पिछले दिनों प्राचीन भारत से संबंधित कई किताबों को पढ़ने का मौका मिला । इसमें बिहार से जुड़े विभिन्न अंचलों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का पता चला । अब जैसे मगध साम्राज्यवादियों और ज्ञान की तलाश करने वाले व्रात्यों का गढ़ था । मिथिला वैदिक ज्ञान और न्याय शास्त्र की भूमि रही, बाद में लिच्छवियों के साथ मिलकर उसने गणतांत्रिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया । उसी तरह बुद्ध काल के षोडश महाजनपदों में से एक अंग की पहचान अपने व्यवसायियों की वजह से थी । पता नहीं अंग क्षेत्र के इन व्यवसायियों पर कोई शोधपरक काम हुआ है या नहीं । मगर टुकड़ों टुकड़ों में जो जानकारियां मिलती हैं, वह चकित करने वाली हैं ।
Must Read : महानारी का शहर “महनार”
अंग क्षेत्र जो वर्तमान में बिहार के भागलपुर, बांका और मुंगेर जिले में मूलतः केंद्रित है, कहते हैं उस जमाने में व्यापार का इतना बड़ा केंद्र था कि यहां के चम्पानगरी से सुवर्णभूमि के लिये जहाज खुला करते थे । ये जहाज बंगाल के ताम्रलिप्ति में सागर में उतरते और फिर बर्मा, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान, थाईलैंड, जावा आदि इलाके तक जाते थे । इस व्यापार से यह क्षेत्र इतना समृद्ध हुआ कि उसने वर्तमान वियतनाम के एक क्षेत्र में चंपा नामक साम्राज्य भी स्थापित किया । आज भी उस साम्राज्य के अवशेष हैं, वहीं की एक तस्वीर इस पोस्ट के साथ लगी है । इस इलाके में आज भी कुछ हिन्दू बचे हैं।
वैसे बिहार के अंग क्षेत्र में आज भी चांद सौदागर का नाम लिया जाता है । भागलपुर में हर साल जो बिहुला विषहरी पर्व मनाया जाता है, उसकी कहानी में चांद सौदागर का जुड़ाव है । दिलचस्प है कि यहां के सौदागरों की इतनी ख्याति थी कि कोसल के मशहूर राजा प्रसेनजित ने मगध नरेश बिम्बिसार से कहा था कि उनके राज्य में कोई व्यापारी नहीं है । कृपया अपने राज्य से एक व्यापारी भेज दें । बिम्बिसार के वक़्त अंग क्षेत्र मगध साम्राज्य का हिस्सा बन गया था । तब बिम्बिसार ने चंपा के एक व्यापारी के पुत्र धनंजय को कोसल भिजवा दिया । बहुत कम समय में धनंजय कोसल का सबसे धनी व्यक्ति बन गया । उसकी पुत्री बौद्ध धर्म की मशहूर उपासिका विशाखा थी ।
Must Read : बाजीराव ने दिया मेवाड़ को सम्मान
सार्थवाह पुस्तक में भी अंग क्षेत्र के एक मशहूर व्यापारी सानुदास की विलक्षण यात्राओं का जिक्र है । उसकी कथा बृहत्कथा श्लोकसंग्रह में है । वह ताम्रलिप्ति से होकर सुवर्णभूमि की तरफ जाता है और फिर हिन्द महासागर में सिंध और अफगानिस्तान के इलाकों की यात्रा करता है । कई बार उसका जहाज डूबता है और वह किसी सुनसान टापू पर पहुंच जाता है । हालांकि उस कथा में कई अविश्वसनीय बातें भी हैं, जैसे वह नदी के दूसरे किनारे लगे बांस के पेड़ों के हवा से झुकने पर उसे पकड़ कर नदी पार करता है और एक बार बकरे की खाल में छिप जाता था और चील उसे लेकर उड़ जाती थी, दूर देश पहुंचा देती थी । मगर फिर भी उस कथा में अंग के व्यापारियों और उनकी वणिक बुद्धि का बोध होता है ।
आज वे अंग के व्यापारी कहां हैं, पता नहीं। भागलपुर शहर व्यापार का केंद्र जरूर है, मगर वहां ज्यादातर बड़े व्यापारी बाहर से आये लोग हैं । पूरे बिहार में ही वणिक बुद्धि वाले लोगों का घोर अभाव है । चंपा और अंग की कहानियां अब बस किताबों में ही हैं ।
आलेख : पुष्यमित्र
( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )
No Comment