जानिये दुःख से मुक्ति के आठ रास्ते


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बुद्ध दुःख से मुक्ति के लिए आठ रस्ते बताये थे, ताकि हमारा जीवन शांतिपूर्ण और आनंदित हो सके । Buddha के मार्ग पर चलने के लिए नित जीवन में हमें आठ बातों को वरण करना होगा…

सम्यक दृष्टि, सम्यक जागृति, सम्यक कर्म, मधुर सम्बंध, सम्यक वाणी व शील, सम्यक संकल्प, सम्यक ध्यान व समाधि, सम्यक स्वीकार )

सम्यक दृष्टि

जीवन की हर घटना को देखने की दृष्टी सकारत्मक है या नकारात्मक इसी पर निश्चित होता हैं की हमारा जीवन कैसा होगा । हम तथ्य को स्वीकार नही करते हैं । हर घटना के साथ एक गाथा गढ़ लेते हैं । Buddha कहते हैं की सम्यक दृष्टी वही है जो कथाओं से मुक्त हों और घटना को सकारात्मक दृष्टी से देखती हो ।

सम्यक जागृति

झगरते समय बहुधा हम यही सोचते हैं कि हम ठीक हैं और दुसरे गलत । हम अपने को सही सिद्ध करना चाहते हैं । हम बदला लेने में विश्वास रखते हैं । जबकि क्षमा एक बेहतर विकल्प है । अतीत से सबक लेकर उसे भूल जाना ही सही है । यही सम्यक जागृति है ।

सम्यक कर्म

बुद्ध कहते हैं – प्रत्येक व्यक्ति अतुलनीय हैं । व्यक्ति के आसाधारण गुणों में रंगत लाने के लिए किये गए हर काम को उन्होंने “सम्यक कर्म ” माना । हमारा जीवन आसाधारण इसलिए नहीं बन पाया है कि हम अपनी असफलताओं को स्वीकार नहीं करते । अगर हम कारण बताने, तर्क देने और भाग्य परमात्मा अथवा अन्य किसी को दोष देने के बजाय अपनी असफलताओं को स्वीकार करना सीख लें तो हमारा जीवन स्वयं ही सम्यक कर्म बन जायेगा ।

मधुर सम्बंध 

बुद्ध का संदेश है की शांति और स्थिरता के बिज बोये और सम्बंधो में मिठास का रंग भरे । कुछ भी कहने – करने से पहले यदि आप विचलित अनुभव करते हैं, तो उस समय कुछ न करें । लेकिन यदि आप शांत अनुभव करते हैं, आवश्य ही कुछ करें । साथ ही कर्मचारियों और मित्रों के साथ पुरे सम्मान, विश्वास व सहयोग के साथ कार्य करें ।

सम्यक वाणी व शील

हर किसी के साथ विनम्र व शीलवान रहिये । विनम्रता और संवेदना से आधुनिक जीवन को शीलवान बना सकते हैं । आज सोसल साईट के यूग में भी वाणी के प्रति Buddha का संदेश कहीं अधिक प्रसंगिक है ।

सम्यक संकल्प 

बुद्ध कहते हैं, जीवन को दिशा देने के लिए संकल्प अनिवार्य है । हर क्षेत्र में विकाश के दृढ़ संकल्प चाहिए । इसके लिए हमें विचार करना होगा कि आखिर हम पाना क्या चाहते हैं ? इसके लिए अतीत से मुक्त होकर वर्तमान में जीना और अपनी शक्ति, सामर्थ्य, साहस व परिस्थिति का अवलोकन जरूरी है । उसके बाद ही कोई निर्णय लें अथवा लक्ष्य निर्धारित करें । फिर संकल्प की घोषणा करें ।

सम्यक ध्यान व समाधि 

बुद्ध उपदेश में ध्यान को लाख दुखों की एक दवा मन गया है । बुद्ध ने कहा है- जागरूक होकर आनंद पाना ‘सम्यक समाधि ‘ है । ध्यान पूर्ण – जागरूकता की ही अवस्था है । जब हम अपनी आती-जाती साँस, क्रोध, अशांति, क्षोभ, तनाव , विचारों के प्रति जागरूक होते हैं । सारी परेशानियों का जड़ यह है की हम हमेशा मूर्छा (बेहोशी) में रहते हैं । अगर हम होश्पूर्ण रहें, तो सार्वजनिक जीवन में हमारी उपयोगिता बढ़ेगी ।

सम्यक स्वीकार 

जो हुआ अच्छा हुआ । जो है अच्छा है और जो होगा अच्छा होगा । यह भाव सम्यक स्वीकार है । पूरी लगन, निष्ठा और ईमानदारी के साथ कार्य करें, लेकिन परिणाम जो भी हो उसे स्वीकार करें । श्रीकृष्ण का ‘निष्काम कर्मयोग’ भी कहता है कि कर्म करने का ही हमारा अधिकार है, फल प्राप्ति पर विशेष ध्यान नहीं होना चाहिए । हमें अपने उदेश्य और संकल्प की पूर्ति के लिए लगातार अपना प्रयास जारी रखने की आवश्यकता है । यही सफलता का सिद्धांत है ।

आलेख :  “ओशो शैलेन्द्र”

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1 Comment

  1. nagendra
    May 19, 2016
    Reply

    That’s a fantabulous quote for Lord Buddha.
    May Lord wish you for your magnanimous works..

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