यह लेख जो आपको आपके वास्तविक ताकत से परिचय करवाएगा आपके सच्चे मित्र से आपका परिचय करवाएगा. जो आपके अंदर स्वत: विकसित होता है. तो आईये Start करते हैं, बहूत सारे लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है की आत्मविश्वास क्या है ?
स्वेट मार्डेन कहते हैं. आत्मविश्वास का शाब्दिक अर्थ है – स्वयं में विश्वास. यह विश्वास कि मैं समर्थ हूँ. यह विश्वास कि मैं शक्तिशाली हूँ. यह विश्वास की मैं सब कुछ कर सकता हूँ, यही है, आत्मविश्वास.
मित्रों, जीवन में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आत्मविश्वास एक महत्वपूर्ण गुण है. जो हमारे अंदर अपने प्रति हिन भावनाओं का विकास होने से रोकता है. हमें प्रबल इच्छाशक्ति प्रदान करता है. अपने अंदर के वास्तविक शक्ति को जागृत करता है. या यूं कहें की यह गुण हमारें सम्पूर्ण जीवन में बदलाव लाता है. सही अर्थों में यही हमारा सच्चा मित्र है.
अब प्रश्न यह है की माना की यह हमारें जीवन में बदलाव ला सकता है. परन्तु इसे विकसित करने का उपाय क्या है?
कुछ बातों को समझ कर हम अपने आत्मविश्वास को बढ़ा सकते हैं.
हमें हमेशा चुनौतियों को स्वीकार कर के आगे बढ़ना चाहिए. हम जैसे ही कुछ नया करना Start करते हैं हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है.
हमें जल्द-से-जल्द सही फैसले लेने की क्षमता विकसित करनी चाहिए.
अगर हम नकारात्मक विचार रखतें है, तो इससे हिन भावना का विकास होता है जो हमें आगे बढ़ने से रोकता है, इसीलिए हमेशा सकारात्मक सोंचे.
वैसे व्यक्ति जो आत्मविश्वासी हों ऐसे लोगो के सम्पर्क में रहें.
अगर हम अपनी कमजोरियों को स्वीकार करें तो हमारा यह लक्षण भी हमारे आत्मविश्वास को बढ़ता है. अपने कमजोरियों को हमें यथार्थवादी ढंग से समझने की कोशिश करनी चाहिए.
इसका अर्थ स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने अपनी-अपनी धारणाएं प्रस्तुत की हैं, जिनमे से कुछ विद्वानों का विचार मैं रख रहा हूँ.
महात्मा गाँधी कहते हैं – आत्मविश्वास का अर्थ है- अपने काम में अटूट श्रधा.
जाँनसन कहते हैं – महान कार्य करने के लिए पहली जरूरी चीज है – आत्मविश्वास.
आत्मविश्वास के सम्बंध में फ्रायड महोदय कहते हैं – “यदि किसी पौधे को फल और फूलों से यूक्त पूर्ण वृक्ष बनाना है तो उसकी जड़ो को खूब निचे तक जाना होगा. इसी प्रकार की नींव पर मानसिक प्रशिक्षण और सुधार का सुंदर भवन खड़ा होता है. किसी भी नवयूवक में ऐसा आत्मविश्वास होना चाहिए जो उसे निम्न स्तर से ऊँचा उठाए और दूसरों के तिरस्कार से मुक्त कराए.”
स्वामी विवेकानंद कहते हैं – ” पुराने धर्मों ने कहा है कि नास्तिक वह है, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता. नया धर्म कहता है की नास्तिक वह है, जो अपने आप पर विश्वास नहीं करता.”
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