प्रिय पाठकों प्रस्तुत है विश्वपर्यावरण दिवस पर चर्चित युवा साहित्यकार “विकास वत्सनाभ” जी का आलेख “विश्व पर्यावरण दिवस और बारूद की ढ़ेर पर सिगरेट सुलगाता जेनरेशन“
ऐसा लग रहा है कि पूरा जेनरेशन बारूद के ढ़ेर पर बैठ कर सिगरेट सुलगाने में मशगूल है और बेलगाम घोड़े सा अनंत की ओर भागे जा रहा है । हम यह भूल गए हैं कि भारतीय संस्कृति में पर्यावरण को देवतुल्य माना गया है । लोक आस्था और लोक विश्वास से इसका संरक्षण आदि काल से होता रहा है । जैसे-जैसे हम अपने संस्कृति से दूर होते गए पर्यावरण पर संकट विकट होता गया । भूमंडलीय तापमान का बढ़ना ,समुद्र के जलस्तर में वृद्धि और अनवीकरणीय संसाधनों का अनुचित प्रयोग एक गंभीर परिस्थिति को जन्म दे रहा है जहाँ पर हम विवश और संकटग्रस्त हैं। आवश्यकता है की पुनः स्थापित लोकव्यवहारों का अनुसरण दैंनिदनी का हिस्सा बने और पर्यावरण के संरक्षण के निमित्त एक गंभीर प्रयास हो ।
एक घंटे की ट्रैफिक से सवा सेर C F C S ( क्लोरो-फ्लोरो-कार्बन्स ) लेकर अभी-अभी फ्लैट पहुँच रहा हूँ। रास्ते में राजनेताओं की होर्डिंग्स या मुहर्रम/रामनवमी टाइप कोई जुलूस नहीं दिखा है। बलबिन्दर सरदार की ऑटो उसी रफ़्तार से धुआं छोड़ रही है और फ़्लैट से कुछ दूर आगे की बबुरबन्नी को बरी तन्मयता से बुल्डोजर साफ़ कर रहा है। सबकुछ पिछले साल जैसा ही है।
फेसबुक पोस्ट से पता चला आज पर्यावरण दिवस है। ५ जून, विश्व पर्यावरण दिवस। हरे-भरे पेड़ और दो हाथों के बीच सिमट रही पृथ्वी के साथ किसी पेंटर का बनाया एक अश्रुपूर्ण तस्वीर वायरल हो रहा है। पर्यावरण को बचाने का आभासी कार्य सक्रीय है और हमरा स्टेटस उपडेट इस मुहीम में अपनी आभासी भूमिका सुनिश्चित कर रहा हैं।
पर्यावरण दिवस से याद आया कि गाँव में एक त्योहार होता है जुड़शीतल। लोग सुबह पानी से हर एक पेड़ को सींचते हैं। पूरी प्रकृति स्नान करती है वातावरण स्वक्छ हो जाता है।
प्रकृति और मनुष्य के पारस्परिक स्नेह का एक सुन्दर उदाहरण । यह लोकल है। U N E O (यूनाइटेड नेशन एनवीरोंनमेंट आर्गेनाइजेशन) की नजर से बहुत दूर, लेकिन बहुत कारगर है। कहने का मतलब व्यक्तिगत स्तर पर सक्रियता की आवश्यकता है। आपको याद है कि पिछली बार आपने पेड़ कब लगाया? आजतक एक भी पेड़ लगाया या नहीं ?
अपने परिवेश को समझिये। संस्कृति को आत्मसात कीजिए। कभी सोंचा आपने की पीपल के पेड़ों की पूजा क्यूँ होती है ? क्यूँ बरगद को काटना अशुभ माना गया है ? चिपको आंदोलन क्यूँ हुआ था ? आज के दिन ही सही लेकिन इन प्रश्नो के उत्तरों की पड़ताल कीजिए। संभव है कि आप पर्यावरण दिवस की पृष्टभूमि समझ सकें।
समय के साथ बहुत कुछ बदल रहा है। हमारे जीवनशैली ने प्रकृति में प्रतिरोध पैदा किया है। ग्लोबल वार्मिंग क्रमशः बढ़ता जा रहा है। ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोतों के अनुचित प्रयोग ने हवाओं में जहर का संचार किया है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम अपने आने वाली पीढ़ी के लिए कैसा इकोसिस्टम बना रहे हैं। यह बहुत आवश्यक है कि एक स्वस्थ्य शरीर के विकास के लिए एक शुद्ध वातावरण हो।
इन तमाम चिंताओं से दूर हम मास्क पहन कर विकास का धनिया बो रहे हैं। बालकोनी में डेकोरेटड प्लांटिंग करते हुए पॉल्यूशन कॉन्सस हो रहे हैं। अनियंत्रित आद्योगीकरण को माइलेज दे रहे हैं। जीवनशैली में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों को अपनाने से परहेज कर रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि पूरा जेनरेशन बारूद के ढ़ेर पर बैठ कर सिगरेट सुलगाने में मशगूल है। यकीन कीजिए चिंगारी भरकी तो प्रलय होगा। सतर्क रहिए …
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