एक प्रेरक प्रसंग- “समय की क़ीमत”


gandhi ji

यह घटना उस समय की है जब स्वतंत्रता आंदोलन ज़ोर पकड़ चुका था । गांधी जी घूमकर या सभा बुलाकर लोगों को स्वराज और अहिंसा का संदेश देते थे । एक बार उन्हें एक सभा मे उपस्थित होने का आमंत्रण मिला ।

सभा को संचालित एक स्थानीय नेता को करना था । गांधी जी समय के बहुत पाबंद थे । वे निर्धारित समय पर सभा स्थल पर पहुंच गए । उन्होंने देखा सभा स्थल पर सभी लोग पहुंच गए हैं, लेकिन जिस नेता को सभा का संचालन करना था, वह अभी तक नहीं पहुंचे थे । वह पूरे पैंतालीस मिनट पश्चात सभास्थल पर पहुंचे । उन्होंने देखा कि उनकी अनुपस्थिति में ही सभा आरंभ हो चुकी है । उन्होंने आयोजकों से पूछा कि उनके बिना सभा कैसे प्रारंभ हुई ? आयोजकों ने कोई जबाब नहीं दिया ।

गांधी जी नेता के हाव-भाव से उनकी बातें समझ गए । गांधी जी मंच पर आए और नेता जी की ओर देखते हुए बोले , ‘माफ़ कीजिए, लेकिन जिस देश के अग्रगामी नेता ही महत्वपूर्ण सभा मे पैंतालीस मिनट देर से पहुंचेंगे, वहाँ पर स्वराज भी उतनी ही देर से आएगा । नेता के इंतजार में काम आरम्भ नहीं हो सकता था, इसलिए मैंने सभा शुरू करा दी, क्योंकि मुझे डर था कि आपके देर से आने की आदत धीरे-धीरे अन्य लोगों को न लग जाए ।’ गांधी जी की बात सुनकर नेता जी को शर्मिंदगी हुई । उसी क्षण उन्होंने यह ग़लती दोबारा न करने का संकल्प लिया ।

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