इस छोटे से जीवन में मैंने अपने आखं से देखा है, और झेला भी है, और इस जीवन ने हमें सिखाया भी है, और हमें इस असमानता के खिलाफ बोलने की प्रेरणा भी मिली है । देखा हैं मैने जो धर्म के नाम पर किसी व्यक्ति जा विरोध करता है वही व्यक्ति सबसे पहले दलितों का विरोध करता है, दबे कुचलों पर अत्याचार करता है, आदिवासियों से घृणा करता है, वही महिलाओं का विरोध करता है, वही अपने रुढ़िवादी संस्कृती की पैरवी करता है, वही जीवन के हर स्तर पर असमानता को व्यवहार में लाता है और ये एक कटु सच्चाई है ।
चलिये मान लिया दुसरे धर्म वालों से आप घृणा करते है, तो इसका मतलब है आप अपने धर्म वालों को एक सामान देखते होंगे । फिर आपके व्यवहार में जाति व्यवस्था कहाँ से आ गयी, घर में भाई बहन में भेद कहाँ से आ गया और ये सब एक दास्तान मात्र है । आगे आपके चरित्र के वर्णन करने की कोई जरुरत ही नहीं रही ।
इसीलिये हम कहतें हैं हमरा एक धर्म है “ मानवता ” । जब आप अपने घर में भेद करते हैं तो फिर अगर हमें नगर निगम में बाहरी “ गाँव ” वाला कह कर मारा गया तो आपका खून क्यों खौला । हम तो सही में शहर के थे भी नहीं । आप का खून क्यों खौलता है जब आपको अन्य राज्य में एक खास राज्य के होने के नाते मारा पिटा जाता है, जब आपको अमरीका, ऑस्ट्रेलिया में बेइज्जती झेलना पड़ता है । नहीं है न जबाब आपके पास ? होगा भी नहीं !
आप भी तो भेद करते हो न, तब तो ये सब सहना ही पड़ेगा ! जी हाँ हम भेद की बात नहीं करते, हम इस प्रवृति में बदलाव की बात करते हैं । हम किसी भेद को नहीं मानते । हम मानव धर्म को मानते है और मानवता को अपनाने चलें हैं । हम खुद बदलने नहीं इस दुनिया, इस जहाँ को बदलने चलें हैं । हम जरुर मिटायेंगे इस भेद को एक दिन । हम काम भी करेंगे और दुसरें को भी करने देंगे । हमारी कामयाबी इसी में हैं ।
लेखक : अविनाश भारतद्वाज ( सामाजिक राजनितिक चिन्तक )
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