श्री कृष्ण वासुदेव के द्वारा दिये गए उपदेश जो हमें हमारे जीवन में एक दिशा प्रदान करता है. इस अंक में आप जानेंगे एक प्रश्न – आपके अपने कौन ? और “शक्ति” इर्ष्या और क्रोध में नहीं “शांति और सयंम” में है.
आपके अपने कौन ?
सभी बड़े सदा यही कहते आये हैं. यदि आगे बढ़ना है, सदा अपनों का साथ दो, सत्य कहते हैं अपनों का साथ देना ही चाहिए. परन्तु साथ देनें से पूर्व यह आवश्य पहचान लेना चाहिए की – अपने हैं कौन? क्या अपने वही होते हैं. जिनके साथ हमारा रक्त सम्बंध होता है. या अपने मित्र.
अपने वो होते हैं. जो हमें सद्कार्य के लिए प्रेरित करें. हमें आगे बढाएं हमारा साथ दें. और वो जिनका साथ देने से समाज का नाश हो. धर्म की हानि हो, वो सगे हो करके भी सगे नहीं होते इसीलिए, जब अपनों की परिभाषा का चुनाव करें. तो उन्हें अपना माने जो आपका साथ दें. उन्हें नहीं जो हमें अज्ञान के मार्ग पर लें जाएँ.
शक्ति इर्ष्या और क्रोध में नहीं शांति और सयंम में हैं
युद्ध सदैव दो मनुष्यों के मध्य होता है, परन्तु विजय एक ही मनुष्य को मिलता है. जब की सामान रूप से दोनों शक्तिशाली होते हैं. कारण, दो प्रकार के लोहे होते हैं. एक ठंढा एक गर्म, कभी सोचा है लौहकार लोहे को लोहे से ही काटता है. परन्तु सदैव ठंढा लोहा ही गर्म लोहे को काटता है. और यही निति मनुष्य पर भी लागु होती है. जब युद्ध होता है, तो जिसके मन में इर्ष्या होती है, जलन होती है आक्रोश होता है. वो गर्म लोहे के समान है. और जिसका मन शांत होता है, जिसका मन संयम से बंधा होता है वो ठंढे लोहे के समान होते हैं और वही इर्ष्या और द्वेष नामक गर्म लोहे को काट सकता है.
इसीलिए यदि जीवन के संग्राम में विजय प्राप्त करनी है, तो अपने मन को शांत रखें ! क्योंकि गर्म लोहे के भांति, इर्ष्या और क्रोध जैसे भावों को रखने वाला मनुष्य सदैव शांत स्वभाव के मनुष्य के समक्ष निर्बल है, शक्ति इर्ष्या और क्रोध में नहीं शांति और सयंम में है.
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