बिहार में बाढ़ का कहर- मुद्दा, स्वरुप और समाधान
रात को पानी की आवाज़ बहुत भयानक होती है, दूर कहीं चर-चाँचर में पानी गिरने की आवाज़, कुत्ते-बिल्लियों के क्रंदन और खूटें पर बंधे मवेशी की छटपटाहट बहुत डरावनी होती है | बाढ़ का स्वरुप विकराल होता है |
बादल बारिश और बेपरवाह
आज सुबह से ही मौसम काफ़ी अच्छा था, घर से ऑफिस के लिए अभी निकला ही था कि बारिश शुरू हो गयी, सामने एक मकान था तो फटफटिया खड़ा कर छज्जे के नीचें शरण लिया, काफ़ी देर तक
एक किसान की जिंदगी- खलिहान से लाइव
एक किसान दम्पति सुबह ४ बजे उठते हैं, नित्य-क्रिया से निवृत झाड़ू उठाकर मवेशी को बाहर निकालकर बाँधने के लिए सफाई शुरू कर देते हैं ।
फाल्गुन मास और बसंती बयार
आकाश में लालिमा कोई तस्वीर को सुर्ख रंगों से भर रही है, अरहर की झुरमुटों में अभी भी अँधेरा है | मैं खेत-पथार घूमने निकला हूँ |
ख़ुशी – तेरे नाम एक खुला ख़त
ख़ुशी कैसी हो ? तेरे नाम से पहले कोई विशेषण अच्छा नहीं लगता मुझे | मुझे सिर्फ तुम ‘तुम जैसी’ ही अच्छी लगती हो | पिछले कुछ दिनों से जिस्म कि तकलीफें बढ़ गयी थी, लोग-बाग़ के साथ साथ आलमारी में लगा सीसा भी शिकायत करने लगा था |
काशी – यात्रावृतांत
अभी काशी से विदा भी नहीं हुआ था कि कूची मष्तिष्क के अंतरपटल पर हर्ष की स्याही से क्षणों को दकीचे जा रहा था । पेट से माथे तक बबंडर उठा हुआ था । लेखक मन व्याकुल था, बार-बार कोशिस करता था और शब्द अव्यवस्थित हो रहे थे । मैं हर क्षण को शब्दों की …