मूलकणों की अद्भुत दुनिया


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चलिए हमलोग  प्राथमिक कणों के खूबसूरत और कौतूहलपूर्ण संसार की सैर करते हैं. प्राथमिक या मूलभूत कण अर्थात जो अन्य कणों से मिलकर नहीं बने हों.

यह संसार ऊर्जा और परमाणु के मध्य का संसार है जहाँ द्रव्यमान और ऊर्जा एक ही सत्ता के दो रूप  स्पष्टत: देखे जा सकते हैं। तरंग और कण यहां अलग अलग नहीं होते वरण इसकी एक क्वांटमी दशा होती है। नित्य बनते और मिटते कणों का आवेश, वेग एवं उसका प्रचक्रण मौलिक गुण है। कुल मिलाकर यह संसार हमें फंतासी सदृश्य लग सकता है। यदि इनकी दुनिया में झांकने को जी चाहता है तो चलिए आगे  परंतु ध्यान रहे जिसने भी इनसे जी लगाया है इनका ही होकर रह गया है। 

        वैसे तो अब तक परमाणु के भीतर तकरीबन डेढ़ सौ प्राथमिक कण खोजें जा चुके हैं। कायदे से तो इन प्राथमिक कणों की एक आवर्त तालिका आ जानी चाहिए थी और एक सर्वव्यापक नियम भी। खैर….. इन कणों को गुणधर्म के अनुसार कुल अट्ठारह तरह के नियमित कणों में समेटा जा सकता है, ये प्राथमिक कण अबतक खोजे गए सभी कणों को संयोजित करता है ।जिसे तीन भागों में बांटा जा सकता है ।a . पदार्थ कण b. बल वाहक कण c. द्रव्य कण 

        a. पहला भाग है पदार्थ कण। यह ब्रह्मांड के पदार्थ रूपी इमारत की ईंट है। यह 1/2  प्रचक्रण वाले कण हैं अर्थात नृत्य के दो चक्र पूरा करने (720 अंश तक घूमना) पर ही वे एक से मतलब प्रारंभिक रूप में देखते हैं। ध्यान रहे कणों के भ्रमि का कोई निश्चित अक्ष नहीं होता। यहाँ बस मतलब एक समान दिखने भर से है। इसी की व्याख्या करते हुए  डिराक महोदय ने हमें इनके प्रतिकण से परिचित कराया था। जो द्रव्यमान, प्रचक्रण और आयु में समान ही होते हैं परंतु विद्युतचुंबकीय और अन्य गुणधर्म में विपरीत। जब ये कण अपने प्रतिकण से टकराते हैं तो एक-दूसरे का पूर्ण विनाश कर ऊर्जा के रूप में बदल जाते हैं।कणों का जन्म सदैव जोड़े में होता है। यह कण समूह फर्मी डिराक सांख्यिकी द्वारा वर्णित किए जाते हैं जिस कारण इसे फर्मिऑन भी कहा जाता है इसकी दो श्रेणियां हैं-

1. क्वार्क – ये छह तरह के होते हैं। ऊर्ध्व, अध:, अद्भुत या विचित्र, आकृष्ट, अधस्थ एवं शीर्ष। हर के तीन रंग हैं लाल, हरा एवं नीला। क्वार्क दृश्य प्रकाश की तरंग-दैर्ध्य की अपेक्षा काफी छोटा है तो इसका कोई रंग नहीं होता। यह बस लेवल है। एक प्रोटॉन और न्यूट्रॉन तीन क्वार्क का बना होता है हर रंग का एक। यहां एक मजेदार बात यह है कि क्वार्क सदैव ऐसे संयोजन में होते हैं जिसका कोई वर्ण नहीं हो। ऐसे ही त्रिक से न्यूक्लिआॅन और जोड़े से अस्थाई मेसोन बनते हैं। यहां एक बात मुझे बहुत उलझन में डालती है कि क्वार्कों के सम्मिलित द्रव्यमान से प्रोटोन का द्रव्यमान इतना अधिक कैसे हो जाता है? स्वतंत्र क्वार्क का निरीक्षण नहीं किया जा सकता। केवल क्वार्क ही संपूर्ण जगत में ऐसा कण है जिस पर भिन्नात्मक आवेश होते हैं। परंतु इसका संयोजन इस प्रकार होता है कि यह आवेश पूर्णांक रूप में हो। 

2. लेप्टान-इसकी भी छह किस्में है। इलेक्ट्रॉन, इलेक्ट्राॅन न्यूट्रीनों , म्यूआॅन,म्यूआॅन न्यूट्रीनों, टाऊ और टाऊ न्यूट्रीनों। इनमें से तीन इलेक्ट्रॉन, म्यूआॅन और टाऊ ऋण आवेशित हैं और शेष तीन अनावेशित। लेप्टान का अर्थ ही है कम द्रव्यमान वाला कण। अत्यधिक ऊर्जा वाले न्यूट्रीनों की धारा के प्रथम प्रयोग में पाया गया कि इनके तीन पीढ़ियां हैं इलेक्ट्रॉन का अपना इलेक्ट्रॉन न्यूट्रीनों, म्यूआॅन का उनका अपना म्यूआॅन न्यूट्रीनों  और टाऊ का अपना टाऊ न्यूट्रीनों। यहां भी पता नहीं क्यों क्वार्क और लेप्टान भिन्न आवेश और भिन्न प्रतिक्रिया वाला व्यवहार रखता है? इनकी तीन पीढ़ियां क्यों हैं? और इनके द्रव्यमान इतने भिन्न-भिन्न क्यों हैं? पता नहीं। खैर सभी भारी-भरकम पदार्थ इन्हीं पदार्थ कणों से बने हैं। 

              यहां  न्यूट्रीनों की थोड़ी चर्चा । जैसा कि आप जानते हैं बीटा विखंडन में न्यूट्रॉन विखंडित होकर प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन के रूप में उत्सर्जित होता है। इन दोनों के संयुक्त ऊर्जा की माप न्यूट्राॅन की ऊर्जा से कम थी तो ऊर्जा की अविनाशिता के नियम के तहत पाउली ने एक नए कण की कल्पना की और फर्मी ने उसे नाम दिया न्यूट्रीनों (छोटा न्यूट्राॅन)।  तीसेक वर्षों तक यह कागजों में सिमटा रहा। तब जाकर प्रायोगिक रुप से पकड़ में आया। क्योंकि यह अद्भुत कण है। फोटोन तरह इसका भी द्रव्यमान लगभग- लगभग शून्य है। मतलब स्थिर न्यूट्रीनों जैसा कुछ भी नहीं है। जन्म से ही यह प्रकाश गति से भागता होता है। अन्य पदार्थ कणों के साथ यह परस्पर मंद क्रिया दर्शाता है। जिस कारण यह सूर्य के भी आर पार जा सकता है। ऐसे कण को विशेष विधि से कैडमियम धातु के टुकड़ों द्वारा पकड़ना संभव हुआ। इन सभी मूलभूत कण जिसमें से कुछ की चर्चा आगे भी की जानी है उसमें फोटोन, न्युट्रीनो, इलेक्ट्रॉन वह उसका प्रतिकण पोजीट्रान जीवनकाल की दृष्टि से स्थाई हैं। ब्रह्माण्ड के शुरूआत से अस्तित्व में आए और सार्वभौमिक न्यूट्रीनो का आंशिक द्रव्यमान क्या श्याम द्रव्य की गुत्थी सुलझा सकेगा? शेष सभी कण अस्थाई हैं। यहाँ स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि यह पदार्थ कण पाउली के अपवर्जन सिद्धांत का पालन करते हैं जिसके अनुसार दो कण ना तो एक ही स्थिति में रह सकते हैं ना ही उनका वेग ही एक समान रह सकता है। अगर अपवर्जन सिद्धांत का पदार्थ कण पालन नहीं करते तो पूरा ब्रह्मांड गड्डमड्ड होकर गाढा सूप जैसा हो जाता। 

            b. पदार्थ कणों के बीच बल कणों के स्थानांतरण के द्वारा संभव मानी जाती है। यह कुछ अजीब सा लगता है पर इसे ऐसे समझा जा सकता है कोई पदार्थ कण एक बल वाहक कण उत्सर्जित करता है। उत्सर्जन से उत्पन्न प्रतिक्षेप पदार्थ कण का वेग परिवर्तित कर देता है फिर बल वाहक कण दूसरे पदार्थ कण से टकराकर अवशोषित हो जाते हैं। यह टक्कर दूसरे कण के वेग को भी परिवर्तित कर देता है। यह वैसा ही है जैसे मानो पदार्थ कण के बीच कोई बल लग रहा हो। क्योंकि यह बल वाहक कण अपवर्जन नियम का पालन नहीं करते तो विनियमित कणों की संख्या भी सीमित नहीं होती जिससे यह अत्यंत बड़ा बल  उत्पन्न कर सकते हैं। बल वाहक कणों को आभासी कण कहा जाता है क्योंकि कण संसूचक द्वारा प्रत्यक्ष रुप से इसका पता नहीं लगता लेकिन ये  मापने योग्य प्रभाव उत्पन्न करते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में यह तरंग की भांति पता लगाए जा सकते हैं। इन्हें चार भागों में बांटा जाता है। 

1.फोटोन-विद्युत चुंबकीय  बल फोटोन जो 1 प्रचक्रण वाले बहुत सारे द्रव्यहीन आभासी  कणों के विनिमय के कारण उत्पन्न होते हैं। इसका अर्थ है कि फोटोन अपने नर्तन का जब एक चक्कर पूरा करता है तो एक सा दिखता है (360 अंश घुमा देने पर )। फोटोन आवेशित कणों के साथ तो अंत:क्रिया करता है पर अनावेशित कणों के साथ नहीं। यह मजबूत बल उत्पन्न करता है। यह आकर्षी और प्रतिकर्षी दोनों प्रभाव उत्पन्न कर सकता है। परमाणुओं के लघु स्तर पर इसका ही प्रभुत्व है। 

2. ग्लूआॅन-दृढ़ नाभिकीय बल जो न्यूक्लिआॅन में क्वार्क को संगठित रखता है का वाहक 1- स्पिन वाला कण है। यह केवल अपने और और क्वार्क के साथ अंतःक्रिया करता है। दृढ़ नाभिकीय बल के में परिरोध एक विचित्र गुणधर्म होता है जो कणों को सदैव ऐसे संयोजन में बांध देता है जिसका कोई रंग नहीं होता। परिरोध एकल ग्लूआॅन को भी प्राप्त करने से रोकता है क्योंकि ग्लूआॅन के भी रंग होते हैं। अतः ग्लूआॅन के ऐसे समूहों की परिकल्पना की जाती है जिसका वर्ण सफेद हो। 

3. बोसाॅन- क्षीण नाभिकीय बल जो रेडियोधर्मिता के लिए उत्तरदायी है का वाहक कण 1- स्पिन वाला बोसाॅन है जो पदार्थ कण के साथ अंत:क्रिया तो करता है पर बल वाहक कणों पर प्रभाव नहीं डालता। ये बोसाॅन दो तरह के होते हैं w एवं z। यह इसलिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि स्वत: सममिति खंडन के रूप में ज्ञात गुणधर्म प्रदर्शित करते हैं अर्थात जो कण कम ऊर्जा पर कई सारे पूर्णतः भिन्न कण जैसे लगते हैं उच्च ऊर्जा पर यह सभी कण एक सा व्यवहार करते हैं। 

4.ग्रेविटोन -सर्वात्रिक गुरुत्व बल के वाहक 2 – प्रचक्रण वाला द्रव्यहीन कण है ग्रेविटोन और इसका मतलब है कि यह कण अपने नर्तन के आधे चक्र पूरा करके (180 अंश घूमकर) एक से दिखते हैं। यह आकर्षित किस्म के होते हैं एवं साथ साथ जुड़ सकते हैं। भारहीन कण होने के कारण लंबी दूरी तक प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम है। क्लासिकल भौतिकविद इसे गुरुत्वीय तरंग कहेंगे जो बहुत ही क्षीण होगा। इसका पता लगाना कठिन है। 

          यह सभी बल वाहक कण बोस- आइंस्टीन सांख्यिकी का पालन करते हैं। और केवल w प्लस का ही प्रतिकण है। अन्यथा सभी बल वाहक कण अपना प्रतिकण स्वयं है।

          c. यह जो हमारे प्राथमिक कण हैं उनमें कुछ भारी हैं तो कुछ हल्के तो कुछ भारहीन। इसे समझाने के लिए  कण भौतिकी के मूल प्रारंभिक कण हिग्स बोसान की बात करनी होगी । इसमें कोई आंतरिक स्पिन, इलेक्ट्रिक या कलर चार्ज नहीं होता। यह अत्यंत अल्पजीवी हैं। इनका अपना एक अदृश्य ऊर्जा क्षेत्र होता है जिसे हिग्स क्षेत्र कहते हैं। इस हिग्स क्षेत्र से गुजरने वाले दूसरे कणों को विरोध का सामना करना पड़ता है। जितना कमजोर विरोध होगा उसका उतना ही ज्यादा वजन होगा। अर्थात कोई भी सूक्ष्म कण अपने मार्ग में जितने भी हिग्स बोसान  जुटा लेगा उसका भार उतना ही अधिक होगा। अपने जगत के लोगों ने बड़ा अच्छा उदाहरण ढूंढा है इसके लिए यह उसी प्रकार है जैसे राह चलते कोई नेता अपने पीछे जितनी भीड़ जुटा लेता है उसका राजनीतिक करियर का वजन उतना ही ज्यादा माना जाता है। अर्थात यही प्राथमिक एकमात्र द्रव्य कण है जिसके कारण पदार्थ की रचना हो सकी अन्यथा इस जगत का स्वरूप ऊर्जा के अविरल प्रवाह में भारहीन कणों को तैरते रहना होता । कोई द्रव्य नहीं। 

           कणों की अनोखी दुनिया का एक रोचक तथ्य यह भी है कि जब दो कण एक दूसरे से भौतिक रूप से टकराने के बाद अलग होते हैं तो वह अंत:गुंथित अवस्था में आ जाते हैं। इसके बाद एक कण की अवस्था में परिवर्तन होने पर वह परिवर्तन दूसरे कण पर स्वयं हो जाता है चाहे दोनों कणों के मध्य कितनी भी दूरी क्यों ना हो। 

              लेकिन इन सबके होते हुए भी प्राथमिक कण तो एक ही हो सकते हैं। पदार्थ की सबसे छोटी इकाई जिससे सभी बड़ी इकाइयों का संयोजन होता हो। जैसे-जैसे हम उच्च ऊर्जा की ओर आगे बढ़ेंगे यह कण और भी छोटे कणों से बने पाए जा सकते हैं। 
                                     – क्रमशः…..

लेखक :  निशिकांत ठाकुर 

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