शहीद-ए-आज़म भगत सिंह

प्रिय पाठक पढिये भारत माता के वीर सपूत शहीदे-ए-आज़म भगत सिंह के शहादत दिवस पर एक छोटा सा आलेख !

देश के लिए मुस्कुराते हुए फंसी के तख्ते पर चढने वाले शहीद-ए-आज़म “भगत सिंह” का जन्म : 27 सितम्बर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिला के बावली गाँव में हुआ । उनके पिता का.. नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था । आजादी के संघर्ष में भगत सिंह के  परिवार की भूमिका  थी जिसका प्रभाव भगत सिंह पर काफी पड़ा । 1919 में जलियांवाला बाग़ में हुए गोलीबारी कांड के खुनी मंजर ने उन्हें बुरी तरह से झकझोर दिया । 1926 में इन्होंने हिदुस्तान रिपब्लिक एसोसियेशन ज्वाइन किया जहाँ उनकी मुलाकात चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाकअल्ला खान से हुई । 1927 में परिवार के तरफ से शादी के दबाब के कारण भगत सिंह पंजाब से कानपूर चले आए ।

1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार को लेकर लाहौर में लाला लाजपतराय की अगुआई में हुई पैदल मार्च पर एस. पी. जेम्स ए स्कॉट ने लाठीचार्ज करवाया जिसमें लाला लाजपतराय बुरी तरह घायल हो गए और कुछ दिनों के बाद उनकी मृत्यु हो गई और ब्रिटिश हुकुमत ने इसकी जिम्मेदारी लेने से इंकार कर दिया । जिससे क्रोधित होकर भगत सिंह और उनके साथियों ने स्कॉट की हत्या की योजना बनाई । पहचान नहीं पाने के कारण एस. पी. सेंडर्स की हत्या हो गई । 1929 में आजादी की लड़ाई में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए भगत सिंह ने सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली में बम गिराए । और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए अपनी गिरफ़्तारी दी ।

bhagat singh

 

और इस दौरान अपने साथियों को पत्र लिखकर उन्होंने कहा –

साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए । मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं । मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है । क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था । मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी । इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा । आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है । अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है । कामना है कि यह और नजदीक हो जाए ।

अपनी दिलेरी और देश-भक्ति के लिए मशहूर यूवा शक्ति के लिए प्रेरणा के श्रोत शहीदे-ए-आज़म भगत सिंह 23 मार्च 1931 को राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहोर की जेल में मुस्कुराते हुए फांसी के तख्ते पर मौत को शान से गले लगा लिए । भारतवर्ष ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी को युगों युगों तक स्मरण रखेगा ।

“जय हिन्द” !


शहीदे-ए-आज़म भगत सिंह के शहादत दिवस पर भारत माता के वीर स्वतंत्रता सेनानी को नमन् ! प्रिय पाठक आपको यह आलेख कैसा लगा comment के माध्यम से हमें आवश्य अपना विचार प्रेषित करें । धन्यवाद !


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Comments

One response to “शहीद-ए-आज़म भगत सिंह”

  1. ketan jha avatar
    ketan jha

    Jai hind jay Bharat
    Thank you mister Rajanish …

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