जाति नहीं व्यव्स्था बदलो ; अविनाश


Change the caste system

उस दलित बस्ती के चौक पर बैठकर ब्राह्मण होने के कारण हमने जितनी गालियां सुनी थी उसकी कल्पना हमने सपनों में भी नहीं की थी । सच कहूं उस दिन मुझे पता चला मैं ब्राह्मण हूं, नहीं तो देश के विभिन्न…

कोनो में काम करते वक्त अपने आप को मैंने एक सामाजिक कार्यकर्ता ही समझा था । साइकिल यात्रा के दौरान आपने मिथिला के सामाजिक ताने-बाने पर जब मैं भी कसा जाने लगा तो दिल के किसी कोने से दर्द छलक आँखों को नम कर गया । चुपचाप घंटो उस वाद- विवाद को सुनता मचान पर बैठे-बैठे निराशा की दुनिया में गोते लगाता एकटक उन दलित पिछड़ों की भावनाओं को समझने का प्रयत्न करता रहा ।

दिमाग में रह-रह कर आता कि क्यों न इस वाद-विवाद में भाग लेते हुए एक छोटा सा प्रशन मैं भी करूँ बाइक पर बैठे उस तथाकथित मुखिया से जो आप बस अपनी राजनीति चमकाने के लिए समाज को जाति के आधार पर बांटने की कुटिल राजनीति कर रहें हैं । पूछ दूँ की क्या गारंटी है आपको वोट देने वाले पिछरे, गरीब, दलित वर्ग को इंदिरा आवास, राशन कार्ड, पेंशन मिल जाएगा, भूदान की जमीन पर दखल हो जाएगा । यह भी पुछु कि क्या इन सामाजिक वेलफेयर के कामों में अब आपके ही जाती के मुखिया जी घुस नहीं लगने देंगे ? थाने का शोषण नहीं होगा, आप के सड़क, चापाकल, घर में कमीशन का खेल नहीं खेला जाएगा । स्कूल, हॉस्पिटल में शिक्षक, डॉक्टर समय पर आएंगे । मन में यह भी तो आया कि क्यों नहीं जिस 600 वोट के बल पर आप जीते हैं उन 600 परिवार के कच्चे मकान को आप इंदिरा आवास दिलवा देंगे । बस अपने ही समाज का भलाई कर दो पूरे गांव में समाज विकसित हो जायेगा लेकिन पता था इन प्रशनो का उत्तर नहीं होता । चुकी सत्ता में लोग बदले थे, व्यवस्था नहीं और हमें इसी मुद्दा को लोगों को समझाने की जरूरत थी ।

खैर कहीं न कहीं आवाज उन्हीं के समाज में से उठी जरूर थी । एक बुजुर्ग ने प्रशन किया कि आप तो मुखिया बनते ही ट्रैक्टर खरीद लिये तो अब समाज के लिये क्या करेंगे । उस प्रशन ने उस महफिल को कचोटा था, एक व्यंग की भावना ने जाति के आधार पर बांटने की मुहिम पर कुठाराघात किया था और यह भी हमने चुपचाप ही देखा, सुना और समझा था । व्यग्रता व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव कि उसे उबलता हुआ पाया था । बस निष्कर्ष यही निकला था कि हमें सही मुद्दों के साथ हर वर्ग तक पहुंचना होगा । शहर की गलियों से दूर गांव के पगडंडियों पर संघर्ष की बेला को जगाना पड़ेगा तभी एक विकसित मिथिला की कल्पना को हकीकत में जमीन पर उतार सकते हैं ।


लेखक : अविनाश ; 9852410622

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1 Comment

  1. Arvind Pandit
    April 7, 2017
    Reply

    Nice lekh aichh
    Vayvasta me change abay chahi

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