ये गाँव न्यायशाश्त्र के विद्वानों के लिए ख्यात रहा है । इसी गाँव में न्याय के एक विद्वान हुए पंडित यदुनाथ मिश्र जो अल्पायु में ही चल बसे । उन्हीं की स्मृति में उस समय के विद्वत समाज ने इस पुस्तकालय की स्थापना की । आधुनिक सार्वजनिक पुस्तकालयों का विकास वास्तव में प्रजातंत्र की महान देन है और जिस वर्ष हमारा देश गणतंत्र बना उसी वर्ष इस पुस्तकालय की नींव रखी गई। 7 नवंबर 1950 इसकी स्थापना तिथि है और तब से अद्यावधि ये पुस्तकालय अपने 67 वसंत देख चुका है ।
इस पुस्तकालय का एक गौरवशाली इतिहास रहा है । पुस्तकालयाध्यक्ष श्री जीवनाथ मिश्र बताते हैं कि साठ के दशक में तत्कालीन कलक्टर जॉर्ज जैकब यहां आऐ थे और पुस्तकालय की गतिविधियों को देखकर काफी प्रसन्न हुऐ थे । फिर कालंतर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी आऐ और प्रभावित हुए ।
शिक्षा का प्रसारण एवं जनसामान्य को सुशिक्षित करना प्रत्येक राष्ट्र का कर्तव्य है । जो लोग स्कूलो या कॉलेजो में नहीं पढते, जो साधारण पढे लिखे हैं, अपना निजि व्यवसाय करते हैं अथवा जिनकी पढने की अभिलाषा है और पुस्तकें नहीं खरीद सकते तथा अपनी रूचि का साहित्य पढना चाहते हैं, ऐसे वर्गों की रूचि को ध्यान में रखकर जनसाधारण की पुस्तकों की मांग सार्वजनिक पुस्तकालय ही पूरी कर सकती है । इस पुस्तकालय की एक खासियत यह भी है कि ये पूरी तरह सामाजिक सहयोग से संचालित हो रहा है । लोगों से प्राप्त चंदे से पुस्तकें, पत्रिकाऐं व अखबारें आती है । सरकारी मदद के नाम पर स्थानीय सांसद ने हाल ही में कुछ किताब मुहैया करवाई हैं ।
पुस्तकालय हरेक महीने क्विज, प्रदर्शनी, वाद विवाद, महत्वपूर्ण विषयों पर भाषण आदि का आयोजन करवाती है और इसमें बच्चों का उत्साह देखने लायक होता है । इसके अतिरिक्त सबसे प्रशंसनीय पक्ष यह है कि जो भी व्यक्ति वर्ष में सबसे ज्यादा पुस्तकें पढता है उसे साल का पंडित श्यामानंद झा पाठक सम्मान प्रदान किया जाता है । अपने वार्षिकोत्सव के अवसर पर इलाके के सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलो के बच्चों को बुला कर पुस्तकालय कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करवाता है । स्कूल जाने वाले बच्चों से लेकर लाठी के सहारे से चलने वाले वृद्ध पाठक इस पुस्तकालय पर आपको मिल जाएंगे ।
सार्वजनिक पुस्तकालयों के विकास की दिशा में यूनेस्को जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने बड़ा महत्वपूर्ण योगदान किया है किंतु उसका लाभ ग्रामीण क्षेत्र के इन पुस्तकालयों को नहीं मिल सका है । प्रत्येक प्रगतिशील देश में पुस्तकालय निरंतर प्रगति कर रहे हैं और साक्षरता का प्रसार कर रहे हैं । वास्तव में लोक पुस्तकालय जनता के विश्वविद्यालय हैं जो बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के उपयोग के लिए खुली रहती हैं ।
ऐसे समय में जब हमारी सरकारें ऐसी संस्थाओं व समाज के प्रति अपने दायित्वों से आँख मूंदे हुए हों इन पुस्तकालयों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है । नागरिक समाज परिसर में शैक्षणिक माहौल के निर्माण की दिशा में निरंतर प्रयासरत है जिसका जीता जागता प्रमाण यह पुस्तकालय है ।
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