माँ मैं मर रही हूँ, बचा लो मुझे !!!!


shalni jha

माँ कैसी हो तुम ? रो मत ! ये जो भी हुआ ये सब कैसे माँ ? तुम तो कहती थी पापा हमेशा मेरी रक्षा करेंगे , भैया मुझे कुछ नहीं होने देंगे | पूरा समाज है हमारे साथ | पर सुनो माँ , मैं सच कह रही हूँ , कोई हमारा नहीं , लड़की बस शरीर है इनके लिए | मार डाला इन्होंने मुझे , मेरी नस नस काट डाली |

इतना दर्द हुआ माँ ! मैं बहुत रोई , चीखी भी थी , फिर ? फिर क्या माँ , मेरा मुँह बंद कर दिया गया और मेरे हाथ बाँध दिए गए , मैंने बंधन तोड़ने की कोशिश की थी माँ | बहुत बार , पूरे हाथ से खून निकल रहा , बहुत दर्द हो रहा था माँ ! तुम्हारी बहुत याद आ रही थी | तुम होती तो मेरे आँसू पोंछ देती | बचा लेती मुझे | बचा लेती न माँ ? पर इतना दर्द ! इतना खून ! उफ्फ !! मैं जल्दी क्यूँ नहीं मर गयी माँ ? शायद तुम्हारे हाथ का खाने में ताक़त थी बहुत , मेरा शरीर लड़ रहा था , उन के हरेक वार से , यहाँ वहाँ , हर जगह !!

तुम्हें याद है माँ तुमने सिखाया था , ” ऐसे खुले कपड़े मत पहनो बेटी, शरम लड़की का गहना होता है | तुम ग़लत थी माँ ! देखो न मेरे सारे कपड़े फाड़ डाले , नंगा कर दिया मुझे !!! मेरी ग़लती क्या थी माँ ? मैं तो दुपट्टे से सर ढँक के घर से बाहर निकली थी ना ! तुम्हारी हर बात मानी थी पर फिर भी इतना दर्द ! नहीं बर्दाश्त होता माँ !

काश तुमने मुझे लड़ना सिखाया होता , कूट डालती इन सबको मैं ! मेरा गला सूख रहा है , काश एक घूँट पानी मिल जाता तो मैं सुकून से मर तो सकती पर ये सब मुझे नोचने में लगे हैं , मेरे शरीर का हर अंग ! उनके नाख़ून ! उनके दाँत ! रस्सियाँ ! लोहे का सरीया ! उफ्फ !! इसका दर्द मैं नहीं सह पा रही माँ !

माँ क्यूँ तुमने मेरा इतना ख्याल रखा हर बार , जब मैं दर्द में थी , रो रही थी , क्यूँ नहीं मुझे यूँही छ्चोड़ दिया तुमने ? रोते हुए? बोलो ! कम से कम दर्द सहने की आदत तो होती | नहीं सह पा रही मैं | बचा लो माँ !!! मैने बहुत मिन्नतें की इनसे , पर नहीं रुक रहे ये लोग ! नहीं रुक रहे माँ ! क्या करूँ बोलो ?

इनमें से एक तो भैया की उम्र का है , उसी ने मेरे बाल पकड़ रखे हैं | मेरा हाथ दबा रखा है | मैं क्या करू माँ ? कितना चिल्लाऊं ? कौन बचाएगा मुझे ? क्या मैं मर जाऊँगी ? मैं मरना नहीं चाहती थी माँ !!! हम तो छूटटियों में घूमने जाने वाले थे न ? और वो मेरी पेंटिंग भी अधूरी है माँ ! मुझे सुबह ज़ोर की भूख भी लगी थी पर अब? शायद मैं नहीं बचूंगी , खून की हर बूँद बाहर निकल गयी शायद ! कुछ भी महसूस नहीं हो रहा ! मुझे मरना नहीं था माँ, ऐसे तो बिल्कुल नहीं !!!

पर इन सबकी ज़िम्मेवार भी तुम हो माँ !! मुझे पेट में ही क्यूँ नहीं मार डाला तुमने ? बोलो न माँ ? मैं हाथ जोड़ती हूँ मेरे लिए प्रार्थना करना दोबारा मैं कभी यहाँ जन्म नहीं लूँ !! कभी भी नहीं !!

माँ मेरी जान थोड़ी बाक़ी है ज़रा सी | पर ये लोग टुकड़े कर रहे मेरे , शायद खुद को बचाने के लिए ! क्योंकि टुकड़ो को जोड़ने की ज़रूरत कोई नहीं समझेगा , तुम्हें मैं टुकड़ो में मिलूंगी माँ !!! बस विनती है माँ , मेरे टुकड़ो को कोई पुरुष हाथ भी न लगाए , मेरे मरने के बाद !!

मुझे पता है इन्हें कोई सज़ा नहीं मिलेगी , कभी भी नहीं मिलेगी , !!!! मेरा चेहरा हर जगह दिखेगा, टी वी पर पेपर में सब जगह !!!
क्यूँकि मेरी इज़्ज़त तो जा चुकी होगी ना !! मर चुकी रहूंगी मैं !
उनके चेहरे ढँक दिए जाएँगे छुपा दिए जाएँगे ताकि वो चैन से जी सकें |

काश तुमने मुझे चूड़ी पहनने की जगह दस लोगो को पीटना सिखाया होता , काश आपकी जैसी माँओ ने अपनी बेटियों को शरम सिखाने की जगह अपने बेटों को इज़्ज़त करना सिखाया होता , उनके सामने बेटियों को पराया धन न कहा होता , बेटियों को कमजोर न बताया होता ! कोर्ट ने पहले हुए ऐसे कुकर्मो की कड़ी सज़ा दी होती, तो मैं शायद ज़िंदा रहती, पर ये सब नहीं हुआ माँ , पता नहीं कभी होगा भी या नहीं !!!
अब हिम्मत ख़त्म हो गयी !! मैं नंगी पड़ी हुई हूँ और मेरे बगल में खून से लथपथ मेरा दुपट्टा और टुकड़े हो रहे मेरे !!!
मैं मर रही हूँ माँ ! नंगी ! भूखी ! प्यासी !


 आलेख : शालिनी झा

( पटना विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर )

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