कुछ प्रथाएं ऐसी हैं जो धर्म या परंपरा के नाम पर हज़ारो सालों से ज़ारी हैं, लेकिन जो वस्तुतः घोर अधार्मिक और अवैज्ञानिक हैं। बंद जलाशयों या तालाबों में मछलियों को आटा खिलाना उनमें सर्वाधिक प्रचलित प्रथा है। किसी भी धार्मिक स्थल पर तालाबों में ऐसा करते सैकड़ों लोग आपको मिल जाएंगे।
कुछ लोग तो किसी मनौती के पूरी होने के उपलक्ष्य में बोरों में भरकर आटा लाते हैं और उसे घाट पर ही गूंथ-गूंथकर मछलियों को डालते हैं। सच तो यह है कि मछलियों सहित किसी भी जलीय जीव को बाहरी खुराक़ की ज़रुरत ही नहीं होती। समुद्र और नदियों में उन्हें कौन आटा खिलाता है ? प्रकृति ने उनके लिए पानी में ही तमाम व्यवस्थाएं उपलब्ध कर रखी हैं – सांस लेने के लिए ऑक्सीजन और जीने के लिए खुराक। उनके लिए आटा सहित जो भी जैविक पदार्थ हम तालाबों में डालते हैं, उनमें से कौतूहलवश मछलियां बहुत थोड़ा-सा ही चखती हैं। बाकी जो बचता है, उसे पानी में मौजूद बैक्टीरिया सड़ा देती हैं।
जैविक पदार्थों को डिकंपोज करने में बैक्टीरिया पानी में मौज़ूद ऑक्सीजन का भरपूर उपभोग करती हैं। जैविक चीज़ों की मात्रा ज्यादा हो तो उन्हें डिकंपोज करने की प्रक्रिया में पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। तालाबों में मछलियों के मरने की यह सबसे बड़ी वज़ह है। यही नहीं, ऑक्सीजन की कमी होने पर पानी में उपस्थित बैक्टीरिया मीथेन और अमोनिया जैसी गैसों का सृजन भी करती हैं जो पूरे तालाब को ही जहरीला बना देती हैं।
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अनाज के अलावा बची हुई पूजा सामग्री, फल-फूल का भी जल और जलीय जीवों पर यही घातक असर होता है। जिस तरह नाग पंचमी के दिन सांपों को दूध पिलाना अवैज्ञानिक और सांपों के लिए जहर है, उसी तरह मछलियों को आटा सहित कोई भी जैविक पदार्थ खिलाने की कोशिश उनके लिए घातक।
आईए, प्रकृति का सम्मान करें ! जीवन का सम्मान करें !
आलेख : पूर्व आई० पी० एस० पदाधिकारी, कवि : ध्रुव गुप्त
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