भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, महान क्रांतिवीर, आजादी के लड़ाई के महानायक मंगल पांडे “बंधुओ ! उठो ! उठो ! तुम अब भी किस चिंता में निमग्न हो ? उठो, तुम्हें अपने पावन धर्म की सौगंध ! चलो, स्वातंत्र्य लक्ष्मी की पावन अर्चना हेतु इन अत्याचारी शत्रुओं पर तत्काल प्रहार करो.”
शुभ नाम : मंगल पांडे / Mangal Pandey
जन्म : 19 जूलाई 1822, अवसान : 08 अप्रेल 1857
जन्मस्थान : सुरहुरपुर ग्राम, बलिया जिला उत्तरप्रदेश
मंगल पांडे का जन्म उतरप्रदेश के सुरहुरपुर ग्राम में एक हिन्दू ब्रह्मण परिवार में हुआ था. उस समय फिरंगी देशी पलटनों के माध्यम से राज चला रहे थे. मंगल पांडे बैरकपुर स्थित 34 वीं पलटन के 1446 नम्बर के सिपाही थे. उस समय पलटनों को देश-विदेश ले जाया जाता था “फिरंगी जिस पलटन को जहाँ मन वहाँ ले जाए” इस कानून से पलटनों में असंतोष की भावना व्याप्त हो गई थी. इसी बीच 1857 में फिरंगी सुअर और गाय की चर्बी कारतूसों में प्रयोग करने लगे फिर प्रारम्भ हुआ विद्रोह. मंगल पांडे के नेतृत्व में देश के हिन्दू-मुस्लमान सभी पलटनें फिरंगीयों के खिलाफ़ खड़े हो गए. और यही विद्रोह आज़ादी का प्रथम बिगुल था.
29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में परेड के समय जब सैनिकों में चर्बी वाला कारतूस बाँटा जा रहा था. मंगल पांडे ने इसका विरोध किया तो अंग्रेज अधिकारी द्वारा उनको रायफल और वर्दी उतारने का आदेश दिया गया. परन्तु मंगल पांडे ने हुक्म मानने से इंकार कर दिया. सार्जेंट मेजर ह्यूजशन खुद आगे बढ़े. “खबरदार……………!! जो कोई आगे बढ़ा ! आज हम तुम्हारे अपवित्र हाथों को ब्रह्मण की पवित्र देह का स्पर्श नहीं करने देंगे” – मंगल पांडे
उसी क्षण मंगल पांडे के रायफल से निकली गोली ने मेजर का काम तमाम कर दिया. इसी समय लेफ्टिनेंट बो घोड़े पर सवार होकर वहाँ आया उसने मंगल पांडे पर गोली चलाई परन्तु पांडे जी ने तलवार के वार से उनका भी काम तमाम कर दिया. फिर तीसरा फिरंगी जैसे ही मंगल पांडे को मारना चाहा एक सिपाही ने बन्दुक के कुंदे से उसके मस्तक पर प्रहार किया और गरज कर कहा.
“खबरदार…..!!! किसी ने मंगल पांडे को हाथ लगाया तो” उसी समय वहाँ कर्नल व्हीलर आया और सैनिकों से मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने को हुक्म दिया परन्तु सैनिकों ने इंकार कर दिया. यह देख कर व्हीलर वहाँ से भाग गया.
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने जो बिगुल फूंकी वह पुरे देश में आग की तरह फैल गई. इलाहबाद, अंबाला, आगरा, दानापुर आदि जगहों पर देसी पलटनों ने अंग्रेज छावनिओं में आग लगा दी. कई अंग्रेज सिपाही को मौत के घाट उतार दिया गया. इन सभी घटनाओं ने अंग्रेजो को नाक में दम कर दिया. फ़िरंगियो के अनेकों नाकाम कोशिस के बाद कुछ विद्रोही जवानों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. देश में क्रांति का माहोल पैदा हो गया. गिरफ्तार किये गए यूवकों को मेरठ पलटन के सिपाही जेल तोड़कर भगा ले गए. और इस तरह की घटनाएँ उस समय आम बात हो गई थी.
फौजी अदालत में मंगल पांडे पर मुकदमा चलाया गया. जेल में उन्हें यातनाएं देकर षड्यंत्रकारियों के विषय में बताने पर दवाव बनाया गया परन्तु उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया गया. 8 अप्रेल 1857 को फंसी की सजा दे दी गई. और इस तरह महान यूवा क्रन्तिकारी के जीवन का सूर्यास्त हो गया. इस घटना को भारत की आजादी की प्रथम लड़ाई के नाम से जाना जाता है. जिसका बिगुल अमर शहीद मंगल पांडे ने फूँका इनका नाम भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. भारत वर्ष के ऐसे महान आत्मा को हमारा नमन.
Jai hind jai Bharat
Mangal pande ji ka name sunata hu to mere andar shola ubhar aata hai kyoki ek vo veer the jisane dusmano ko samane se pasina chhuda diya aaj bhi ham sabase pahale mangalpande ji ka name lete hai dhanya hai bhart mata sochata hu kahi mujhe bhi mouka milata to aaj angrej to nahi raha per aatnkavadi ko marta jai hind jai bhart