भगवान शिव आदियोगी हैं. योग के जन्मदाता और आदिगुरु. योगियों और सन्यासियों के लिए महाशिवरात्रि वह रात्रि है जब लंबी साधना के बाद शिव को योग की उच्चतम उपलब्धियां हासिल हुई थीं.
जब उनके भीतर की तमाम हलचलें थम गई थीं और वे स्वयं कैलाश पर्वत की तरह स्थिर और निर्विकार हो गए थे. पौराणिक कथा के अनुसार यह वह रात्रि है जब समुद्र-मंथन से प्राप्त हलाहल विष के दुष्प्रभाव से दुनिया को बचाने के लिए नीलकंठ शिव ने उसे अपने कंठ में रखकर विष का प्रभाव उतारने के लिए देवताओं के गीत-नृत्य के बीच रात भर जागरण किया था. गृहस्थों के लिए महाशिवरात्रि शिव और पार्वती के विवाह और मिलन की रात्रि है. पुरुष और प्रकृति का मिलन. मिलन पदार्थ और ऊर्जा का, मिलन जिससे सृष्टि की संभावनाएं बनती हैं. शिव और पार्वती का दांपत्य तमाम देवताओं में सबसे सफल दांपत्य माना जाता है और उनका परिवार सबसे आदर्श परिवार. शिव साधक और गृहस्थ होने के अलावा एक महान नर्तक और कुशल वीणा वादक भी थे. आज के दिन कुंवारी कन्याएं उपवास रख कर शिव जैसे सर्वगुणसंपन्न पति के लिए मन्नतें मांगती हैं, महाशिवरात्रि की तीनों प्रचलित अवधारणाओं को मिला दें तो इसका सबक यह है कि योग और गार्हस्थ्य के बीच कोई विरोधाभास नहीं है. योगी या संन्यासी बनने के लिए परिवार और समाज की जिम्मेदारियों से पलायन करने की भी आवश्यकता नहीं है. अपने पारिवारिक तथा सामाजिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन और लोक कल्याण का हर संभव प्रयत्न करते हुए भी योग और अध्यात्म का शिखर हासिल किया जा सकता है.
आप सबको को महाशिवरात्रि की बधाई और शुभकामनाएं !
आलेख : कवि, लेखक व पूर्व आईपीएस अधिकारी “ध्रुव गुप्त”
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