मित्रों 1985 से हम लोग 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की जयंती पर राष्ट्रीय युवा दिवस मनाते आ रहें है. तो आएँ युवा शक्ति के प्रेरक एवं मानवता के पुजारी स्वामी जी के विचारों की ओर चलें. युवा शक्ति के असीम प्रेरक स्वामी विवेकानंद ऐसे नवयुवकों का निर्माण करना चाहते थे, जिनमें लौह जैसी शक्ति हो, स्वस्थ मस्तिस्क हो, बिना भेद-भाव के एक दुसरे के प्रति प्रेम व विश्वास हो. राष्ट्र के प्रति बलिदान की भावना हो. सहन शक्ति के साथ-साथ गरीबो और असहायों के प्रति सहानभूति हो.
स्वामी जी का कहना था – “आवश्कता है वीर्यवान, तेजस्वी, श्रधासम्पन्न कपटरहित युवकों की. ऐसे सौ यूवकों से संसार के सभी भाव बदले जा सकते हैं.”
और इन सभी गुणों के निर्माण के लिए स्वामी जी ने शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण विषय पर अपना विचार प्रकट करते हुए कहते हैं की – “हमें ऐसी शिक्षा की जरूरत है जिससे चरित्र निर्माण हो मानसिक शक्ति बढ़े”
शिक्षा का अर्थ और सार को समझाते हुए स्वामी विवेकानंद का कहना था – “शिक्षा का अर्थ तथ्यों का संकलन नहीं है. इसका सार है एकाग्रता. अगर मुझे फिर से पढाई शुरु करनी हो तो में तथ्यों को कभी नही रटूं. मैं मन की एकाग्रता बढ़ाउंगा और फिर जितना चहुँ तथ्यों का संकलन करूं”
“शिक्षा का अर्थ है सयंम द्वरा इच्छाशक्ति को वास में करना ”
“ शिक्षा मनुष्य की अन्तेर्निहित पूर्णता की अभिवक्ति है ”
स्वामीजी ने स्त्रियों को व्यवहारिक शिक्षा के साथ-साथ भारतीय गौरव व स्वाभिमान की शिक्षा देने की वकालत की वे कहते थे – “ जिस घर या राष्ट्र की स्त्रियाँ शिक्षित नहीं उनकी उन्नति की कल्पना करना भी बेकार है.”
मानवता के पुजारी स्वामी विवेकानंद कहते हैं – “ मेरा आदर्श है मनुष्य जाती को उसके दिव्य रूप का उपदेश देना तथा जीवन के विविध क्षेत्रों में उसे प्रकट करने का उपाय बताना.”
“ प्राचीन धर्म कहता है की जो ईश्वर में विश्वास न करें, वह नास्तिक है, जबकि नया धर्म कहता है कि जिसमें आत्मविश्वास नहीं है, वही नास्तिक है, तुम अपने को कमजोर मानोगे, तो कमजोर होगे, बलवान मानोगे, तो बलवान बन जाओगे.”
“ जीवित ईश्वर तुम्हारे भीतर रहते हैं, फिर भी तुम मंदिर – गिरिजाघर बनाते हो और काल्पनिक बातो पर विश्वास करते हो. मनुष्य में मानव आत्मा ही एक मात्र उपास्य ईश्वर है.”
“ तुम तो ईश्वर के संतान हो. अमर आनंद के भागीदारी हो, पवित्र आत्मा हो. तुम इस भूमि के देवता हो. मनुष्य को पापी कहना ही पाप है. उठो सिंहो, इस मिथ्या को झटक दो कि तुम भेड़ हो, तुम तो नित्यानंद आत्मा हो.”
“तुम्हारे भीतर दैव शक्ति है. बस उसे जगा दो, जीत लों सब.”
रामेश्वरम् में स्वामी विवेकानंद अपने भाषण के दौरान कहें थे – “वह मनुष्य जो शिव को निर्धन, दुर्बल तथा रुग्न वक्ति में देखते हैं वही सचमुच शिव की उपसना करता है, लेकिन अगर वह उन्हें केवल मूर्ति में ही देखता है, तो कहा जा सकता है कि उसकी उपासना अभी प्रारंभिक है. यदि किसी ने किसी निर्धन की सेवा बिना उसकी जाति-धर्म जाने या भेद-भाव किए की, तो उसमे साक्षात् शिव विराजमान हैं. शिव केवल मंदिर में शिव को देखने वाले भक्त के तुलना में ऐसे वक्ति से अधिक प्रसन्न होंगे. शास्त्रों में कहा गया है कि जो भगवन के दसों की सेवा करता है, वही भगवान् का श्रेष्ठ दास है.”
स्वार्थी – आलसी वक्तियों को समझाते हुए स्वामी जी का कहना था की – “ जो स्वार्थी है, आलसी है, उनके लिए नरक में भी जगह नहीं है. आज हमें आवश्यकता है वेदान्त युग पश्चत्य विज्ञान की, ब्रह्मचर्य के आदर्श और श्रधा तथा आत्मविश्वास की.”
स्वामीजी लोगो से कहते हैं की – “ उपनिषद का हर पृष्ठ मुझे शक्ति का संदेश देता है. यह विषय विशेष रूप से स्मरण रखने योग्य है. समस्त जीवन में मेने यही महाशिक्षा प्राप्त की है. उपनिषद कहते हैं – हे मानव, तेजस्वी बनो, वीर्यवान बनो, दुर्बलता को त्यागो.”
“ उठो जागो. सोओ मत, सारे आभाव और दुख दूर करने की शक्ति तुम्ही में है. इस बात में विश्वास करने से ही वो शक्ति जाग उठेगी. ” – स्वामी विवेकानंद
“ यदि सोच सको कि हमारे अन्दर अनंत शक्ति, अपार ज्ञान और अदम्य उत्साह है और आन्तरिक शक्ति जगा सको, तो तुम भी मेरे समान हो सकते हो.” – स्वामी विवेकानंद
“ उठो जागो और अपने लक्ष्य प्राप्ति से पहले मत रुको ” – स्वामी विवेकानंद
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