प्राचीनकाल की बात है, मगध सम्राज्य में सोनपुर नाम के गाँव की जनता में आतंक छाया हुआ था. अँधेरा होते ही लोग घरों से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जूटा पाते थे, कारण था अंगुलिमाल. अंगुलिमाल एक खूंखार डाकू था जो वहाँ के जंगल में रहता था.
जो भी राहगीर उस जंगल से गुजरता था, वह रास्ते में लुट लेता था और उसे मार कर उसकी ऊँगली काटकर माला के रूप में अपने गले में पहन लेता था. इसी कारण लोग उसे अंगुलिमाल कहते थे. एक दिन उस गाँव में महात्मा बुद्ध आए. लोगों ने उनका खूब स्वागत किया. महात्मा बुद्ध ने देखा वहाँ के लोगों में कुछ डर सा समाया हुआ है. महात्मा बुद्ध ने लोगों से इसका कारण जानना चाहा. लोगों ने बताया इस डर और आतंक का कारण डाकू अंगुलिमाल है. वह निरपराध व्यक्तिओं की हत्या कर देता है.
महात्मा बुद्ध ने मन में निश्चय किया उस डाकू से आवश्य मिलना चाहिए. बुद्ध जंगल में जाने को तैयार हो गए तो गाँव वालों ने उन्हें बहूत रोका क्योंकि वह जानते थे की अंगुलिमाल के सामने से बच पाना मुश्किल ही नहीं, असम्भव भी है. लेकिन बुद्ध अत्यंत शांत भाव से जंगल में चले जा रहे थे.
तभी पीछे से एक कर्कस आवाज कानों में पड़ी -‘ठहर जा, कहाँ जा रहा है ?’
बुद्ध ऐसे चलते रहे मनो कुछ सुना ही नहीं !
पीछे से और जोर से आवाज आयी ‘मै कहता हूँ ठहर जा’!!
बुद्ध रुक गए और पीछे पलट कर देखा तो सामने एक खूंखार कला व्यक्ति खड़ा था.
बुद्ध ने शांत और मधुर स्वभाव में कहा ‘मैं तो ठहर गया , भला तू कब ठहरेगा ?’
अंगुलिमाल ने बुद्ध के चेहरे की ओर देखा, उनके चेहरे पर बिलकुल भय नहीं था जबकि जिन लोगों को वह रोकता था, वे भय से थर थर कांपने लगते थे.
अंगुलिमाल बोला – ‘ऐ सन्यासी ! क्या तुम्हे डर नहीं लग रहा है ? देखो मेनें कितने लोगों को मार कर उनकी उंगलियो की माला पहन रखी है ।
बुद्ध बोले – ‘तुझसे क्या डरना ? डरना है तो उससे डरो जो सच मुच ताकतवर है.
अंगुलिमाल जोर से हंसा – ‘ऐ साधु ! तुम समझते हो की में ताकतवर नहीं हूँ । मैं तो एक बार में दस-दस लोगों के सिर काट सकता हूँ.
बुद्ध बोले – ‘यदि तुम सचमुच ताकतवर हो तो जाओ उस पेड़ के दस पत्ते तोड़ लाओ.
अंगुलिमाल ने तुरंत दस पत्ते तोड़े और बोला – ‘इसमें क्या है ? कहो तो में पेड़ ही उखाड़ लाऊं.
बुद्ध ने कहा – ‘नहीं पेड़ उखाड़ने की जरूरत नहीं है. यदि तुम वास्तव में ताकतवर हो तो जाओ इन पत्तीओं को पेड़ में जोड़ दो.
अंगुलिमाल क्रोधित हो गया और बोला -‘भला कहीं टूटे पत्ते भी जुड़ सकते हैं.
बुद्ध ने कहा, तुम जिस चीज को जोड़ नहीं सकते, उसे तोड़ने का अधिकार तुम्हें किसने दिया ? एक आदमी का सिर जोड़ नहीं सकते तो काटने में क्या बहादुरी है ?
अंगुलिमाल अवाक रह गया वह महात्मा बुद्ध की बातों को सुनता रहा. एक साधारण शक्ति ने उसके ह्रदय को बदल दिया. उसे लगा की सचमुच उससे भी ताकतवर कोई है. उसे आत्मग्लानी होने लगी. वह महात्मा बुद्ध के चरणों में गिर गया और बोला – ‘हे महात्मन ! मुझे क्षमा कर दीजिये, मैं भटक गया था. आप मुझे शरण में ले लीजिए, भगवान बुद्ध ने उसे अपने शरण में ले लिया और अपना शिष्य बना लिया. आगे चल कर यही अंगुलिमाल एक बहूत बड़ा सन्यासी बना.
सिख – इंसान कितना भी बुरा क्यों न हो उसके व्यवहार में परिवर्तन आ सकता है. बस उचित दृष्टांत / मार्गदर्शन होना चाहिए.
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