हैं. व्रत की अवधि समाप्त हो जाने के बाद वे उसकी इच्छा की पूर्ति करने का प्रयत्न करेंगी.

इस घटना के हफ़्ते भर बाद सात वर्ष की अपनी तपस्या पूर्ण होने पर श्री राम घर लौटे. अपने निवास स्थान पर सीता को अनुपस्थित पाकर वे उनकी तलाश जंगल में भटकने लगे. इसी क्रम में उनकी मुलाक़ात बालि से हुई जो अपनी पत्नी के अपहरण से दुःखी थे. राम द्वारा बालि की पत्नी को छुड़ाने के बाद बालि ने अपनी सेना के साथ प्रभु श्री राम को समुद्र पर चलने और रावण से लड़ने का वचन दिया.

कथा के अनुसार आगे बालि रावण के उद्यान में चला गया और पेड़ पर चढ़कर आम खाने लगा. इसकी सूचना रावण को मिली तो… अंततः उनकी पूँछ में आग लगा दी गई लंका को जलाया गया. बक़ौल कथानक – इसी अस्त-व्यस्तता में बालि मैया सीता को लेकर राम के पास आ गए.

कहते हैं लंका से लौटने के बाद माँ सीता गर्भवती हो गयीं. प्रभु राम देवताओं की सभा से लौटकर घर में रावण का चित्र देखते हैं और लक्ष्मण से वन में ले जाकर सीता का वध कर देने के लिए कहते हैं. लक्ष्मण जिनके लिए सीता माँ समान थी उन्हें वन में छोड़ देते हैं और किसी वन्य प्राणी का वध कर रक्त रंजित तलवार लिए राम के पास लौट जाते हैं.

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समय बीतने पर सीता ने बाल्मीकि आश्रम में एक पुत्र को जन्म दिया. एक दिन वे उसे बिछावन पर सुलाकर वन में फल लाने गयीं. बच्चा बिछावन से नीचे गिर गया तो वाल्मीकि ने बिछावन पर शिशु को नहीं देखकर उस पर एक कमल पुष्प फेंक दिया जो शिशु बन गया. वन से लौटने पर जब सीता ने शिशु का रहस्य जानना चाहा तो ॠषि ने सच्ची बात बता दी, किंतु सीता को विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने ॠषि को फिर वैसा करने के लिए कहा ( वन्स मोर टाइप ), तो ॠषि ने कुश के पत्ते से एक अन्य शिशु की रचना कर दी. अब ये तीनों बच्चे जब सात वर्ष के हुए तो मलय देश चले गये जहाँ उन्होंने तीन राज भवनों का निर्माण करवाया. ये तीनों राजकुमार सदलिंदु, मल और कितसिरी के नाम से विख्यात हुए.


कथा पढ़कर यह समझ आता है की लोग अपने-अपने क्षेत्र में अपने आकाओं का वर्णन अपने हिसाब से करते हैं…  ख़ैर, बताइए की रावण को मारते हीं नहीं ये लोग अपनी कथा में !


लेखक : प्रवीण कुमार झा 

साभार : The Ramayana Tradition in Asia – Godkumbura, C.E.

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