शहंशाह-ए-तरन्नुम – मोहम्मद रफ़ी


mohammad-rafi

शहंशाह-ए-तरन्नुम – मोहम्मद रफ़ी हिंदी सिनेमा के श्रेष्ठतम पार्श्व गायकों में से एक थे। आईये इनके पुण्यतिथि पर  पढ़ते एवं सुनते हैं इनके प्रिसिद्ध संगीत 

वो जब याद आए, बहुत याद आए !

लिखे जो ख़त तुझे, वो तेरी याद में
हज़ारों रंग के, नज़ारे बन गए
सवेरा जब हुआ, तो फूल बन गए
जो रात आई तो, सितारे बन गए

कोई नगमा कहीं गूँजा, कहा दिल ने ये तू आई
कहीं चटकी कली कोई, मैं ये समझा तू शरमाई
कोई खुश्बू कहीं बिख़री, लगा ये ज़ुल्फ़ लहराई
लिखे जो खत तुझे…

फ़िज़ा रंगीं अदा रंगीं, ये इठलाना, ये शरमाना
ये अंगड़ाई, ये तन्हाई, ये तरसा कर चले जाना
बना देगा नहीं किसको, जवां जादू ये दीवाना
लिखे जो खत तुझे…

जहाँ तू है, वहाँ मैं हूँ, मेरे दिल की तू धड़कन है
मुसाफ़िर मैं, तू मंज़िल है, मैं प्यासा हूँ, तू सावन है
मेरी दुनिया, ये नज़रें हैं, मेरी जन्नत ये दामन में
लिखे जो खत तुझे…

संगीत –  मो.रफ़ी


इस रेशमी पाज़ेब की झंकार के सदके
जिस ने ये पहनाई है उस दिलदार के सदके
उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान लब-ओ-रुक़सार के सदके
हर जलवा था इक शोला हुस्न-ए-यार के सदके
जवानी माँगती ये हसीं झंकार बरसों से
तमन्न बुन रही थी धड़कनों के तार बरसों से
छुप-छुप के आने वाले तेरे प्यार के सदके
इस रेशमी पाज़ेब की …
जवानी सो रही थी हुस्न की रंगीन पनाहों में
चुरा लाये हम उन के नाज़नीं जलवे निगाहों में
क़िसमत से जो हुआ है उस दीदार के सदके
उस ज़ुल्फ़ के क़ुरबान …
नज़र लहरा रही थी ज़ीस्त पे मस्ती सी छाई है
दुबारा देखने की शौक़ ने हल्चल मचाई है
दिल को जो लग गया है उस अज़ार के सदके
इस रेशमी पाज़ेब की …

 

संगीत –  मो.रफ़ी एवं लता मंगेशकर


वक़्त से दिन और रात
वक़्त से कल और आज
वक़्त की हर शह ग़ुलाम
वक़्त का हर शह पे राज

आदमी को चाहिये
वक़्त से डर कर रहे
कौन जाने किस घड़ी
वक़्त का बदले मिजाज़
वक़्त से दिन और रात

वक़्त की पाबन्द हैं
आते जाते रौनके
वक़्त है फूलों की सेज
वक़्त है काँटों का ताज
वक़्त से दिन और रात …

संगीत –  मो.रफ़ी


दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर
यादों को तेरी मैं दुल्हन बनाकर
रखूँगा मैं दिल के पास,
मत हो मेरी जाँ उदास….!!
कल तेरे जलवे पराये भी होंगे,
लेकिन झलक मेरे ख्वाबों में होंगे
फूलों की डोली में होगी तू रुखसत,
लेकिन महक मेरी सांसों में होगी
दिल के झरोखे में …..!!
“””
अब भी तेरे सुर्ख होठों के प्याले,
मेरे तसव्वुर में साक़ी बने हैं
अब भी तेरी ज़ुल्फ़ के मस्त साये, बिरहा की धूप में साथी बने हैं…दिल के झरोखे में …!!
“””
मेरी मुहब्बत को ठुकरा दे चाहे,
मैं कोई तुझसे ना शिकवा करुंगा
आँखों में रहती हैं तस्वीर तेरी,
सारी उमर तेरी पूजा करुंगा..
दिल के झरोखे में …..!!

 

संगीत –  मो.रफ़ी


चाहे लाख करो तुम पूजा तीरथ करो हज़ार
दीं-दुखी को ठुकराया तो सब-कुछ है बेकार

गरीबो की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा..
तुम एक पैसा दोगे वो दस लाख देगा 
गरीबो की सुनो …

बदकिस्मत बीमार ये बूढा क़दम-क़दम पर गिरता है
फिर भी इन बच्चो की कातिर हाथ पसारे फिरता है
कही इनका ये साथ न छूट जाए
अनाथो की ये आस भी टूट जाए
कहा जायेगे ये मुक़द्दर के मारे
ये बुझाते दी टिमटिमाते सितारे..
इन बेघर बेचारो की किस्मत है तुम्हारे हाथ मे
गरीबो की सुनो …

भूख लगे तो ये बच्चे आंसू पि कर रह जाते है
हाय गरीबो की मजबूरी क्या-क्या ये सह जाते है
ये बचपन के दिन है घडी खेलने की
उम्र ये नही ऐसे दुःख झेलने की
तरस खाओ इनपे ई औलाद वालो
उठा लो इन्हे भी गले से लगा लो..
मुरझाये न फूल कही ये आंधी और बरसात मे
गरीबो की सुनो …

संगीत –  मो.रफ़ी एवं आशा भोंसले


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