मैथिली बोलतें हैं शान से


avinash

मैं भी एक मैथिल हूँ । मातृभाषा मैथिली है । कहते हैं दुनिया की सबसे मीठी भाषा है, लेकिन 21वीं सदी में मुझे भी अपनी मातृभाषा बोलने में गर्व महसूस नहीं होता तो हमने भी हिंदी और अंग्रेजी को अपना लिया । सोचा था..

इससे अपना ही नहीं क्षेत्र का भी विकास करने में सफल रहूँगा, लेकिन विकास के इस दौर में हम इतना पीछे कैसे हो गये ये समझ नहीं सका । और हां कभी नजदीक से अपने मिथिला क्षेत्र को देखने का मौका नहीं मिला था तो जो समझ विकसित हुई वो विभिन्न सरकारी डाटा को पढ़ कर ही । कुछ दिनों के लिए रिसर्च फील्ड से जुड़ा तो मिथिला, बिहार, नार्थ बिहार को गूगल करना, पिछड़े इलाके पर निकलने वाले शोध पत्र को पढ़ना एक आदत सी बन गई । जितना पढता उतना ही सोचने को मजबूर होता । क्यों हमारा यह हाल है, क्यों कोई कुछ नहीं बोलता, क्यों बदलाव की बातें बेमानी है और क्यों हम इस विकास के दौर में अपने ही देश में उपनिवेश बनकर रह गयें हैं ।

तो लोगों से मिलता मिलना-जुलना जारी रहा । उपनिवेशवादी संस्कृति और उसके शोषण के विभिन्न आयामों को समझने लगा । फिर वही अंग्रेजों वाली निकल कर सामने आ गयी । अगर कहीं भी राज करना है तो वहाँ की संस्कृती को दोयम दर्जा का बता उसे तहस-नहस कर दो । पिछले दशकों में यही तो देखने को मिला । एक सोची-समझी रणनीति के तहत पूरी मिथिला की संस्कृति को तहस-नहस कर बर्बाद कर दिया गया । फिर जहां संस्कृति नहीं रहेगी, पहचान का संकट खड़ा होना लाजमी है वही हुआ । एक फलता-फूलता समाज की निर्मम हत्या कर दी गई और भूख, कुपोषण, बेरोजगारी, पलायन घर-घर की कहानी बन गई ।

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“अविनाश भारतद्वाज एक समाजिक कार्यकर्ता एवं सामाजिक राजनितिक चिन्तक हैं”

अब अगर बदलाव की थोड़ी सी भी चाहत है तो हमें फिर से लड़ना पड़ेगा । उपनिवेशवादी संस्कृति का घोर विरोध करना पड़ेगा और अपनी संस्कृति के तरफ कट्टरता से लौटना पड़ेगा । एक बार हम अपने लाखों युवाओं में अपनी संस्कृति के प्रति शान का भाव जगाने में सफल रहें तो फिर एक विकसित मिथिला की कल्पना करने से हमें कोई नहीं रोक सकता । युवा खुद ही लड़ लेंगे अपने अधिकार के लिए । तो आइए फिर से एक अलख जगाते हैं अपनी भाषा के प्रति । मैथिली बोलते हैं शान से !


लेखक : अविनाश भारतद्वाज 9852410622


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2 Comments

  1. Arvind Pandit
    April 6, 2017
    Reply

    Bhaut nik aur ytharth lekh aichh sanskriti ke upar

  2. Arvind Pandit
    April 6, 2017
    Reply

    Khub nik lekh aichh

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