सर्वप्रथम आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ! प्रस्तुत है, राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी द्वरा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम संदेश !
मेरे प्यारे देशवासियों, हमारे राष्ट्र के 67वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, मैं भारत और विदेशों में बसे आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूं । मैं, हमारी सशस्त्र सेनाओं, अर्ध-सैनिक बलों तथा आंतरिक सुरक्षा बल के सदस्यों को अपनी विशेष बधाई देता हूं । मैं उन वीर सैनिकों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं, जिन्होंने भारत की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने और विधि शासन को कायम रखने के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया ।
प्यारे देशवासियों, 26 जनवरी 1950 को हमारे गणतंत्र का जन्म हुआ । इस दिन हमने स्वयं को भारत का संविधान दिया । इस दिन उन नेताओं की असाधारण पीढ़ी का वीरतापूर्ण संघर्ष पराकाष्ठा पर पहुंचा था, जिन्होंने दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र की स्थापना के लिए उपनिवेशवाद पर विजय प्राप्त की । उन्होंने राष्ट्रीय एकता, जो हमें यहां तक लेकर आई है, के निर्माण के लिए भारत की विस्मयकारी अनेकता को सूत्रबद्ध कर दिया । उनके द्वारा स्थापित स्थायी लोकतांत्रिक संस्थाओं ने हमें प्रगति के पथ पर अग्रसर रहने की सौगात दी है । आज भारत एक उदीयमान शक्ति है, एक ऐसा देश है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवान्वेषण और स्टार्ट-अप में विश्व अग्रणी के रूप में तेजी से उभर रहा है और जिसकी आर्थिक सफलता विश्व के लिए एक कौतूहल है ।
प्यारे देशवासियों, वर्ष 2015 चुनौतियों का वर्ष रहा है । इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी रही । वस्तु बाजारों पर असमंजस छाया रहा । संस्थागत कार्रवाई में अनिश्चितता आई । ऐसे कठिन माहौल में किसी भी राष्ट्र के लिए तरक्की करना आसान नहीं हो सकता । भारतीय अर्थव्यवस्था को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा । निवेशकों की आशंका के कारण भारत समेत अन्य उभरते बाजारों से धन वापस लिया जाने लगा जिससे भारतीय रुपये पर दबाव पड़ा । हमारा निर्यात प्रभावित हुआ । हमारे विनिर्माण क्षेत्र का अभी पूरी तरह उभरना बाकी है ।
2015 में हम प्रकृति की कृपा से भी वंचित नहीं रहे । भारत के अधिकतर हिस्सों पर भीषण सूखे का असर पड़ा जबकि अन्य हिस्से विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ गए । मौसम के असामान्य हालात ने हमारे कृषि उत्पादन को प्रभावित किया । ग्रामीण रोजगार और आमदनी के स्तर पर बुरा असर पड़ा ।
प्यारे देशवासियों, हम इन्हें चुनौतियां कह सकते हैं, क्योंकि हम इनसे अवगत हैं । समस्या की पहचान करना और इसके समाधान पर ध्यान देना एक श्रेष्ठ गुण है । भारत इन समस्याओं को हल करने के लिए कार्य नीतियां बना रहा है । और उनका कार्यान्वयन कर रहा है । इस वर्ष 7.3 प्रतिशत की अनुमानित विकास दर के साथ, भारत सबसे तेजी से बढ़ रही विशाल अर्थव्यवस्था बनने के मुकाम पर है । विश्व तेल कीमतों में गिरावट से बाह्य क्षेत्र को स्थिर बनाए रखने और घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिली है । बीच-बीच में रुकावटों के बावजूद इस वर्ष उद्योगों का प्रदर्शन बेहतर रहा है ।
आधार 96 करोड़ लोगों तक मौजूदा पहुंच के साथ, आर्थिक रिसाव रोकते हुए और पारदर्शिता बढ़ाते हुए लाभ के सीधे अंतरण में मदद कर रहा है । प्रधानमंत्री जन – धन योजना के तहत खोले गए 19 करोड़ से ज्यादा बैंक खाते वित्तीय समावेशन के मामले में विश्व की अकेली सबसे विशाल प्रक्रिया है । सांसद आदर्श ग्राम योजना का लक्ष्य आदर्श गांवों का निर्माण करना है । डिजिटल भारत कार्यक्रम डिजिटल विभाजन को समाप्त करने का एक प्रयास है । प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का लक्ष्य किसानों की बेहतरी है । महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जैसे कार्यक्रमों पर बढ़ाए गए खर्च का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था को दोबारा सशक्त बनाने के लिए रोजगार में वृद्धि करना है । भारत में निर्माण अभियान से व्यवसाय में सुगमता प्रदान करके और घरेलू उद्योग की स्पर्द्धा क्षमता बढ़ाकर विनिर्माण तेज होगा । स्टार्ट-अप इंडिया कार्यक्रम नवान्वेषण को बढ़ावा देगा और नए युग की उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करेगा । राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन में 2022 तक 30 करोड़ युवाओं को कुशल बनाने का विचार किया गया है । हमारे बीच अकसर संदेहवादी और आलोचक होंगे । हमें शिकायत, मांग, विरोध करते रहना चाहिए । यह भी लोकतंत्र की एक विशेषता है । परंतु हमारे लोकतंत्र ने जो हासिल किया है, हमें उसकी भी सराहना करनी चाहिए । बुनियादी ढांचे, विनिर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश से, हम और अधिक विकास दर प्राप्त करने की बेहतर स्थिति में हैं, जिससे हमें अगले दस से पंद्रह वर्षों में गरीबी मिटाने में मदद मिलेगी ।
प्यारे देशवासियों, अतीत के प्रति सम्मान राष्ट्रीयता का एक आवश्यक पहलू है । हमारी उत्कृष्ट विरासत, लोकतंत्र की संस्थाएं सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता एवं लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती हैं । जब हिंसा जैसी घृणित घटनाएं इन स्थापित आदर्शों, जो हमारी राष्ट्रीयता के मूल तत्व हैं, पर चोट करती हैं तो उन पर उसी समय ध्यान देना होगा । हमें हिंसा, असहिष्णुता और अविवेकपूर्ण ताकतों से स्वयं की रक्षा करनी होगी ।
प्यारे देशवासियों, विकास की शक्तियों को मजबूत बनाने के लिए, हमें सुधारों और प्रगतिशील विधान की आवश्यकता है । यह सुनिश्चित करना विधि निर्माताओं का परम कर्तव्य है, कि पूरे विचार-विमर्श और परिचर्चा के बाद ऐसा विधान लागू किया जाए । सामंजस्य, सहयोग और सर्वसम्मति बनाने की भावना निर्णय लेने का प्रमुख तरीका होना चाहिए । निर्णय और कार्यान्वयन में विलम्ब से विकास प्रक्रिया का ही नुकसान होगा ।
प्यारे देशवासियों, विवेकपूर्ण चेतना और हमारे नैतिक जगत का प्रमुख उद्देश्य शांति है । यह सभ्यता की बुनियाद और आर्थिक प्रगति की जरूरत है । परंतु हम कभी भी यह छोटा सा सवाल नहीं पूछ पाए हैं । शांति प्राप्त करना इतना दूर क्यों है ? टकराव को समाप्त करने से अधिक शांति स्थापित करना इतना कठिन क्यों रहा है ? विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उल्लेखनीय क्रांति के साथ 20वीं सदी की समाप्ति पर, हमारे पास उम्मीद के कुछ कारण मौजूद थे कि 21वीं सदी एक ऐसा युग होगा, जिसमें लोगों और देश की सामूहिक ऊर्जा उस बढ़ती हुई समृद्धि के लिए समर्पित होगी जो पहली बार घोर गरीबी के अभिशाप को मिटा देगी । यह उम्मीद इस शताब्दी के पहले पंद्रह वर्षों में फीकी पड़ गई है । क्षेत्रीय अस्थिरता में चिंताजनक वृद्धि के कारण व्यापक हिस्सों में अभूतपूर्व अशांति है । आतंकवाद की बुराई ने युद्ध को इसके सबसे बर्बर रूप में बदल दिया है । इस भयानक दैत्य से अब कोई भी कोना अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं कर सकता है । आतंकवाद उन्मादी उद्देश्यों से प्रेरित है, नफरत की अथाह गहराइयों से संचालित है, यह उन कठपुतलीबाजों द्वारा भड़काया जाता है जो निर्दोष लोगों के सामूहिक संहार के जरिए विध्वंस में लगे हुए हैं । यह बिना किसी सिद्धांत की लड़ाई है, यह एक कैंसर है, जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा । आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, यह केवल बुराई है ।
प्यारे देशवासियों, देश हर बात से कभी सहमत नहीं होगा, परंतु वर्तमान चुनौती अस्तित्व से जुड़ी है । आतंकवादी महत्त्वपूर्ण स्थायित्व की बुनियाद, मान्यता प्राप्त सीमाओं को नकारते हुए व्यवस्था को कमजोर करना चाहते हैं । यदि अपराधी सीमाओं को तोड़ने में सफल हो जाते हैं, तो हम अराजकता के युग की ओर बढ़ जाएंगे । देशों के बीच विवाद हो सकते हैं, और जैसा कि सभी जानते हैं, कि जितना हम पड़ोसी के निकट होंगे, विवाद की संभावना उतनी अधिक होगी । असहमति दूर करने का एक सभ्य तरीका, संवाद है, जो सही प्रकार से कायम रहना चाहिए । परंतु हम गोलियों की बौछार के बीच शांति पर चर्चा नहीं कर सकते । भयानक खतरे के दौरान हमें अपने उपमहाद्वीप में विश्व के लिए एक पथप्रदर्शक बनने का ऐतिहासिक अवसर प्राप्त हुआ है । हमें अपने पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण वार्ता के द्वारा अपनी भावनात्मक और भू-राजनीतिक धरोहर के जटिल मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए, और यह जानते हुए एक दूसरे की समृद्धि में विश्वास जताना चाहिए, कि मानव की सर्वोत्तम परिभाषा दुर्भावनाओं से नहीं बल्कि सद्भावना से दी जाती है । मैत्री की बेहद जरूरत वाले विश्व के लिए हमारा उदाहरण अपने आप एक संदेश का कार्य कर सकता है ।
प्यारे देशवासियों, भारत में हर एक को एक स्वस्थ, खुशहाल और कामयाब जीवन जीने का अधिकार है । इस अधिकार का, विशेषकर हमारे शहरों में, उल्लंघन किया जा रहा है, जहां प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है । जलवायु परिवर्तन अपने असली रूप में सामने आया जब 2015 सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज किया गया । विभिन्न स्तरों पर अनेक कार्यनीतियों और कार्रवाई की आवश्यकता है । शहरी योजना के नवान्वेषी समाधान, स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग और लोगों की मानसिकता में बदलाव के लिए सभी भागीदारों की सक्रिय हिस्सेदारी जरूरी है । लोगों द्वारा अपनाए जाने पर ही इन परिवर्तनों का स्थायित्व सुनिश्चित हो सकता है ।
प्यारे देशवासियों, अपनी मातृभूमि से प्रेम समग्र प्रगति का मूल है । शिक्षा, अपने ज्ञानवर्धक प्रभाव से, मानव प्रगति और समृद्धि पैदा करती है । यह भावनात्मक शक्तियां विकसित करने में सहायता करती है , जिससे सोई उम्मीदें और भुला दिए गए मूल्य दोबारा जाग्रत हो जाते हैं । डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था, ‘‘शिक्षा का अंतिम परिणाम एक उन्मुक्त रचनाशील मनुष्य है जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्राकृतिक विपदाओं के विरुद्ध लड़ सकता है ।’’ ‘चौथी औद्योगिक क्रांति’ पैदा करने के लिए जरूरी है, कि यह उन्मुक्त और रचनाशील मनुष्य उन बदलावों को आत्मसात करने के लिए परिवर्तन गति पर नियंत्रण रखे जो व्यवस्थाओं और समाजों के भीतर स्थापित होते जा रहे हैं । एक ऐसे माहौल की आवश्यकता है, जो महत्त्वपूर्ण विचारशीलता को बढ़ावा दे और अध्यापन को बौद्धिक रूप से उत्साहवर्धक बनाए । इससे विद्वता प्रेरित होगी और ज्ञान एवं शिक्षकों के प्रति गहरा सम्मान बढ़ेगा । इससे महिलाओं के प्रति आदर की भावना पैदा होगी जिससे व्यक्ति जीवन पर्यन्त सामाजिक सदाचार के मार्ग पर चलेगा । इसके द्वारा गहन विचारशीलता की संस्कृति प्रोत्साहित होगी और चिंतन एवं आंतरिक शांति का वातावरण पैदा होगा । हमारी शैक्षिक संस्थाएं मन में जाग्रत विविध विचारों के प्रति उन्मुक्त दृष्टिकोण के जरिए, विश्व स्तरीय बननी चाहिए । अंतरराष्ट्रीय वरीयताओं में प्रथम दो सौ में स्थान प्राप्त करने वाले दो भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के द्वारा यह शुरुआत पहले ही हो गई है ।
प्यारे देशवासियों, पीढ़ी का परिवर्तन हो चुका है। युवा बागडोर संभालने के लिए आगे आ चुके हैं । ‘नूतन युगेर भोरे’ के टैगोर के इन शब्दों के साथ आगे कदम बढ़ाएं !
‘‘चोलाय चोलाय बाजबे जायेर भेरी पायेर बेगी पॉथ केटी जाय कोरिश ने आर देरी।’’
आगे बढ़ो, नगाड़ों का स्वर तुम्हारे विजयी प्रयाण की घोषणा करता है । शान के साथ कदमों से अपना पथ बनाएं । देर मत करो, देर मत करो, एक नया युग आरंभ हो रहा है।
धन्यवाद, जय हिंद !
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