जमीन बदल गई तो मायने बदल गए। मायने बदले तो चेहरा बदल गया,रहन-सहन और जीवन की शर्तें बदल गईं। वैश्विक अर्थशास्त्र की इस बाढ़ के चलते खासा बदलाव आ गया है समाज में। तो फिर कैसा पत्रकार और कैसा दिवस।
मौजूदा हालात में तो यह सवाल ही बेमानी हो जाती है!अब तो एड्स डे है, वेलंटाइन डे है, वगैरह-वगैरह । इंतजार कीजिए, अभी तो और ना जाने कितने नए-नए आगंतुक डे, हमारे अतीत के सारे दिवसों को सुरसा की तरह निगलते दिखेंगे। नामोनिशान मिट जाएगा इन दिवसों का
और सबसे बड़ी बात की “तब पत्रकार अपनी कलम से पहचाना जाता था”
अब पत्रकार क्या, संपादक तक इस बात के लिए अपनी तनख्वाहें मोटी करवाते घूमते हैं, कि उनकी पहुंच फलां नौकरशाह या मंत्री तक है और वे जब चाहेंगे, मालिक का कोई भी काम सेकेंडों में करा देंगे “मालिक भी खुश पत्रकार भी खुश”
दसियों लाख रुपए की मोटी तनख्वाह पाने वालों से आप क्या उम्मीद करते हैं कि उनमें जनपक्षधरता आ जाए, या वे पत्रकारों और पत्रकारिता के लिए खुद को बलि चढ़ा दें। अरे अब तो वह दौर आ चुका है कि पैसे के लिए वे अपने ही किसी साथी की बलि बहुत ही संयत भावसे चढ़ा सकते हैं। तो विदा कीजिए इस दिवस को। श्रद्धांजलियां दीजिए। और जुट जाइए इस दिवस की मर्सिया पढ़ने के लिए।
क्यों की और कुछ तो बचा नही अभी हाल का ही बात बताते हैं.. बिहार एक महान नेता जी के बेटे की रिंग सिरोमनि हुई उसमे पत्रकारों के द्वारा फूफा ताई चाची नानी लगभग सबो का लाइव लिया गया और खास बात की वो रिंग किस दुकान की थी ! हद है मतलब..
किसने बनाया और कितने का आया सबकुछ दिखाया गया और यही बिहार के अंदर एक रेप से पीड़ित लड़की आस लगा के बैठी थी की कोई उसके दुःख को समझे लेकिन साहब कोई नही मिला उसके दुःख को आम जनों अफसरों राजनेता तक पहुंचाने वाला
तो पत्रकारिता के स्तर को गिराने के पीछे सिर्फ और सिर्फ पत्रकारों का हाथ हैं। जो खुद से अपने अस्तित्व को खो रहा है । अपने ही जयचन्दों को नहीं पहचान रहें ।
उस वक्त जब गरीब के बेटी को दहेज दानव जला रहे होते हैं ! न्यूज रूम में नेता जी के अंगूठी के दाम पर एक घण्टे का डिबेट होता है । कवि विद्रोही कहते थे की “गरीब की लड़कियाँ वो लकड़ियाँ होती है जो बड़ी होने पर चूल्हे में झोंक दी जाती है”
क्या यही है पत्रकारिता ? वैसे कुछ अच्छे लोगों के बदौलत उम्मीद जिंदा है। साहब कुछ पत्रकार तो ऐसै हैं कि थोड़ी सी दारू मिल जाय तो ऑर्केस्ट्रा को भी लाइव कर देंगे । मतलब हद है..!
#गुस्ताखी माफ़
आलेख : Krishna Bhardwaj
अभी के हालात
कलमों द्वारा बयां किया गया है
अद्भुत
आभार भारती जी