सामाजिक सरोकार से जुड़े हुए प्रशिक्षित योग्य व्यक्ति अगर मुख्यधारा में नहीं आए तो फिर राजनीति जैसे पवित्र शब्द को लोग गाली समझते रहेंगे । और हमने मिथिला के सैकड़ों युवाओं को प्रशिक्षित किया है वो परिपक्व हो रहें है ।
अधिकांश लोग जब नकारात्मक भाव से यह कहते हैं कि “राजनीति करते हो !” तो मन में चुभन सी होती है । वो ये क्यों नहीं समझते कि उनके जन्म की परिकल्पना से लेकर समाधि तक राजनीति कितनी बड़ी भूमिका निर्वहन करती है ।
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हमें यह सोचना चाहिए कि राजनीति का एक सकारात्मक माहौल कैसे तैयार हो । राजनीतिक लोग आम-आवाम के सरोकार से कैसे जुड़े । अपने समाज की सामरिक शैक्षणिक, राजनीतिक और बहुमुखी विकास यात्रा में हम अपनी भूमिका कब और कैसे तय करें । इन सबके लिए जरूरी है सामाजिक हित को अपना हित समझना एलिट वर्ग से थोड़ा हट कर बहुसंख्यक जन-सामान्य के विषय में सोचना । समस्याओं पर सामूहिक चर्चा कर समाधान निकलना । नेतृत्व की क्षमता विकसित करना । राजनीति जैसे पवित्र शब्द को आत्मसात करना । परम्परावादी सोच से थोड़ा हट कर प्रगतिशील विचारधारा को प्राथमिकता देना । बदलाव के परिकल्पना को साकार करने लिए अपने आत्मबल को बनाए रखना । क्योंकि नेता तुम्ही हो कल के । । जिन्दाबाद । ।
आलेख : रजनिश प्रियदर्शी
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