रात को पानी की आवाज़ बहुत भयानक होती है, दूर कहीं चर-चाँचर में पानी गिरने की आवाज़, कुत्ते-बिल्लियों के क्रंदन और खूटें पर बंधे मवेशी की छटपटाहट बहुत डरावनी होती है | बाढ़ का स्वरुप विकराल होता है | पानी का स्तर धीरे-धीरे बढ़ते रहता है, खेत से अहाते तक पहुँचने में घंटे भर भी नहीं लगते, और फिर हम सीढियों पर पानी का स्तर देखने लगते हैं, और जब तक पानी ठहर नहीं जाता है, धड़कने असामान्य रहती है। चेहरे पर निराशा और हताशा एक साथ प्रकट रहती है | हर घंटे प्रादेशिक समाचार पर उम्मीद टिकी होती है | रेडियो पर लाशों की संख्या गिनती हुई समाचारवाचिका, पानी के करेंट में बह रहे लाशों और उजड़ी बस्तियों के बर्तन, बक्से, लकड़ी और उस पर फन फैलाये बैठे नागदेव और बगड़ा-मैना की कच-बच मन मस्तिष्क को अशांत बनाये रखती है |
घर के चारो तरफ पानी, सारे रास्ते बंद, संडास में पानी भरा हुआ….मूत्र विसर्जन तो आसान पर मल विसर्जन ? पुरुष तो पेड़ चढ़कर कुछ कर भी लेते हैं पर महिलाएं क्या करें ? चापाकल डूबा हुआ, अब पानी क्या पियेंगे ? असली तांडव तो 2-4 दिन बाद शुरू होता है जब बारिश रुकती है और धूप खिलती है | पानी का स्तर घटना शुरू होता है, एक तरफ तो उम्मीद जगती है और दूसरी तरफ गंदगी मौत का दूसरा तांडव शुरू करती है |
पानी लगने से कई पौधें सूख जाते हैं | पहले फसल डूबता है फिर कड़ी धूप में जब पानी गर्म होता है तो फसल पानी के अन्दर पीला होकर सड़ जाता है | और साथ में सड़े हुए कचड़े, लाशें और कई गन्दगियाँ जो बाढ़ के साथ बहकर आयी रहती है, बनाती है एक सरांध और दुर्गन्ध भरा वातावरण । जहाँ चील-कौवे भी नाक रखने से घबड़ाते हैं | और फिर फैलता है एक साथ कई महामारी और लील जाता है कई बस्तियों को | सबसे अधिक दिक्कत बाँध पर या बाँध के किनारे रहने वालों को होता है, जिनके घर-बार दह जाते हैं, पीने का पानी नहीं होता है, रिलीफ में जब चना मिलता है तो उसे कपड़े में बाँध कर उसी बाढ़ के पानी में भिंगोते हैं और खाते हैं | कई बार नदी अपना रास्ता मोड़ लेती है एक बसी हुई बस्ती नदी बन जाती है और बेघर लोग एक शरणार्थी |
सर्पदंश की घटनाएँ सर्वाधिक होती है, जहरीले साँप बाढ़ में दह कर आते हैं और अपना कहर बरपाते हैं, हमारे यहाँ उस वक़्त गाँव के प्राथमिक अस्पताल में सर्पदंश की दवाई नहीं होती है और लोग मौत को ठहर कर देखते हैं | पर कोई प्रबुद्ध बाढ़ के बाद इन मुद्दों पर बहस नहीं करता कि क्या इन जीवन रक्षक दवाईयों को गाँव के प्राथमिक उपचार केंद्र पर नहीं रखा जा सकता ? क्या गाँव-गाँव में वालंटियर नही प्रशिक्षित किये जा सकते जो इन विषम परिस्थितियों में अपने गांववालों का उचित ध्यान रख सकें ?
सरकारी इलज़ाम हमेशा नेपाल पर आया है, पर क्या बहते पानी को कोई रोक सकता है और रोक सकता है तो कब तक किस सीमा तक ? उसके पास हिमालय है तो जाहिर है नदी वहीं से निकलेगी और पानी का बहाव हमारे ही तरफ (तराई क्षेत्र में) होगा | बाढ़ आने के पहले कभी हमने सोचा ही नहीं की इतने लाख क्यूसेक पानी जो बेकार जानेवाला है इसका क्या उपयोग किया जाय |
पर ये तो 10-20 दिन का त्रासदी है, हंगामा होगा, हवाई दौरा होगा, हेलीकाप्टर से रिलीफ के पैकेट गिराए जायेंगे, घोटाला होगा उनके आमदनी का जरिया बनेगा बस | प्रधान सेवक, सम्मुख मंत्री नेपाल जाएँगे, वार्ता होगा, करोड़ों के निवेश का आश्वासन होगा फिर कहानी ख़त्म | बाढ़ की जिम्मेदारी नेपाल पर थोपकर फाइल क्लोज | कल से उत्त्तर बिहार के ये 10 लाख बाढ़ पीड़ित फिर से गाय-सूअर, मोदी-कांग्रेस, हिन्दू-मुस्लिम, भक्त-देशद्रोही, लालू-नितीश, भारत-पाकिस्तान-चीन-अमेरिका करने में लग जायेगे | राजनीतिज्ञ महकमा 2019 के लिए कूटनीति बनाने में लग जायेंगे | हमेशा की तरह अफवाहों, सोशल मीडिया ट्रेंडिंग न्यूज़ से युवा शक्ति अपना सामर्थ्य बढ़ाने में लग जायेंगे |
सब पैसों का खेल है साहब, अंग्रेज चले गये, अंग्रेजियत नहीं गयी है | डलहौजी साहब की कूटनीति हमारी राष्ट्रनीति बन गयी है | इतनी खाई इतनी नफरत तो अंग्रेजी शासन के वक़्त भी नहीं थी जितनी आज है | हम अपने ही देश में अपनी बीमार मानसिकता के गिरफ्त में पराधीन हैं |
दिनेश मिश्रा सर लिखते हैं – योजना काल में देश का बाढ़ प्रवण क्षेत्र 25 मिलियन हेक्टेयर से बढ़ कर 50 मिलियन हेक्टेयर हो गया और किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं है. हमारी हालत उस गाड़ीवान की तरह से हो गई है जो अपना माल गाड़ी पर लादता है, आगे कीले पर लालटेन टांग देता है, खुद सो जाता है और उसके बैल चल पड़ते हैं |
एक सवाल और जो मेरे मन में कौंध रहा है या आये दिन जिसपर बहस होती है वो है कि क्या तटबंध हटा देने देने बाढ़ लाभप्रद हो जाएगी ?
पढ़िए पुष्यमित्र भैया के तर्कपूर्ण विचार (click here), आप भी अपने विचार टिप्पणी बॉक्स में रखें | समस्या से अधिक समाधान पर चर्चा आवश्यक होती है |
चिन्मय भाई लिखे हैं, “हमारा करीब 23 बीघा धान आपादमस्तक डूबा हुआ है। शैली के भाई का 30 बीघा मखाना सरापा डूबा हुआ है।“
नुकसान का आप बस अंदाजा लगा सकते हैं बाकी दर्द तो जिसपर बीत-ता है वही समझता है | 200 एकड़ में हमारे किसानों ने अरहर लगाया था, 850 एकड़ में धान और लगभग 400 एकड़ में मक्का….सब गया पानी में | एक एकड़ का तालाब मात्र है मेरे पास, साल भर की पाली हुई मछलियाँ थी, सब गया | पिछले महीने भी जरुरत से ज्यादा बारिश हो गयी थी | 300 mm बारिश पिछले महीने हुई थी, सारा पौधा सड़ गया था, दुबारा से बीज लगाया था अब तो कुछ भी नहीं लगा सकते | सुबह सुबह फेनहारा से आनंद भाई का फोन आया कि अविनाश भाई रबी की तैयारी करिए, खरीफ तो मैया को चढ़ गया |
प्रत्यक्ष रूप से हमसे जुड़े चंपारण और पूर्णिया के तक़रीबन 9000 किसान बाढ़ से प्रभावित हैं, जिनकी फसल पूरी तरह डूब चुकी है | क्या खायेंगे अब ? क्या बेचकर उस किसान के बच्चे स्कूल कॉलेज की फीस भरेंगे ? वो बीमार पड़ेगा तो इलाज के पैसे कहाँ से लायेंगे ? क्या कोई डॉक्टर है जो इस बाढ़ के बाद हमारे गांवों में कैम्प लगाकर किसानों का फ्री इलाज करेगा ?
हमारा गाम कमला नदी के किनारे है, हर साल कमोबेश बाढ़ आती है, पहले जब तटबंध नहीं था तो काफी राहत थी, पानी फ़ैल जाता था, बढियां पांक आता था नुकसान कम होता था और फायदा अधिक | पांक से जमीन काफी उपजाऊ हो जाती थी | लोगों को पहले से अंदाजा होता है कि बाढ़ आ सकती है, अगस्त तक देख लो धान बचा तो बचा, नहीं तो बाढ़ के बाद किसी रिश्तेदार के यहाँ से धान का पौधा खरीदकर, उसके कल्ले अलग-अलग करके रोपेंगे, लोकल भाषा में इसे ख’ढ़ रोपना कहते हैं, साल भर पेट भरने के लिए कुछ तो खेत में लगाना ही पड़ेगा |
सभी लोगों से निवेदन है कि यथासंभव बाढ़ पीड़ितों की मदद करें, मदद सिर्फ पैसे से नहीं होती है, आप सोचिये आप क्या मदद कर सकते हैं | आप अपना मुँह बंद रखकर मदद कर सकते हैं, आप आवाज उठा कर मदद कर सकते हैं | आप हाथ बांधकर सोफे पर बैठकर टेलीविजन देखते हुए मदद कर सकते हैं, आप रिलीफ बांटने उनके दरवाजे तक पहुँच सकते हैं |
सभी पीड़ित एवं पीड़ित व्यक्तियों से संवाद करनेवाले सुधीजन या कुछ देर, कुछ दिन में पीड़ित होनेवाले मेरे ग्रामीण बंधू से आग्रह की कुछ आवश्यक सामग्रियों को एकत्रित करके हमेशा साथ रखें | जैसे एक टॉर्च, रेडियो, ओडोनिल, कछुवा छाप/मच्छड़ भगानेवाली अगरबत्ती, ब्लेड, चाक़ू, प्लास्टिक, पटसन की मजबूत रस्सी, डेटोल/सेवलोन/बेटाडीन, फिनायल की गोली, क्लोरिन की गोली (पानी साफ़ करने के लिए), एलेक्ट्रोल/ओआरएस, कुछ आवश्यक दवाइयाँ (जैसे दस्त की दवाई, बुखार की दवाई आदि), माचिस या लाइटर, एक लाठी, एक गमछा जरुर, 2-4 किलो चना आदि | बाकी ये त्रासदी है और हम साथ रहेंगे तो कोई रास्ता ढूँढ ही लेंगे | अपना ख्याल रखियेगा | सबकुछ बहुत जल्द ठीक हो जाएगा |
“ताकत वतन की हमसे है
हिम्मत वतन की हमसे है
इज्ज़त वतन की हमसे है,
इंसान के हम रखवाले ||”
लेखक : अविनाश कुमार
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