पढिये दुष्यंत कुमार की लोकप्रिय प्रेरणात्मक कविताएँ “हो गई है पीर- पर्वत सी / कुछ भी बन बस, कायर मत बन / और ये जो शहतीर है“
-: हो गई है पीर पर्वत-सी :-
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से नई गंगा निकलनी चाहिए ।
आज यह दिवार, परदों की तरह हिलने लगी, शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए ।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए ।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ए सूरत बदलनी चाहिए ।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए ।
-: कुछ भी बन :-
कुछ भी बन , बस कायर मत बन । ठोकर मार पटक मत माथा ।
तेरी राह रोकते पाहन । कुछ भी बन , बस कायर मत बन ।
तेरी रक्षा का न मोल है । पर तेरा मानव अनमोल है ।
यह मिटता है वह बनता है । अर्पण कर सर्वस्व मनुज को ।
कर न दुष्ट को आत्म समर्पण । कुछ भी बन बस कायर मत बन ।
-: ये जो शहतीर है :-
ये जो शहतीर है , पलकों पे उठा लों यारों । अब कोई , ऐसा तरीका भी निकालो यारों ।
दर्दें दिल वक्त पै पैगाम भी, पहुंचाएगा । इस कबूतर को जऱा प्यार से पालो यारों ।
लोग हाथों में लिए बैठे हैं , अपने पिंजरे , आज सैयाद को महफ़िल में बुला लों यारों ।
आज जीवन को उधेड़ो तो, ज़रा देंखेंगे , आज संदूक से वो ख़त तो निकालो यारों ।
रहनुमाओं के अदा पै, फ़िदा है दुनियां , इस बहकती हुई दुनियां को, संभालो यारों ।
कैसे आकाश में सुराख़, हो नहीं सकता , एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों ।
लोग कहतें हैं की, ये बात नहीं कहने कि , तुमनें कह दी है तो, कहने की सज़ा लों यारों ।
nice motivative lines……