एक यूवक सीढियों से गिर कर घायल हो गया. उसके पिता तत्काल उसे लेकर अस्पताल गए. वहाँ आवश्यक जाँच के बाद पता चला की यूवक के शरीर में तिन जगह गंभीर फ्रेक्चर है. ऑपरेशन की आवश्यकता देखते हुए सीनियर डॉ को बुलाया गया. उन्हें आने में थोड़ी देर लगी. यह देख युवक के पिता क्रोध से आग बबूला हो गए. कुछ देर तक तो नर्स व अन्य डॉ पर नाराज होते रहे. फिर जब सीनियर डॉ का आगमन हुआ तो यूवक के पिता उनसे लड़ने लगे. उन्होंने कहा ‘आपलोगों के लिए मरीज इंसान नहीं मशीन होता है. जब सुविधा हुई तब आ कर इलाज करेंगे. मेरे बेटे की हालत गंभीर है अगर उसे कुछ हो गया, तो मैं आपको छोडूंगा नहीं. ‘ डॉ ने बड़ी ही शांति से उत्तर दिया ‘आप धेर्य रखिये मुझसे जितनी जल्दी संभव हो सका, मैं आया और आपके बेटे को भी कुछ नहीं होने दूंगा.’ इसके बाद भी यूवक के पिता का डॉ को कोसना जारी रहा.
बहरहाल, ऑपरेशन सफल रहा बाहर आकर डॉ ने यूवक के पिता को यह सुचना दी और शेष बातें नर्स से पूछ लेने को कह कर निकल गए. यह देख कर यूवक के पिता ने पुन: रोष जाहिर किया. तब नर्स ने उन्हें बताया की सीनियर डॉ के यूवा पुत्र का एक दिन पूर्व ही सड़क दुर्घटना में देहांत हुआ है, और आज उसका क्रिया कर्म होने के कारण वें ऑपरेशन में विलंभ से पहुंचे थे.
यूवक के पिता को यह सुनकर अपने व्यवहार पर अत्यधिक ग्लानी हुई. इस कथा क सार यह है कि जब कोई पूर्णत: हमारी अपेक्षा के अनुकूल काम न करे तो उसे गलत समझने से पहले उसके विषय में पूरा सच जान लें, अन्यथा जल्दबाजी में किसी निष्कर्ष पर पहुंचकर प्रतिक्रिया देने से हम स्वयं भी दुःखी होतें हैं और सामने वाले को भी कष्ट पहुंचाते हैं.
Leave a Reply