श्री हरिमोहन झा की रचना जो मैथली में है । ( बाबाक संस्कार ) मैथली साहित्य की अत्यंत प्रचलित रचना है । जिसमें समाज का वास्तविक स्वरूप को प्रतिबिम्बित कर व्यंग किया गया है । पढिये इस कथा का हिंदी अनुवाद !
भागीरथ बाबा जब बूढ़े हो गए तो उनके सातों पुत्र उनसे परेशान हो गए । इन्हीं बेटों के कारण भागीरथ बाबा बाबा-बैधनाथ पर जल चढ़ाने जाया करते थे । प्रभु की कृपा से इनको सात पुत्र हुआ था ।
बाबा बहूत खुश थे । बाबा बहूत परिश्रम किया करते थे । दोपहरिया धुप में भी खेत को जोता करते थे । बैशाख-जेठ मास में कलमबाग में पानी पटाया करते थे । बाबा के परिश्रम का परिणाम उनके बेटों को प्राप्त हुआ । खेत बहूत उपजाऊ मिला और फलदार बाग़ । बाबा ख़ुद तो मट्ठा पिते थे लेकिन बेटों के लिए मलाई परोसते थे ।
वही बेटा लोग जब जवान हो गया तो बाबा को कोसने लगा । बाबा बाहर बरामदे में सोते थे वो भी बेटों को नहीं सुहाता । बोलता कब वह जगह खाली होगा की वहाँ माल-जाल बंधा जाय । बाबा के सातों सुपुत्र अलग-अलग विचारधारा के थे । परन्तु परन्तु पिता जी को जल्द सद्गति हो जाय इसमें सभी का एकमत था ।
परन्तु बाबा का शरीर इतना स्वस्थ था की कभी माथा भी नहीं दुखता । बेटा लोग ….गुस्सा होने पर बोलता ……. ये बुढा मरेंगे भी नहीं । लोमश ऋषि की आयु ले के आये हुए हैं…..हम लगों की भी अंकुरी खा लेंगें…..! यमराज के पास से बही …..गुम हो गया है ।
बाबा चुप-चाप सब सुनते रहते ……….! और दाल-भात के कौर के साथ घोंट जाते ….। बाबा के पाचन शक्ति का इतना तीव्र आलोचना होता की वे कुछ देर स्तब्ध होकर बैठ जाते ….। परन्तु कौन आ के मनावे की बाबूजी और खाईये ….। कुछ देर रूठ कर फिर खाने लगते………..!
एक दिन बाबा को “अमट” खाने का इच्छा हुआ । “अमट” तो मिला परन्तु साथ में एक श्लोक भी ….”तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा:”
एक दिन पेट ख़राब हो गया ….। डराते हुए बोले कोई कच्चा बेल पका के देता ….? उत्तर में मिला “ओषधं जाहन्वी-तोयं वैधो नारायणो हरि:।” ….उस दिन से खांसी भी नहीं करते की तुरंत काशी पहुँचा देता ।
बाबा को यह समझने में कोई दो मत नहीं रहा की उनके स्वस्थ और दीर्घायु से सभी अक्क्छ गया है । उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वो जिन्दा रह के कोई अपराध कर रहें है …….. !
एक बार बाबा को हिचकी उठा । सुपुत्र लोग तो यही सोच ही रहे थे की कब बीमार परे …..! तुरंत गंगा ले जाने का आयोजन होने लगा । अत्यंत तत्परतापूर्वक कच्चा बांस काट कर अर्थी बनाया गया ….। बाबा को उस पर सुलाया गया, और सातों पुत्र कंधा पर उठाय चौमथ घाट ले के चल दिये ……..! रास्ते में ज्यों ही बाबा कुछ बोलना चाहते ..? की राम नाम सत्य है के ज़ोर के आवाज में बाबा का आवाज विलीन हो जाता …..।
माघ मास था । ठंढ अपना प्रकोप बनाया हुआ था, पछवा हवा बह रहा था । जाड़ा से सभी ठिठुर रहे थे । सुपुत्र लोग.. बाबा को गंगा के बर्फ जैसे शीतल जल में गंगालाभ करवाने लगे । बाबा थर-थर कांपने लगे ठंढे पानी से शरीर शर्द हो गया …. बेटा का हाथ पकड़ कर बोलने लगे ……ए अजय, जाड़ा लग रहा है ।….ए विजय ऊपर ले चलो …… ए संजय आग जलाओ ……..ए धनंजय भूख लगा है ……ए मृतुन्जय कम्बल उढा दो । लेकिन कोई सुनने वाला नहीं …..!
क्योंकि उस दिन पुन्य तिथि माघी-पूर्णिमा था । इससे बढ़के सौभाग्य बाबा का क्या हो सकता है की इस पर्व में मृत्यु हो ऐसा सभी पुत्रों का मानना था । आज नहीं मरेंगे तो भदवा पर जायेगा । और सुपुत्र को रब्बी फसल बोना था …… किसी को कुसियार का पुर्जी कटवाना था ….किसी को मर्चाई बेचना था ……किसी को बैल खरीदना था …….अतएव बाबा का मृत्यु होना आवश्यक है ….नहीं तो बहूत हर्जाना हो जायेगा । ऐसे विचारों में सभी पुत्र एक मत थे ।
सातों भाय कृतसंकल्पित हो कर इतना डूबकी दिये की बाबा संज्ञाशून्य हो गए । सातों भाय बाबा को उठा कर श्मशान में ले गए । भीष्म पितामहः के जेसे सात-मन लकड़ी पे उनको सुलाया गया । एकाएक बाबा का शरीर सुगबुगा उठा । लगा जैसे हाथ से कुछ संकेत कर रहें हों …..। ये देखते ही सुपुत्र लोग मोटा-मोटा लकड़ी का सिल्ह बाबा के शरीर पर रख दिये । बाबा का पूरा शरीर ढक दिया गया । केवल मुख दिख रहा था । मगर बाबा ऐसे कठजीव थे की इतना होने पर भी प्राण नहीं गया । जैसे ही कुछ बोलने हेतु मुख खोले बड़ा बेटा मुंह में उक डाल दिया । सब मिलकर बाबा के कपाल क्रिया करने लगे ………!
चिता प्रज्वलित हो उठा और अग्नि देव सातो जिह्वां से चट-पट आहार करने लगे । देखते ही देखते बाबा का शरीर भष्मावेश हो गया । केवल कुछ अस्थिखंड बचा, जिसे सातों पुत्र मिलकर गंगा में प्रवाहित कर दिये ।
गाँव आ कर सातों भाय श्राध का भोज किये । सात गाँव जयबार । दही, चुड़ा, चीनी, मुंगवा । जय-जय कार हो गया । उतरी टुटा उतराधिकारी स्वछंद हो गए । महापात्र लोगो को खूब वस्तु दान दिया गया । कोई बाबा का पनही… कोई पाग… कोई खडाऊं … एवं प्रकार से बाबा के अस्तित्व का सभी चिन्ह मिटा दिया गया ।
द्वादशा के उपरांत सर्वप्रथम ये कार्य किया गया की…. सातों भाय ख्तियौन / जमीन-ज्यदाद से भागीरथी बाबा का नाम कटवा कर अपना-अपना नाम दर्ज करवाए बहूत ही उल्लास और उमंग से जैसे नई पीढ़ी के कुछ कर्मठ उताहुल साहित्यकार हों …………!
bahot nik rajnish bhaiya aahak vichar or story prasansniy aychh…