महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज-सुधारक, राजनीतिज्ञ, वसुधैव कुटुम्बकम के प्रबल समर्थक, भूदान यज्ञ के प्रणेता एवं शैक्षिक दर्शन के लिए जाने जाने वाले सन्त विनायक नरहरि भावे ( विनोबा भावे ) का जन्म 11 सितम्बर, 1895 को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोदा ग्राम में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री नरहरि पन्त तथा माता का नाम श्रीमती रघुमाई था.
विनोबा भावे को बाल्यकाल से ही शिक्षा में बहूत रूचि था. उनकी यादास्त शक्ति बहूत ही प्रबल थी. एक बार जो पढ़ लेते सदा के लिए कण्ठस्थ हो जाता था. चुकी उनकी माता श्री आध्यात्मिक थी इसीलिए विनोबा जी के बचपन पर आध्यात्म का प्रभाव पड़ा और अपने बाल्यकाल में 8 वर्ष के अवस्था में ही उन्होंने आध्यत्मिक पुस्तकों का अध्यन किया. 10 वर्ष के अवस्था में उनका उपनयन संस्कार करा दिया गया. अपने अध्यन काल में उन्होंने धर्म, दर्शन और साहित्य की हजारों पुस्तकें पढ़ीं. इन्होंने गणित और विज्ञान का भी गहन अध्ययन किया.
विनोबा जी पर गांधी जी की शिक्षाओं का बहुत प्रभाव पड़ा. समाचार पत्रों में गाँधी जी के विचारों को पढ़ कर प्रभावित हुए. 1916 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा उतीर्ण होने के पश्चात उनके मन में नॉकरी करने की इच्छा नहीं रही उन्होंने अपने सभी शैक्षणिक प्रमाण पत्र जला दिए. तदुपरांत उन्होंने अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया और अहमदाबाद स्थित गाँधी जी के आश्रम में पहुंचे. 1920 में गाँधी जी के निर्देश पर साबरमती आश्रम के वृद्धाश्रम की देखरेख करने लगे. 1923 में विनोबा भावे नागपुर में झण्डा सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार हुए. और उन्हें एक वर्ष की सजा दी गयी. 1920 से 1940 के बीच ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ अहिंसक आंदोलन का नेतृत्व करते हुए सैकड़ो बार जेल गए.
1940 में भारत छोड़ो आंदोलन में गाँधी जी ने उन्हें प्रथम सत्याग्रही के रूप में चुना और उन्होंने पवनार में अपना भाषण दिया. इसी क्रम में 9 अगस्त 1942 को उन्हें जेल जाना परा और 9 जुलाई 1945 को रिहा हुए तदुपरांत उन्होंने पवनार आश्रम का कार्यभार पुन: अपने कंधो पै ले लिया. फिर आजादी मिलने के पश्चात बंगाल के दिन – दुखियों के सेवा में निकल पड़े.
7 मार्च 1951 को उन्होंने भूमिहीनों के उत्थान हेतु भूदान आंदोलन का सूत्रपात किया पैदल ही यात्रा पर निकल परे और जमींदारो से भूदान करने का आवाहन किया, उनके बातों का इतना गहरा प्रभाव परा की आंध्र प्रदेश के जमींदार रामचन्द्र रेड्डी ने 100 एकर जमींन तात्काल ही भेंट कर दिया. उनका लक्ष्य था की प्रत्येक भूमिहीन परिवार को 5-5 एकर जमींन प्राप्त हो, उसमें उन्होंने 25 लाख 15 हजार 101 एकड़ भूमि 2 लाख 36 हजार 22 दाताओं से प्राप्त किये, और भूमिहीन गरीबों को दिए.
1960 में इन्होंने चम्बल के डाकुओं का आत्मसमर्पण करवाया. 1974 को अखिल भारतीय स्त्री सम्मेलन में भाग लिए और नारी के शक्तियों के महत्व पर प्रकाश डाले. विनोवा जी सदा गांधीजी के आदर्शों पर चलते थे. इन्होंने पशु संरक्षण, मध निषेध और अन्य सामाजिक बुराईओं को लेकर निरंतर संघर्ष किया. 1958 में इन्हें प्रथम रेमन मैग्सेस पुरुस्कार से नवाजा गया.
15 नवंबर 1982 को भरत के महान स्वतंत्रता सेनानी / महान समाजसेवी सन्त विनायक नरहरि भावे ( विनोबा भावे ) परमात्मा में विलीन हो गए. ऐसे महान निस्वार्थ नायक को भरतवर्ष सदैव स्मरण करता रहेगा. मरनोपरांत 1983 के भारतरत्न से इन्हें नवाजा गया.
“द्वेष बुद्धि को हम, द्वेष से नहीं मिटा सकते । प्रेम के शक्ति से ही उसे मिटा सकते है :: बिनोबा भावे“
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